गांधारी से संवाद (1) -कुलदीप शर्मा: Difference between revisions

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झिलमिल उजाले में बदलने के लिए  
झिलमिल उजाले में बदलने के लिए  
ज़रूरी है लड़ना
ज़रूरी है लड़ना
बेषक बदल दिए है उन्होने  
बेशक बदल दिए है उन्होने  
रातों रात युद्ध के सारे नियम  
रातों रात युद्ध के सारे नियम  
अपने पक्ष में कर लिए हैं सारे शस्त्र
अपने पक्ष में कर लिए हैं सारे शस्त्र

Revision as of 13:41, 2 January 2012

गांधारी से संवाद (1) -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (ऊना, हिमाचल प्रदेश)
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कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

 
     (1)
अब जबकि बिल्कुल निहत्थे हो गए हो तुम
और शत्रु कर चुका है जयघोष
लड़ना और भी जरूरी हो गया है
अब जबकि खण्ड खण्ड गिरी पड़ी है अस्मिता
और सारा युद्ध क्षेत्र
हो गया है उनके अधिकार में
जबकि कोई भी पक्ष नहीं बचा है
जहां से लड़ा जा सके
अपने पक्ष में
लड़ना और भी जरूरी हो गया है
अब जबकि लगता है
कि लड़ाई का नहीं है कोई अर्थ
न कोई कारण शेष
जबकि लहुलुहान सच
विगलित हो पड़ा है
रणभूमि के बीचोंबीच
जबकि सारे योद्घा सिर झुकाए
गुज़र गए हैं
आहत अधमरे सत्य के सामने से
मेरे भाई! लड़ना और भी ज़रूरी हो गया है

इसलिए लड़ो कि लड़ाई
तुम्हारे भीतर है कहीं
तुम्हारा शत्रु भी छुपा है
तुम्हारे ही अस्तित्व में
इसलिए लड़ो कि
इस हहराते अंधकार को
झिलमिल उजाले में बदलने के लिए
ज़रूरी है लड़ना
बेशक बदल दिए है उन्होने
रातों रात युद्ध के सारे नियम
अपने पक्ष में कर लिए हैं सारे शस्त्र
घोषणा कर दी है उन्होंने
कि बिना लड़े भी
जीती जा सकती है लड़ाई
तुम सच मानो
कि लड़ना और भी जरूरी हो गया है
और यह भी कि
हर लड़ाई जीत के लिए नहीं लड़ी जाती
पर अगर लड़ो तो
निश्चय ही अंत में जीत
तुम्हारे पक्ष में चली आती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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