प्रवासी पक्षी/ कूँज -कुलदीप शर्मा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 57: Line 57:
पता नहीं क्या नाम रखा है
पता नहीं क्या नाम रखा है
धौलाधार का इन्होंने
धौलाधार का इन्होंने
जहां न बर्फ बची है न पेड़़
जहां न बर्फ बची है न पेड़
पल भर रूक जाने का  
पल भर रूक जाने का  
आग्रह भी नहीं करती
आग्रह भी नहीं करती
अब  धौलाधाऱ
अब  धौलाधार


उठाओ अपने कुदाल फावड़े  
उठाओ अपने कुदाल फावड़े  
Line 66: Line 66:
बैलों को टिटकारी दो पुचकारो
बैलों को टिटकारी दो पुचकारो
बादलों को न्यौता देकर आए हैं  
बादलों को न्यौता देकर आए हैं  
ये दूर देष के पक्षी़
ये दूर देश के पक्षी़


अपने नन्हे बच्चों को  
अपने नन्हे बच्चों को  
Line 78: Line 78:
    
    


चुाप हो जाओ थोड़ी देर के लिए
चुप हो जाओ थोड़ी देर के लिए
और सुनो झील के साथ इनका संवाद
और सुनो झील के साथ इनका संवाद
ये साइबेरिया का कोई मधुर गीत  
ये साइबेरिया का कोई मधुर गीत  
सुनाने वाले हैं
सुनाने वाले हैं
सिसकती हुई सतलुज को़
सिसकती हुई सतलुज को़
ये जानते भी नहीं
ये जानते भी नहीं
कितने देषो की सीमाएं  
कितने देशों की सीमाएं  
लांघ आए हैं अनायास  
लांघ आए हैं अनायास  
आपस में बतियाते  
आपस में बतियाते  
आसमान में लिख आए हैं  
आसमान में लिख आए हैं  
मेघदूत का संदेष
मेघदूत का संदेश
युद्ध के खिलाफ अमन की  
युद्ध के खिलाफ अमन की  
एक अमिट इबारत  
एक अमिट इबारत  

Revision as of 09:54, 2 January 2012

प्रवासी पक्षी/ कूँज -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (ऊना, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

 
बड़ी दूर से आए हैं
ये अतिथि
खाली करो इन के लिए
इस झील के सारे तट
हटाओ सारी बंदूकें
उठा लो अपने जाल
मत देखो इन्हें इस तरह
जैसे तुमने देखा था
वह जंगल
जो अब नहीं दिखता
जैसे तुमने देखी थी वह नदी
जो सिकुड़ गई थी छुई-मुई सी
देखते ही
 
किसी बेगाने देष से
सौ मुश्किलें सहन कर
पहुँचे हैं यहाँ तक
किसी खुशगवार मौसम की
खुश्बू लिए
ये आए हैं एक अच्छी खबर की तरह
जैसे युद्ध से फौजी लौटा हो सुरक्षित
या जैसे इच्छरां की गोद में
लौट आया हो पूरण़

धौलाधार पार करते करते
थक गए हैं ये
पता नहीं क्या नाम रखा है
धौलाधार का इन्होंने
जहां न बर्फ बची है न पेड़
पल भर रूक जाने का
आग्रह भी नहीं करती
अब धौलाधार

उठाओ अपने कुदाल फावड़े
सेंको हलों के फाल
बैलों को टिटकारी दो पुचकारो
बादलों को न्यौता देकर आए हैं
ये दूर देश के पक्षी़

अपने नन्हे बच्चों को
बेसहारा छोड़कर आए हैं ये
एक निहायत जरूरी अभियान पऱ
हो सकता है तुम्हारे साथ शामिल हों
ये इस बार दीवाली की शुभ कामनाओं में
हो सकता है लोहड़ी पर
सुनाएं तुम्हें ये परीकथा
जिसे तुम भूल गए हो दादी मां के बाद़
  

चुप हो जाओ थोड़ी देर के लिए
और सुनो झील के साथ इनका संवाद
ये साइबेरिया का कोई मधुर गीत
सुनाने वाले हैं
सिसकती हुई सतलुज को़
ये जानते भी नहीं
कितने देशों की सीमाएं
लांघ आए हैं अनायास
आपस में बतियाते
आसमान में लिख आए हैं
मेघदूत का संदेश
युद्ध के खिलाफ अमन की
एक अमिट इबारत
इनके आते ही
आसमान में खिलेंगे इन्द्रधनुष
और धरती पर फूल
उदासी में डूबे पहाड़
खिलखिलाने लगेंगे
धरती इठलाती घूमेगी
पूरे ब्राँड में गुनगुनाती हुई
ये आए हैं पेड़ो को ओढ़ाने
हरियाली की चादर
घाटी को सुनाने राग मल्हार
सारी सूखी नदियों में
बांटने आए हैं पानी
इतनी नमी है इनकी आँखों में


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख