घड़ी: Difference between revisions
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घड़ी वह [[यंत्र]] है जो संपूर्ण अहर्निश को समय की समान अवधियों में स्वयंचालित प्रणाली द्वारा विभक्त करता है और इस प्रकार कालक्षेप के सही सही व्यक्त करता है। अधिकतर घड़ियों में नियमित रूप से आवर्तक क्रियाएँ उत्पन्न करने की स्वयंचालित व्यवस्था होती है, जैसे लोलक का दोलन, सर्पिल कमानियों तथा संतुलन चक्रों को दोलन, दाब विद्युत् मणिभों का दोलन अथवा उच्च आवृत्तिवाले संकेतों की [[परमाणु|परमाणुओं]] की मूलअवस्था की अतिसूक्ष्म संरचना से तुलना इत्यादि। | घड़ी वह [[यंत्र]] है जो संपूर्ण अहर्निश को समय की समान अवधियों में स्वयंचालित प्रणाली द्वारा विभक्त करता है और इस प्रकार कालक्षेप के सही सही व्यक्त करता है। अधिकतर घड़ियों में नियमित रूप से आवर्तक क्रियाएँ उत्पन्न करने की स्वयंचालित व्यवस्था होती है, जैसे लोलक का दोलन, सर्पिल कमानियों तथा संतुलन चक्रों को दोलन, दाब विद्युत् मणिभों का दोलन अथवा उच्च आवृत्तिवाले संकेतों की [[परमाणु|परमाणुओं]] की मूलअवस्था की अतिसूक्ष्म संरचना से तुलना इत्यादि। | ||
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प्राचीन काल में धूप के कारण पड़ने वाली किसी वृक्ष अथवा अन्य स्थिर वस्तु की छाया के द्वारा समय के अनुमान किया जाता था। ऐसी धूपधड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें आकाश में [[सूर्य]] के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होने वाले परिवर्तन के द्वारा 'घड़ी' या 'प्रहर' का अनुमान किया जाता था। बदली के दिनों में, अथवा रात में, समय जानने के लिय जल घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन | प्राचीन काल में धूप के कारण पड़ने वाली किसी वृक्ष अथवा अन्य स्थिर वस्तु की छाया के द्वारा समय के अनुमान किया जाता था। ऐसी धूपधड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें आकाश में [[सूर्य]] के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होने वाले परिवर्तन के द्वारा 'घड़ी' या 'प्रहर' का अनुमान किया जाता था। बदली के दिनों में, अथवा रात में, समय जानने के लिय जल घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन हज़ार वर्ष पहले किया था। कालांतर में यह विधि मिस्रियों, यूनानियों एवं रोमनों को भी ज्ञात हुई। | ||
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जलघड़ी में दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में पानी भर दिया जाता या और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था। उसमें से थोड़ा-थोड़ा [[जल]] नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता था। इस पात्र में एकत्र जल की मात्रा नाप कर समय अनुमान किया जाता था। बाद में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग होने लगा। [[इंग्लैंड]] के ऐल्फ्रडे महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि आविष्कृत की। उसने एक मोमबत्ती पर लंबाई की ओर समान दूरियों पर चिह्न अंकित कर दिए थे। प्रत्येक चिह्न तक मोमबत्ती के जलने पर निश्चित समय व्यतीत होने का ज्ञान होता था। | जलघड़ी में दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में पानी भर दिया जाता या और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था। उसमें से थोड़ा-थोड़ा [[जल]] नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता था। इस पात्र में एकत्र जल की मात्रा नाप कर समय अनुमान किया जाता था। बाद में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग होने लगा। [[इंग्लैंड]] के ऐल्फ्रडे महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि आविष्कृत की। उसने एक मोमबत्ती पर लंबाई की ओर समान दूरियों पर चिह्न अंकित कर दिए थे। प्रत्येक चिह्न तक मोमबत्ती के जलने पर निश्चित समय व्यतीत होने का ज्ञान होता था। |
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Clock
घड़ी वह यंत्र है जो संपूर्ण अहर्निश को समय की समान अवधियों में स्वयंचालित प्रणाली द्वारा विभक्त करता है और इस प्रकार कालक्षेप के सही सही व्यक्त करता है। अधिकतर घड़ियों में नियमित रूप से आवर्तक क्रियाएँ उत्पन्न करने की स्वयंचालित व्यवस्था होती है, जैसे लोलक का दोलन, सर्पिल कमानियों तथा संतुलन चक्रों को दोलन, दाब विद्युत् मणिभों का दोलन अथवा उच्च आवृत्तिवाले संकेतों की परमाणुओं की मूलअवस्था की अतिसूक्ष्म संरचना से तुलना इत्यादि।
प्राचीन काल
प्राचीन काल में धूप के कारण पड़ने वाली किसी वृक्ष अथवा अन्य स्थिर वस्तु की छाया के द्वारा समय के अनुमान किया जाता था। ऐसी धूपधड़ियों का प्रचलन अत्यंत प्राचीन काल से होता आ रहा है जिनमें आकाश में सूर्य के भ्रमण के करण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होने वाले परिवर्तन के द्वारा 'घड़ी' या 'प्रहर' का अनुमान किया जाता था। बदली के दिनों में, अथवा रात में, समय जानने के लिय जल घड़ी का आविष्कार चीन देशवासियों ने लगभग तीन हज़ार वर्ष पहले किया था। कालांतर में यह विधि मिस्रियों, यूनानियों एवं रोमनों को भी ज्ञात हुई।
जलघड़ी
जलघड़ी में दो पात्रों का प्रयोग होता था। एक पात्र में पानी भर दिया जाता या और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था। उसमें से थोड़ा-थोड़ा जल नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता था। इस पात्र में एकत्र जल की मात्रा नाप कर समय अनुमान किया जाता था। बाद में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग होने लगा। इंग्लैंड के ऐल्फ्रडे महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि आविष्कृत की। उसने एक मोमबत्ती पर लंबाई की ओर समान दूरियों पर चिह्न अंकित कर दिए थे। प्रत्येक चिह्न तक मोमबत्ती के जलने पर निश्चित समय व्यतीत होने का ज्ञान होता था।
यांत्रिक घड़ियाँ
आजकल प्रयोग की जाने वाली घड़ियाँ यांत्रिक विधियों से संचालित होती हैं। इन यांत्रिक घड़ियों में अनेक पहिए होते हैं, जो किसी कमानी, लटकते हुए भार अथवा अन्य उपायों द्वारा चलाए जाते हैं। इन्हें किसी दोलनशील व्यवस्था द्वारा इस प्रकार निंयत्रित किया जाता है कि इनकी गति समांग होती है। इनके साथ ही इसमें घंटी या घंटा भी होता है, जो निश्चित अवधियों पर स्वयं ही बज उठता है और समय की सूचना देता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
“खण्ड 4”, हिन्दी विश्वकोश, 1964 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 102।
बाहरी कड़ियाँ
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