ब्रह्माण्ड: Difference between revisions

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'''ब्रह्माण्ड''' अस्तित्वमान [[द्रव्य]] एवं [[ऊर्जा]] के सम्मिलित रूप को कहा जाता है। ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत उन सभी आकाशीय पिंण्डों एवं [[उल्का|उल्काओं]] तथा समस्त [[सौर मण्डल]], जिसमें [[सूर्य ग्रह|सूर्य]], [[चन्द्र ग्रह|चन्द्र]] आदि भी सम्मिलित हैं, का अध्ययन किया जाता है। ब्रह्माण्ड उस अनन्त [[आकाश तत्त्व|आकाश]] को कहते हैं, जिसमें अनन्त तारे, ग्रह, चन्द्रमा एवं अन्य आकाशीय पिण्ड स्थित हैं। ब्रह्माण्ड का व्यास लगभग 108 प्रकाशवर्ष है।
'''ब्रह्माण्ड''' अस्तित्वमान [[द्रव्य]] एवं [[ऊर्जा]] के सम्मिलित रूप को कहा जाता है। ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत उन सभी आकाशीय पिंण्डों एवं [[उल्का|उल्काओं]] तथा समस्त [[सौर मण्डल]], जिसमें [[सूर्य ग्रह|सूर्य]], [[चन्द्र ग्रह|चन्द्र]] आदि भी सम्मिलित हैं, का अध्ययन किया जाता है। ब्रह्माण्ड उस अनन्त [[आकाश तत्त्व|आकाश]] को कहते हैं, जिसमें अनन्त तारे, ग्रह, चन्द्रमा एवं अन्य आकाशीय पिण्ड स्थित हैं। ब्रह्माण्ड का व्यास लगभग 108 प्रकाशवर्ष है।
==आधुनिक विचारधारा==
==आधुनिक विचारधारा==

Revision as of 10:04, 25 November 2011

thumb|250px|ब्रह्माण्ड ब्रह्माण्ड अस्तित्वमान द्रव्य एवं ऊर्जा के सम्मिलित रूप को कहा जाता है। ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत उन सभी आकाशीय पिंण्डों एवं उल्काओं तथा समस्त सौर मण्डल, जिसमें सूर्य, चन्द्र आदि भी सम्मिलित हैं, का अध्ययन किया जाता है। ब्रह्माण्ड उस अनन्त आकाश को कहते हैं, जिसमें अनन्त तारे, ग्रह, चन्द्रमा एवं अन्य आकाशीय पिण्ड स्थित हैं। ब्रह्माण्ड का व्यास लगभग 108 प्रकाशवर्ष है।

आधुनिक विचारधारा

आधुनिक विचारधारा के अनुसार ब्रह्माण्ड के दो भाग हैं-

  1. वायुमण्डल और
  2. अंतरिक्ष

उत्पत्ति परिकल्पनाएँ

ब्रह्माण्ड उत्पत्ति की दो प्रमुख वैज्ञानिक परिकल्पनाएँ हैं-

  1. सामान्यस्थिति सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बेल्जियम के खगोलविद एवं पादरी 'ऐब जॉर्ज लेमेण्टर' थे।
  2. महाविस्फोट सिद्धान्त (बिग बैंग थ्योरी) - यह सिद्धान्त दो सिद्धान्तों पर आधारित है-
  • निरन्तर उत्पत्ति का सिद्धान्त - इसके प्रतिपादक 'गोल्ड' और 'हरमैन बॉण्डी' थे।
  • संकुचन विमाचन का सिद्धान्त - 'डॉक्टर ऐलन सेण्डोज' इसके प्रतिपादक थे।

ब्रह्माण्ड का केन्द्र

ब्रह्माण्ड के बारे में हमारा बदलता दृष्टिकोण प्रारम्भ में पृथ्वी को सम्पूर्ण ब्रह्माण का केन्द्र माना जाता था, जिसकी परिक्रमा सभी आकाशीय पिण्ड विभिन्न कक्षाओं में करते थे। इसे भूकेन्द्रीय सिद्धान्त कहा गया। इसका प्रतिपादन मिस्रयूनानी खगोलशास्त्री क्लाडियस टालेमी ने 140 ई0 में किया था। इसके बाद पोलैंड के खगोलशास्त्री निकोलस कॉपरनिकस (1473-1543 ई0) ने यह दर्शाया कि सूर्य ब्रह्माण्ड के केन्द्र पर है तथा ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। अतः सूर्य विश्व या ब्रह्माण्ड का केन्द्र बन गया। इसे सूर्यकेन्द्रीय सिद्धान्त कहा गया। 16वीं शताब्दी में टायकोब्रेह के सहायक जोहानेस कैप्लर ने ग्रहीय कक्षाओं के नियमों की खोज की परन्तु इसमें भी सूर्य को ब्रह्माण्ड का केन्द्र माना गया। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में जाकर हमारी मंदाकिनी दुगधमेखला की तस्वीर स्पष्ट हुई। सूर्य को इस मंदाकिनी के एक सिरे पर अवस्थित पाया गया। इस प्रकार सूर्य को ब्रह्माण्ड के केन्द्र पर होने का गौरव समाप्त हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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