पिट एक्ट: Difference between revisions
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(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-241 | (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-241 |
Revision as of 09:53, 21 March 2011
पिट का इंडिया एक्ट, विलियम पिट कनिष्ठ ने 1784 ई. में प्रस्तावित किया और इसे पास किया। विलियम पिट उस समय इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री था।
पिट एक्ट का उद्देश्य
इसका उद्देश्य 1773 ई. के रेग्युलेटिंग एक्ट के कुछ स्पष्ट दोषों को दूर करना था। इसके द्वारा भारत में ब्रिटिश राज्य पर कम्पनी और इंग्लैण्ड की सरकार का संयुक्त शासन स्थापित कर दिया गया। कोर्ट आफ़ डाइरेक्टर्स के हाथ में वाणिज्य का नियंत्रण तथा नियुक्तियाँ करने का कार्य रहने दिया गया, परन्तु कोर्ट आफ़ प्रोपाइटर्स के हाथ से कोर्ट आफ़ डाइरेक्टर्स का चुनाव करने के अतिरिक्त सब अधिकार छीन लिये गये। एक बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल की स्थापना कर दी गई। इसमें छह अवैतनिक प्रिवी कौंसिलर होते थे। उनमें से एक को अध्यक्ष बना दिया जाता था और उसे निर्णायक मत प्राप्त होता था।
पिट एक्ट का प्रभाव
अब कोर्ट आफ़ डाइरेक्टर्स बोर्ड की पूर्व अनुमति के बिना कोई भी ख़रीता (थैला, झोला, लिफ़ाफ़ा, सरकारी आदेश पत्र का लिफ़ाफ़ा) भारत नहीं भेज सकता था। इसी प्रकार भारत से जो ख़रीद आते थे, वे बोर्ड के सामने रखे जाते थे। बोर्ड यह आग्रह भी कर सकता था कि कोर्ट आफ़ डाइरेक्टर्स की सहमति न होने पर भी केवल उसी के आदेश भारत में भेजे जाएँ। गवर्नर-जनरल की नियुक्ति पहले की भाँति कोर्ट आफ़ डाइरेक्टर्स करता था, परन्तु इंग्लैण्ड का राजा उसे वापस बुला सकता था। गवर्नर-जनरल की कौंसिल के सदस्यों की संख्या चार से घटाकर तीन कर दी गई, जिनमें से एक प्रधान सेनापति होता था। कौंसिल के सहित गवर्नर-जनरल को युद्ध, राजस्व तथा राजनीतिक मामलों में बम्बई तथा मद्रास प्रेसीडेंसी पर अधिक नियंत्रण प्रदान कर दिया गया। कौंसिल के सहित गवर्नर-जनरल को बोर्ड आफ़ कंट्रोल की सहमति से कोर्ट अथवा उसकी गुप्त समिति के द्वारा भेजे गये किसी स्पष्ट निर्देश के बिना युद्ध की घोषणा करने अथवा युद्ध शुरू करने के उद्देश्य से कोई संधि वार्ता चलाने से रोक दिया गया। एक्ट में बाद में एक संशोधन कर दिया गया, जिसके द्वारा गवर्नर-जनरल को जब वह आवश्यक समझे, अपनी कौंसिल के निर्णय को अस्वीकार कर देने का अधिकार दे दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-241