मातृ दिवस: Difference between revisions
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*'''जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी।''' ये शब्द हैं प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व [[राष्ट्रपति]] [[अब्दुल कलाम|डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम]] के। एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं।<ref name="abdc"/> | *'''जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी।''' ये शब्द हैं प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व [[राष्ट्रपति]] [[अब्दुल कलाम|डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम]] के। एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं।<ref name="abdc"/> | ||
*किसी औलाद के लिए 'माँ' शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए मां शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लिए उसका संसार होता है। क्या कभी आपने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में मां ही क्यों याद आती है क्योंकि वो मां ही होती है जो हमे तब से जानती है जब हम अजन्में होते हैं। बचपन में हमारा रातों का जागना.. जिस वजह से कई रातों तक मां सो भी नहीं पाती थी। जितना मां ने हमारे लिए किया है उतना कोई दूसरा कर ही नहीं सकता। ज़ाहिर है मां के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि एक सदी भी कम है।<ref>{{cite web |url=http://www.khasamkhas.blogspot.com/ |title=हर हाल में बच्चों पर प्यार उड़ेलती है माँ |accessmonthday=[[9 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ख़ास बात |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | *किसी औलाद के लिए 'माँ' शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए मां शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लिए उसका संसार होता है। क्या कभी आपने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में मां ही क्यों याद आती है क्योंकि वो मां ही होती है जो हमे तब से जानती है जब हम अजन्में होते हैं। बचपन में हमारा रातों का जागना.. जिस वजह से कई रातों तक मां सो भी नहीं पाती थी। जितना मां ने हमारे लिए किया है उतना कोई दूसरा कर ही नहीं सकता। ज़ाहिर है मां के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि एक सदी भी कम है।<ref>{{cite web |url=http://www.khasamkhas.blogspot.com/ |title=हर हाल में बच्चों पर प्यार उड़ेलती है माँ |accessmonthday=[[9 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=ख़ास बात |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
*पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः<br /> | |||
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव | परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।<br /> | ||
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे | मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे<br /> | ||
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति <ref>देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।- [[शंकराचार्य|आदि गुरु शंकराचार्य]] द्वारा रचित स्तुति</ref> | कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति<ref>देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।- [[शंकराचार्य|आदि गुरु शंकराचार्य]] द्वारा रचित स्तुति</ref> | ||
अर्थात : पृथ्वी पर जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपने पुत्रों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां पुत्रों के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती।<ref name="bdc">{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/2010/05/09/522499-952366.html |title=मां! तुझे प्रणाम् |accessmonthday=[[9 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=भास्कर डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | अर्थात : पृथ्वी पर जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपने पुत्रों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां पुत्रों के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती।<ref name="bdc">{{cite web |url=http://www.bhaskar.com/2010/05/09/522499-952366.html |title=मां! तुझे प्रणाम् |accessmonthday=[[9 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=भास्कर डॉट कॉम |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
;निदा फ़ाज़ली के दोहे | |||
<poem>इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार, | <poem>इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार, | ||
तोले से ही जानिए, किसमें कितना प्यार<ref name="bdc"/></poem> | तोले से ही जानिए, किसमें कितना प्यार<ref name="bdc"/></poem> | ||
;[[सुभद्रा कुमारी चौहान]] की कविता | |||
'''...बेटा! कहीं चोट तो नहीं लगी''' <br /> | '''...बेटा! कहीं चोट तो नहीं लगी''' <br /> | ||
देश के सुदूर पश्चिम में स्थित अर्बुदांचल की एक जीवंत संस्कृति है, जहां विपुल मात्रा में कथा, बोध कथाएं, कहानियां, गीत, संगीत लोक में प्रचलित है। मां की ममता पर यहां लोक में एक कहानी प्रचलित है, जो अविरल प्रस्तुत किया जाता रहा है। कहते हैं एक बार एक युवक को एक लड़की पर दिल आ गया। प्रेम में वह ऐसा खोया कि वह सबकुछ भुला बैठा। लड़के के शादी का प्रस्ताव रखने पर लड़की ने जवाब दिया कि वह उससे विवाह करने को तैयार तो है, लेकिन वह अपनी सास के रूप में किसी को देखना नहीं चाहती। अत: वह अपनी मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल लाए, तो वह उससे शादी करेगी। युवक पहले काफ़ी दुविधा में रहा, लेकिन फिर अपनी माशूका के लिए मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल तेजी से प्रेमिका की ओर बढ़ा। तेजी में जाने की हड़बड़ी में उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। इस पर मां का कलेजा गिर पड़ा और कलेजे से आवाज आई, बेटा, कहीं चोट तो नहीं लगी...आ बेटा, पट्टी बांध दूं...।<ref name="bdc"/> | देश के सुदूर पश्चिम में स्थित अर्बुदांचल की एक जीवंत संस्कृति है, जहां विपुल मात्रा में कथा, बोध कथाएं, कहानियां, गीत, संगीत लोक में प्रचलित है। मां की ममता पर यहां लोक में एक कहानी प्रचलित है, जो अविरल प्रस्तुत किया जाता रहा है। कहते हैं एक बार एक युवक को एक लड़की पर दिल आ गया। प्रेम में वह ऐसा खोया कि वह सबकुछ भुला बैठा। लड़के के शादी का प्रस्ताव रखने पर लड़की ने जवाब दिया कि वह उससे विवाह करने को तैयार तो है, लेकिन वह अपनी सास के रूप में किसी को देखना नहीं चाहती। अत: वह अपनी मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल लाए, तो वह उससे शादी करेगी। युवक पहले काफ़ी दुविधा में रहा, लेकिन फिर अपनी माशूका के लिए मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल तेजी से प्रेमिका की ओर बढ़ा। तेजी में जाने की हड़बड़ी में उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। इस पर मां का कलेजा गिर पड़ा और कलेजे से आवाज आई, बेटा, कहीं चोट तो नहीं लगी...आ बेटा, पट्टी बांध दूं...।<ref name="bdc"/> | ||
;दीवार फ़िल्म | |||
"मेरे पास बंगला है, मोटर है, बैंक - बैलेंस है.... ! तुम्हारे पास क्या है ?" पैंतीस साल पहले एक महानायक के भारी-भरकम संवाद पर हावी हो गया था एक छोटा सा वाक्य, "मेरे पास माँ है !" पीढियां बदल गयी लेकिन दीवार फ़िल्म के शशि कपूर के उस डायलोग की तासीर आज भी उतनी ही सिद्दत से महसूस की जा सकती है। सच में, माँ के दूध से बढ़ कर कोई मिठाई और माँ के आँचल से बढ़ कर कोई रजाई नहीं होती। "मातृ देवो भवः !" "माँ फ़रिश्ताहै...!!" "Mother.... thy name is God...!!" माँ.... धात्री ! '''विश्व मातृ - दिवस पर -- माँ तुझे सलाम !!'''<ref>{{cite web |url=http://manojiofs.blogspot.com/2010/05/blog-post_08.html |title=मातृ दिवस पर ….. माँ!|accessmonthday=[[9 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=मनोज ब्लॉग |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | "मेरे पास बंगला है, मोटर है, बैंक - बैलेंस है.... ! तुम्हारे पास क्या है ?" पैंतीस साल पहले एक महानायक के भारी-भरकम संवाद पर हावी हो गया था एक छोटा सा वाक्य, "मेरे पास माँ है !" पीढियां बदल गयी लेकिन दीवार फ़िल्म के शशि कपूर के उस डायलोग की तासीर आज भी उतनी ही सिद्दत से महसूस की जा सकती है। सच में, माँ के दूध से बढ़ कर कोई मिठाई और माँ के आँचल से बढ़ कर कोई रजाई नहीं होती। "मातृ देवो भवः !" "माँ फ़रिश्ताहै...!!" "Mother.... thy name is God...!!" माँ.... धात्री ! '''विश्व मातृ - दिवस पर -- माँ तुझे सलाम !!'''<ref>{{cite web |url=http://manojiofs.blogspot.com/2010/05/blog-post_08.html |title=मातृ दिवस पर ….. माँ!|accessmonthday=[[9 मई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=मनोज ब्लॉग |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
;मां में छिपी है सृष्टि | |||
मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। इसका अनुभव भी एक मां ही कर सकती है। मां अपने आप में पूर्ण संस्कारवान, मनुष्यत्व व सरलता के गुणों का सागर है। मां जन्मदाता ही नहीं, बल्कि पालन-पोषण करने वाली भी है।<ref name="bdc"/> | मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। इसका अनुभव भी एक मां ही कर सकती है। मां अपने आप में पूर्ण संस्कारवान, मनुष्यत्व व सरलता के गुणों का सागर है। मां जन्मदाता ही नहीं, बल्कि पालन-पोषण करने वाली भी है।<ref name="bdc"/> | ||
;मां है ममता का सागर | |||
मां तो ममता की सागर होती है। जब वह बच्चे को जन्म देकर बड़ा करती है तो उसे इस बात की खुशी होती है, उसके लाड़ले पुत्र-पुत्री से अब सुख मिल जाएगा। लेकिन मां की इस ममता को नहीं समझने वाले कुछ बच्चे यह भूल बैठते हैं कि इनके पालन-पोषण के दौरान इस मां ने कितनी कठिनाइयां झेली होगी।<ref name="bdc"/> | मां तो ममता की सागर होती है। जब वह बच्चे को जन्म देकर बड़ा करती है तो उसे इस बात की खुशी होती है, उसके लाड़ले पुत्र-पुत्री से अब सुख मिल जाएगा। लेकिन मां की इस ममता को नहीं समझने वाले कुछ बच्चे यह भूल बैठते हैं कि इनके पालन-पोषण के दौरान इस मां ने कितनी कठिनाइयां झेली होगी।<ref name="bdc"/> | ||
Revision as of 06:59, 8 May 2011
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thumb|250px|right|मातृ दिवस पर यूनिसेफ (unicef) का प्रतीक चिन्ह मां को खुशियाँ और सम्मान देने के लिए पूरी ज़िंदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मातृ दिवस (Mother's Day) मनाया जाता है। मातृ दिवस विश्व के अलग - अलग भागों में अलग - अलग तरीकों से मनाया जाता है। परन्तु मई माह के दूसरे रविवार को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है। हालांकि भारत के कुछ भागों में इसे 19 अगस्त को भी मनाया जाता है, परन्तु अधिक महत्ता अमरीकी आधार पर मनाए जाने वाले मातृ दिवस की है, अमेरिका में यह दिन इतना महत्त्वपूर्ण है कि यह एकदम से उत्सव की तरह मनाया जाता है।[1]
इतिहास
मातृदिवस का इतिहास सदियों पुराना एवं प्राचीन है। यूनान में बंसत ऋतु के आगमन पर रिहा परमेश्वर की मां को सम्मानित करने के लिए यह दिवस मनाया जाता था। 16वीं सदी में इंग्लैण्ड का ईसाई समुदाय ईशु की मां मदर मेरी को सम्मानित करने के लिए यह त्योहार मनाने लगा। `मदर्स डे' मनाने का मूल कारण समस्त माओं को सम्मान देना और एक शिशु के उत्थान में उसकी महान भूमिका को सलाम करना है। इस को आधिकारिक बनाने का निर्णय पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति वूडरो विलसन ने 8 मई, 1914 को लिया। 8 मई, 1914 में अन्ना की कठिन मेहनत के बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाने और मां के सम्मान में एक दिन के अवकाश की सार्वजनिक घोषणा की। वे समझ रहे थे कि सम्मान, श्रद्धा के साथ माताओं का सशक्तीकरण होना चाहिए, जिससे मातृत्व शक्ति के प्रभाव से युद्धों की विभीषिका रुके। तब से हर वर्ष मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है।[1]
- मदर्स डे की शुरुआत अमेरिका से हुई। वहाँ एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव ने 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं। वे मानती थीं कि महिलाओं की सामाजिक जिम्मेदारी व्यापक होनी चाहिए। अमेरिका में मातृ दिवस (मदर्स डे) पर राष्ट्रीय अवकाश होता है। अलग-अलग देशों में मदर्स डे अलग अलग तारीख पर मनाया जाता है। भारत में भी मदर्स डे का महत्व बढ़ रहा है।[2]
माँ से जुड़ी कुछ बातें
thumb|250px|right|मातृ दिवस पर माँ बच्चा
- जब मैं पैदा हुआ, इस दुनिया में आया, वो एकमात्र ऐसा दिन था मेरे जीवन का जब मैं रो रहा था और मेरी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान थी। ये शब्द हैं प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के। एक माँ हमारी भावनाओं के साथ कितनी खूबी से जुड़ी होती है, ये समझाने के लिए उपरोक्त पंक्तियां अपने आप में सम्पूर्ण हैं।[1]
- किसी औलाद के लिए 'माँ' शब्द का मतलब सिर्फ पुकारने या फिर संबोधित करने से ही नहीं होता बल्कि उसके लिए मां शब्द में ही सारी दुनिया बसती है, दूसरी ओर संतान की खुशी और उसका सुख ही माँ के लिए उसका संसार होता है। क्या कभी आपने सोचा है कि ठोकर लगने पर या मुसीबत की घड़ी में मां ही क्यों याद आती है क्योंकि वो मां ही होती है जो हमे तब से जानती है जब हम अजन्में होते हैं। बचपन में हमारा रातों का जागना.. जिस वजह से कई रातों तक मां सो भी नहीं पाती थी। जितना मां ने हमारे लिए किया है उतना कोई दूसरा कर ही नहीं सकता। ज़ाहिर है मां के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए एक दिन नहीं बल्कि एक सदी भी कम है।[3]
- पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति[4]
अर्थात : पृथ्वी पर जितने भी पुत्रों की मां हैं, वह अत्यंत सरल रूप में हैं। कहने का मतलब कि मां एकदम से सहज रूप में होती हैं। वे अपने पुत्रों पर शीघ्रता से प्रसन्न हो जाती हैं। वह अपनी समस्त खुशियां पुत्रों के लिए त्याग देती हैं, क्योंकि पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती।[5]
- निदा फ़ाज़ली के दोहे
इक पलड़े में प्यार रख, दूजे में संसार,
तोले से ही जानिए, किसमें कितना प्यार[5]
- सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता
...बेटा! कहीं चोट तो नहीं लगी
देश के सुदूर पश्चिम में स्थित अर्बुदांचल की एक जीवंत संस्कृति है, जहां विपुल मात्रा में कथा, बोध कथाएं, कहानियां, गीत, संगीत लोक में प्रचलित है। मां की ममता पर यहां लोक में एक कहानी प्रचलित है, जो अविरल प्रस्तुत किया जाता रहा है। कहते हैं एक बार एक युवक को एक लड़की पर दिल आ गया। प्रेम में वह ऐसा खोया कि वह सबकुछ भुला बैठा। लड़के के शादी का प्रस्ताव रखने पर लड़की ने जवाब दिया कि वह उससे विवाह करने को तैयार तो है, लेकिन वह अपनी सास के रूप में किसी को देखना नहीं चाहती। अत: वह अपनी मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल लाए, तो वह उससे शादी करेगी। युवक पहले काफ़ी दुविधा में रहा, लेकिन फिर अपनी माशूका के लिए मां का कत्ल कर उसका कलेजा निकाल तेजी से प्रेमिका की ओर बढ़ा। तेजी में जाने की हड़बड़ी में उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। इस पर मां का कलेजा गिर पड़ा और कलेजे से आवाज आई, बेटा, कहीं चोट तो नहीं लगी...आ बेटा, पट्टी बांध दूं...।[5]
- दीवार फ़िल्म
"मेरे पास बंगला है, मोटर है, बैंक - बैलेंस है.... ! तुम्हारे पास क्या है ?" पैंतीस साल पहले एक महानायक के भारी-भरकम संवाद पर हावी हो गया था एक छोटा सा वाक्य, "मेरे पास माँ है !" पीढियां बदल गयी लेकिन दीवार फ़िल्म के शशि कपूर के उस डायलोग की तासीर आज भी उतनी ही सिद्दत से महसूस की जा सकती है। सच में, माँ के दूध से बढ़ कर कोई मिठाई और माँ के आँचल से बढ़ कर कोई रजाई नहीं होती। "मातृ देवो भवः !" "माँ फ़रिश्ताहै...!!" "Mother.... thy name is God...!!" माँ.... धात्री ! विश्व मातृ - दिवस पर -- माँ तुझे सलाम !![6]
- मां में छिपी है सृष्टि
मां शब्द में संपूर्ण सृष्टि का बोध होता है। मां के शब्द में वह आत्मीयता एवं मिठास छिपी हुई होती है, जो अन्य किसी शब्दों में नहीं होती। इसका अनुभव भी एक मां ही कर सकती है। मां अपने आप में पूर्ण संस्कारवान, मनुष्यत्व व सरलता के गुणों का सागर है। मां जन्मदाता ही नहीं, बल्कि पालन-पोषण करने वाली भी है।[5]
- मां है ममता का सागर
मां तो ममता की सागर होती है। जब वह बच्चे को जन्म देकर बड़ा करती है तो उसे इस बात की खुशी होती है, उसके लाड़ले पुत्र-पुत्री से अब सुख मिल जाएगा। लेकिन मां की इस ममता को नहीं समझने वाले कुछ बच्चे यह भूल बैठते हैं कि इनके पालन-पोषण के दौरान इस मां ने कितनी कठिनाइयां झेली होगी।[5]
बदलाव
- समय के साथ बदल रही भूमिकाएं
समय के साथ माताओं की भूमिका बदल रही है। घर की चौखट से बाहर वे अब पुत्र-पुत्रियों के कॅरियर की भी चिंता कर रही हैं। यही नहीं, अब वे वृद्धावस्था में पुत्रों की दया पर जीने वाली भूमिका में जीने को कतई तैयार नहीं हैं। दैनिक भास्कर ने इस संबंध में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में बातचीत की, तो समय के साथ बदल रही भूमिकाएं स्पष्ट हुईं।
- संतान में अपनी सफलता की खोज
इस समय वैसे तो कई महिलाएं हैं, जो पुरुषों से मुक़ाबला कर रही हैं। वह न सिर्फ़ मां की भूमिका निभा रही हैं, बल्कि डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, सरपंच, प्रधान आदि पदों की शोभा बढ़ा रही हैं। हालांकि इसके बावजूद बड़ी संख्या घरेलू महिलाओं की है। जब इस संबंध में मैट्रिक उत्तीर्ण नीलम से बात की गई, जो अपने दो बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी खुद वहन कर रही हैं, वह कहती हैं कि उनका सपना स्पोट्र्स में कुछ करना था, अब वे अपनी बेटियों को पढ़ाने के साथ खेल, व्यायाम आदि पर भी पूरा ध्यान दे रही हैं। वहीं वह घर में ही ख़ाली समय का सदुपयोग करते हुए इंटर की पढ़ाई कर रही हैं। पहले जहां घर से बाहर होस्टल में लड़कियों के रखने पर लोगों का ऐतराज होता था, वहीं अब शायद ही किसी महिला को इस पर ऐतराज है। चाहे बेटी विदेश जाए या कोई महानगर, अब तो उनकी एक ही इच्छा है कि वह अपने क्षेत्र में कुछ कर गुजरे। हालांकि कुछ ऐसी भी मां हैं, जो एकदम से इसे पसंद नहीं करती। उनके अनुसार यदि कोई निकटतम रिश्तेदार है तो ठीक, नहीं तो अपना शहर ही पढ़ाई के लिए काफ़ी है।
- डूब रही रुढिय़ां, छूट रहा घूंघट
इसी क्रम में महिलाएं अब पहले से अधिक जागरूक भी हो गई हैं। रुढिय़ों के बजाय वे आधुनिकता व तरक्की को ज़्यादा तवज्जो दे रही हैं। शहरों में वैसी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो रुढिय़ों के साथ घूंघट को तिलांजलि दे रही हैं। यही नहीं, पहले की तरह सब कुछ समर्पण कर पति के पदचिह्नों पर चलने की भूमिका की जगह, वह सलाहकार की भूमिका में आ चुकी हैं। एमएससी किए सुनीता कहती हैं कि उसके पति सरकारी संस्थान में कार्यरत हैं, लेकिन गंभीर बातों में उनके विचार को पूरी तवज्जो देते हैं। हालंाकि सिरोही में नाइट शिफ्ट में बेटियों को काम करने देने की इजाजत देने वाली मां का प्रतिशत काफ़ी कम है। अधिकांश इसे हर तरह से असुरक्षित मानती हैं।
- मजबूरियां दूरियां बढऩे की
वर्तमान समय ने चाहे जो उपलब्धियां दी हों, लेकिन एक बड़ा दर्द दिया है परिवार बिखरने का। शायद ही कोई परिवार हो, जिसके सभी सदस्य साथ रहते हों। यहां बचपन बीता कि आदमी दूसरे शहर में रोजी-रोटी, नौकरी की तलाश में चला जाता है। ऐसे में लंबी तनहाई समय का सच बन गया है। वृद्ध माता - पिता बेटे - बेटियों के कॅरियर के लिए इतने कठोर भी नहीं बन सकते कि अपने पास रहने को कहें। अब ऐसे में मजबूरी में फ़ोन आदि पर बात कर संतोष करना पड़ता है। इससे कठिनाइयां भले कम नहीं होतीं, लेकिन मन को संतोष हो जाता है।
कैसे बनाएं इस दिन को रोमांचक और यादगार
आधुनिकता और वर्तमान परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कुछ सुझाव :
- सुबह उठते ही अपनी मां को इस दिन की बधाई दें। पूरे दिन कुछ - कुछ घंटों के अन्तराल पर उन्हें मोबाइल के जरिए मैसेज करें। इससे उन्हें आपके समीप होने का एहसास होगा।
- यदि आपको उनके हाथ का भोजन बहुत पंसद है, और कूकिंग उनका शौक़ भी है, तो उन्हें नए और स्वादिष्ट व्यंजन की एक किताब व डिनर टेबल गिफ़्ट सेट जैसा कुछ तौफा दें।
- यदि उन्हें संगीत का शौक़ है, तो उनके पसन्दीदा गानों व संगीत की कोई डीवीडी व कैसेट् उपहार में दें, जिससे व ख़ाली समय में घर का काम करते समय सुन सकें।
- आए दिन छोटे होते घरों को देखते हुए आप उन्हें एक `होम गार्डन' भी उपहार में दे सकते हैं। ये छोटा बगीचा घर की रौनक भी बढ़ाएगा और आपकी मां को व्यस्त भी रखेगा। सुन्दर पौधे घर में बेहतर वातावरण भी बनाए रखेगा।
- आपका घर व किचन एक ऐसा स्थान है जहां आपकी मां अधिक समय बीताती हैं। तो इस अवसर पर आप ड्राइंग रूम और बेडरूम के साथ साथ किचन को भी अच्छे से साजा सकते हैं।
- उन्हें कहीं बाहर घुमाने ले जाएं। और यदि किसी नजदीकी टूरिस्ट डेस्टीनेशन का कार्यक्रम बना सकते हों, तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। मूड़ बदलने के साथ-साथ आपकी पिकनिक ट्रिप उन्हें प्रकृति के क़रीब लाएगी और वे बेहतर महसूस करेगीं।
- यदि आपकी मां को लोगों से जुड़ने और पार्टियों का माहौल पसन्द है, तो परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर मदर्स डे के अवसर पर आप एक सरप्राइस पार्टी का आयोजन भी कर सकते हैं। और इस पार्टी में यदि आपके करीबी मित्रों की भी माताओं को आमन्त्रण दिया जाए तो सोने पे सुहागा।
इस प्रकार आप अपनी मां के लिए ये मदर्स डे स्पेशल बना सकते हैं। अगाथा क्रिस्टी के शब्दों में, ``एक शिशु के लिए उसकी मां का लाड़ - प्यार दुनिया की किसी भी वस्तु के सामने अतुलनीय है। इस प्रेम की कोई सीमा नहीं होती और ये किसी क़ानून को नहीं मानता। तो आखिर अपने जीवन को आकार देने वाली मां के लिए कुछ विशेष करना तो बनता ही है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 कैसे बनाए मदर्स डे को यादगार (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) आधी आबादी डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 9 मई, 2011।
- ↑ हर हाल में बच्चों पर प्यार उड़ेलती है माँ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 9 मई, 2011।
- ↑ हर हाल में बच्चों पर प्यार उड़ेलती है माँ (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) ख़ास बात। अभिगमन तिथि: 9 मई, 2011।
- ↑ देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।- आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित स्तुति
- ↑ 5.0 5.1 5.2 5.3 5.4 मां! तुझे प्रणाम् (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) भास्कर डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 9 मई, 2011।
- ↑ मातृ दिवस पर ….. माँ! (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) मनोज ब्लॉग। अभिगमन तिथि: 9 मई, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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