दस्तक (पारपत्र): Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 14: Line 14:
}}
}}


{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 09:31, 21 March 2011

बंगाल में ईस्ट इंडिया कम्पनी दस्तक पारपत्र जारी करती थी, उनमें कम्पनी के अभिकर्ताओं को अधिकार दिया जाता था कि वे प्रान्त के अंदर चुंगी अदा किये बिना व्यापार कर सकें। 1717 ई. में शाह फ़र्रुख़सियर द्वारा कम्पनी को दिये गये फ़रमान के अंतर्गत ढाई प्रतिशत चुंगी अदा न करने की छूट दी गई थी। क़ानूनी तौर पर यह छूट केवल कम्पनी को ही प्राप्त हो सकती थी। लेकिन इस छूट का बेजा फ़ायदा दो प्रकार से उठाया जाता था। पहले तो कम्पनी के कर्मचारी दस्तक प्राप्त करके स्वयं बिना चुंगी दिये निजी व्यापार करते थे। फिर कम्पनी इस प्रकार के दस्तक भारतीय व्यापारियों को भी बेच दिया करती थी, जिनके द्वारा वे लोग भी बिना चुंगी दिए व्यापार करते थे।

विरोध

नवाब सिराजुद्दौला ने 'दस्तक' का विरोध किया, लेकिन प्लासी के युद्ध के बाद 'दस्तक' प्रथा और अधिक बढ़ गई। इस समय नवाब मीर ज़ाफ़र नाम मात्र का शासक था। अन्त में इस प्रथा का फल यह हुआ कि इससे अधिक हानि भारतीय व्यापारियों को ही उठानी पड़ी और नवाब को भी राजस्व के बहुत बड़े अंश से हाथ धोना पड़ा। मीर जाफ़र के पदच्युत किये जाने और मीर क़ासिम (1760-63) के पदारूढ़ किये जाने के बाद यह बुराई इतनी अधिक बढ़ गई कि 1762 ई. में मीर क़ासिम ने कम्पनी से इसका घोर विरोध किया तथा माँग की कि इसे रोका जाए। लेकिन कम्पनी ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

नतीजा

मीर क़ासिम ने सभी के लिए पूरी चुंगी माफ़ कर दी, जिससे सभी प्रकार के व्यापारियों को समान प्रकार का लाभ प्राप्त हो सके। इसका नतीजा यह हुआ कि कम्पनी के कर्मचारियों को अपनी ग़ैर क़ानूनी आमदनी का घाटा होने लगा। उन्होंने विशेष रूप से पटना के एलिस नामक कम्पनी के कर्मचारी ने शस्त्रबल से अपने ग़ैर क़ानूनी दावे को मनवाने का प्रयास किया। फलत: कम्पनी और मीर क़ासिम में युद्ध छिड़ गया। मीर क़ासिम लड़ाई में हारकर युद्ध से भाग खड़ा हुआ। क्लाइब ने दूसरी बार (1765-1767 ई.) बंगाल का गवर्नर नियुक्त होने पर 'दस्तक' प्रथा से उत्पन्न बुराई को दूर करने और कर्मचारियों के निजी व्यापार को नियंत्रित करने का प्रयास किया। लेकिन अन्त में गवर्नर-जनरल लार्ड कार्नवालिस (1786-93 ई.) के ज़माने में ही यह बुराई पूरी तरह से समाप्त हो सकी।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-199