अकाल: Difference between revisions

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अकाल भारत के आर्थिक जीवन की एक दुखद विशेषता था। मेगस्थनीज़ ने लिखा है कि भारत में अकाल नहीं पड़ता, लेकिन यह कथन बाद के इतिहास में सही नहीं सिद्ध होता। सच तो यह है कि भारत जैसे देश में मुख्यत: खेती ही जीवन-यापन का साधन है और वह मुख्यत: अनिश्चित मानसूनी वर्षा पर निर्भर रहती है। अत: यहाँ अकाल प्राय: पड़ता रहता है।

विश्वस्त विवरण

ब्रिटिश राज्यकाल के पहले के अकालों का विश्वस्त विवरण प्राप्त नहीं होता है लेकिन 1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1947 ई. में भारत की स्वाधीनता मिलने के समय के बीच, अर्थात 190 वर्ष की छोटी अवधि के दौरान देश में बड़े-बड़े नौ अकाल पड़े। यथा-

  • 1769-70 ई., जिसमें बंगाल, बिहार और उड़ीसा की एक तिहाई आबादी नष्ट हो गई।
  • 1837-38 ई. में समस्त उत्तरी भारत अकालग्रस्त हुआ, जिसमें 8 लाख व्यक्ति मौत के शिकार हुए।
  • 1861 ई. में पुन: भारी अकाल पड़ा, जिसमें उत्तर भारत में असंख्य व्यक्ति मरे।
  • 1866 ई. में उड़ीसा में अकाल पड़ा, जिसमें 10 लाख लोगों की जानें गईं।
  • 1868-1869 ई. में राजपूताना और बुंदेलखण्ड अकाल के शिकार हुए। इसमें कम आदमी मरे, फिर भी यह संख्या एक लाख से कम नहीं थी।
  • 1873-74 ई. में बंगाल और बिहार में पुन: अकाल पड़ा, जिसमें लोग भारी संख्या में मरे।
  • 1876-78 ई. का अकाल तो समस्त भारत में पड़ा, जिसके फलस्वरूप अकेले ब्रिटिश भारत में 50 लाख व्यक्ति मरे।
  • 1896-1900 ई. में दक्षिणी, मध्य और उत्तरी भारत में अकाल पड़ा, जिसमें साढ़े सात लाख व्यक्ति मारे गए।
  • 1943 ई. में ब्रिटिश सरकार की 'सर्वक्षार' नीति, व्यापारियों की धनलिप्सात्मक जमाख़ोरी तथा प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण बंगाल में अकाल पड़ा, जिसमें 15 लाख व्यक्ति मरे।
  • सर रिचर्ड स्ट्रैची की अध्यक्षता में नियुक्त अकाल आयोग द्वारा 1880 ई. में अकाल प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया।
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ