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हमारा शरीर ठीक से काम करता रहे, इसके लिए जरूरी है कि ये दोनों तत्व हमारे शरीर में जाएं। हां, इनकी मात्रा थोड़ी कम होनी चाहिए। अगर कोलेस्ट्रॉल पर पूरी तरह से फुल स्टॉप लगा दें तो हमारा नर्वस सिस्टम ठीक से काम करना छोड़ देगा। कोलेस्ट्रॉल हमारी हड्डियों को मजबूत करता है। हार्मोन का संतुलन बनाए रखता है। शरीर में विटामिन डी का निर्माण करता है। इसीलिए हमें थोड़ी-थोड़ी मात्र में घी खाते रहना चाहिए। इसका सेवन पूरी तरह से बंद नहीं करना चाहिए। एक दिन में चार से पांच चम्मच घी खाने से कोई नुकसान नहीं होता। यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति को दिल की बीमारी है या कोलेस्ट्रॉल असंतुलित है तो भी वह दिन में एक चम्मच घी आराम से खा सकता है।
हमारा शरीर ठीक से काम करता रहे, इसके लिए जरूरी है कि ये दोनों तत्व हमारे शरीर में जाएं। हां, इनकी मात्रा थोड़ी कम होनी चाहिए। अगर कोलेस्ट्रॉल पर पूरी तरह से फुल स्टॉप लगा दें तो हमारा नर्वस सिस्टम ठीक से काम करना छोड़ देगा। कोलेस्ट्रॉल हमारी हड्डियों को मजबूत करता है। हार्मोन का संतुलन बनाए रखता है। शरीर में विटामिन डी का निर्माण करता है। इसीलिए हमें थोड़ी-थोड़ी मात्र में घी खाते रहना चाहिए। इसका सेवन पूरी तरह से बंद नहीं करना चाहिए। एक दिन में चार से पांच चम्मच घी खाने से कोई नुकसान नहीं होता। यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति को दिल की बीमारी है या कोलेस्ट्रॉल असंतुलित है तो भी वह दिन में एक चम्मच घी आराम से खा सकता है।


दरअसल पिछले एक दशक की बात करें तो दिल की बीमारियां लोगों में तेजी से बढ़ीं और इसके लिए कोलेस्ट्रॉल को जिम्मेदार ठहराया गया। मेडिकल एक्सपर्ट ने लोगों को तला-भुना खाने से मना किया। लोगों ने तेल और मक्खन के साथ घी पर भी रोक लगा दी, जबकि घी मक्खन और तेल के मुकाबले काफी कम नुकसानदेह होता है। इस बात को समझने के लिए हमें 'हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन' और 'लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन' के फ़र्क़ को समझना होगा। हमारे शरीर के लिए हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन नुकसानदेह नहीं होता, क्योंकि यह रक्त कणिकाओं से कोलेस्ट्रॉल को अलग करके लिवर में ट्रांसफर कर देता है, जबकि लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन धमनियों से चिपक जाता है। घी में पहली तरह वाला यानी हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन पाया जाता है, इसलिए घी हमें उतना नुकसान नहीं करता। इसके परे मक्खन या वनस्पति ज़्यादा नुकसानदेह होता है।  
दरअसल पिछले एक दशक की बात करें तो दिल की बीमारियां लोगों में तेजी से बढ़ीं और इसके लिए कोलेस्ट्रॉल को ज़िम्मेदार ठहराया गया। मेडिकल एक्सपर्ट ने लोगों को तला-भुना खाने से मना किया। लोगों ने तेल और मक्खन के साथ घी पर भी रोक लगा दी, जबकि घी मक्खन और तेल के मुकाबले काफी कम नुकसानदेह होता है। इस बात को समझने के लिए हमें 'हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन' और 'लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन' के फ़र्क़ को समझना होगा। हमारे शरीर के लिए हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन नुकसानदेह नहीं होता, क्योंकि यह रक्त कणिकाओं से कोलेस्ट्रॉल को अलग करके लिवर में ट्रांसफर कर देता है, जबकि लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन धमनियों से चिपक जाता है। घी में पहली तरह वाला यानी हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन पाया जाता है, इसलिए घी हमें उतना नुकसान नहीं करता। इसके परे मक्खन या वनस्पति ज़्यादा नुकसानदेह होता है।  


===खूबियां===
===खूबियां===

Revision as of 08:57, 3 June 2012

thumb|250px|देसी घी

  • मूलत: दुग्ध वसा, गाय के दूध में प्राकृतिक वसा संघटक और मक्खन का प्रमुख अवयव है। शुद्ध घी पिघले हुए मक्खन के समान ऊपर आ जाता है और इसे बाहर आसानी निकाला जा सकता है तथा इसे बिना प्रशीतित किए कई महीनों तक रखा जा सकता है।
  • घी का उपयोग भोजन बनाने और ख़ास व्यंजनों में किया जाता है। घी का प्रयोग दैनिक जीवन में किया जाता है- जैसे रोटी, परांठा, सब्जी आदि के लिए घी का प्रयोग किया जाता है।
  • रासायनिक रूप से घी अनिवार्यत: पॉल्मिटिक, ओलिइक, मेरिस्टिक और स्टीआरिक जैसे अम्लवसीय अम्लों से निकाले गए ट्राइग्लिसराइड के मिश्रण का बना होता है। घी के वसीय अम्ल का संयोजन इसे उत्पन्न करने वाले पशु के आहार के अनुसार भिन्न होता है। सम्पूर्ण संतुलित घी में इन अम्लों की मात्रा की गणना में रीचर्ट-मिस्सल या रीचर्ट-वोलनी संख्या महत्त्वपूर्ण है।

देसी घी

आयुर्वेद में घी को काफी फ़ायदेमंद बताया गया है। आयुर्वेद घी की मेडिसिनल वैल्यू का बखान भी करता है। आयुर्वेद की कई ऐसी दवाएं हैं, जिनके निर्माण में देसी घी का इस्तेमाल किया जाता है।

घी सेहत के लिए कई मायनों में फ़ायदेमंद है। ये हमारे ऑर्गन को दुरुस्त रखता है। घी हमारे शरीर में कई ऐसे रसायनों का निर्माण करता है, जो हमारी पाचन प्रक्रिया को आसान बनाते हैं। खास बात यह कि हम घी में जब भी कोई दवा या दूसरे पौष्टिक तत्व मिलाते हैं तो उस दवा या तत्व की न्यूट्रीशनल वैल्यू दोगुनी हो जाती है। कई बीमारियों में घी खाने से काफी आराम मिलता है। मसलन शरीर के कुछ खास हिस्सों पर होने वाला फ्रेक्टर, त्वचा और आंखों के रोग और कई तरह की सजर्री इनमें शामिल हैं। घी हमारे शरीर को ताकत और त्वचा को चमक देता है। घी की तासीर ठंडी होती है, इसीलिए यह पेट की कई बीमारियों जैसे गैस्टिक अल्सर में काफी आराम पहुंचाता है।

भ्रांतियां

इन तमाम फायदों के बावजूद पिछले कई साल में घी की लोकप्रियता घटी है और लोगों ने इसे खाना काफी कम सा कर दिया है। इसकी वजह यह है कि घी के साथ कई तरह की भ्रांतियां जुड़ गई हैं। इसीलिए लोग इसे सेहत के लिए नुकसानदेह मानते हैं और खाना बंद कर देते हैं। हमें लगता है कि हमें सैचुरेटेड फैट से बचना चाहिए। या यह कि घी शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ा देता है। हम मोटे हो जाते हैं। दिल की बीमारियां हमें घेर लेती हैं वगैरह-वगैरह। जबकि घी कई मायनों में हमारे शरीर के लिए फ़ायदेमंद है। सीमित मात्रा में इसका सेवन करने से शरीर को कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं।

हमारा शरीर ठीक से काम करता रहे, इसके लिए जरूरी है कि ये दोनों तत्व हमारे शरीर में जाएं। हां, इनकी मात्रा थोड़ी कम होनी चाहिए। अगर कोलेस्ट्रॉल पर पूरी तरह से फुल स्टॉप लगा दें तो हमारा नर्वस सिस्टम ठीक से काम करना छोड़ देगा। कोलेस्ट्रॉल हमारी हड्डियों को मजबूत करता है। हार्मोन का संतुलन बनाए रखता है। शरीर में विटामिन डी का निर्माण करता है। इसीलिए हमें थोड़ी-थोड़ी मात्र में घी खाते रहना चाहिए। इसका सेवन पूरी तरह से बंद नहीं करना चाहिए। एक दिन में चार से पांच चम्मच घी खाने से कोई नुकसान नहीं होता। यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति को दिल की बीमारी है या कोलेस्ट्रॉल असंतुलित है तो भी वह दिन में एक चम्मच घी आराम से खा सकता है।

दरअसल पिछले एक दशक की बात करें तो दिल की बीमारियां लोगों में तेजी से बढ़ीं और इसके लिए कोलेस्ट्रॉल को ज़िम्मेदार ठहराया गया। मेडिकल एक्सपर्ट ने लोगों को तला-भुना खाने से मना किया। लोगों ने तेल और मक्खन के साथ घी पर भी रोक लगा दी, जबकि घी मक्खन और तेल के मुकाबले काफी कम नुकसानदेह होता है। इस बात को समझने के लिए हमें 'हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन' और 'लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन' के फ़र्क़ को समझना होगा। हमारे शरीर के लिए हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन नुकसानदेह नहीं होता, क्योंकि यह रक्त कणिकाओं से कोलेस्ट्रॉल को अलग करके लिवर में ट्रांसफर कर देता है, जबकि लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन धमनियों से चिपक जाता है। घी में पहली तरह वाला यानी हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन पाया जाता है, इसलिए घी हमें उतना नुकसान नहीं करता। इसके परे मक्खन या वनस्पति ज़्यादा नुकसानदेह होता है।

खूबियां

घी में तीन ऐसी खूबियां हैं, जिनकी वजह से इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। पहली बात यह कि घी में 'शॉर्ट चेन फैटी एसिड' होते हैं, जिसकी वजह से यह पचने में आसान होता है। ये हमारे हॉर्मोन के लिए भी फ़ायदेमंद होते हैं, जबकि मक्खन में 'लॉन्ग चेन फैटी एसिड' ज़्यादा होते हैं, जो नुकसानदेह होते हैं। घी में खाली कैलोरी ही नहीं होती। इसमें विटामिन ए, डी और कैल्शियम, फॉस्फोरस, मिनरल्स, पोटेशियम जैसे कई पोषक तत्व भी होते हैं। माना जाता है कि घी खाने से जोड़ भी मजबूत होते हैं और बढ़ती उम्र में भी जोड़ों का दर्द नहीं सताता। आयुर्वेद की मानें तो इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं जो हड्डियों के लिए जरूरी तरल पदार्थ का निर्माण करते हैं, जिससे जोड़ मजबूत होते हैं।

देसी घी के गुणकारी प्रयोग

  • एक चम्मच शुद्ध घी, एक चम्मच पिसी शकर, चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाटकर गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
  • एक बड़े कटोरे में 100 ग्राम शुद्ध घी लेकर इसमें पानी डालकर हलके हाथ से फेंटकर लगाकर पानी फेंक दें। यह एक बार घी धोना हुआ। ऐसे 100 बार पानी से घी को धोकर कटोरे को थोड़ी देर के लिए झुकाकर रख दें, ताकि थोड़ा बहुत पानी बच गया हो तो वह भी निकल जाए। अब इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें और चौड़े मुँह की शीशी में भर दें। यह घी, खुजली, फोड़े फुंसी आदि चर्म रोगों की उत्तम दवा है।
  • रात को सोते समय एक गिलास मीठे दूध में एक चम्मच घी डालकर पीने से शरीर की खुश्की और दुर्बलता दूर होती है, नींद गहरी आती है, हड्डी बलवान होती है और सुबह शौच साफ आता है। शीतकाल के दिनों में यह प्रयोग करने से शरीर में बलवीर्य बढ़ता है और दुबलापन दूर होता है।
  • घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शकर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा कुनकुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है।



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