कैलिको: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Adding category Category:हस्तशिल्प उद्योग (को हटा दिया गया हैं।)) |
No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{हस्तशिल्प उद्योग}} | |||
[[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:इतिहास कोश]] | ||
[[Category:वाणिज्य व्यापार कोश]] | [[Category:वाणिज्य व्यापार कोश]] |
Revision as of 06:45, 18 August 2012
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
कैलिको एक या अधिक रंगों में साधारण डिज़ाइनों में छपे सभी सूती, सादे या मोटे रेशम में बुने हुए वस्त्र को कहा जाता है।
इतिहास
छींट का उद्भव 11वीं शताब्दी के लगभग कालीकट, भारत में हुआ था और 17वीं और 18वीं शताब्दी में छींट भारत और यूरोप के बीच व्यापार की महत्त्वपूर्ण वस्तु थी। 12वीं सदी में एक भारतीय लेखक, हेमचंद्र ने छिंपा या छींट छापों का उल्लेख किया है, जो छापंती या मुद्रित कमल के रूपांकन से सजी हुई थी। इसकी मौजूदगी के प्रमाण के रूप में सबसे पहला टुकड़ा (15वीं सदी में) भारत में नहीं, बल्कि काहिरा के पास फुस्तात में पाया गया। मुग़ल काल में छींट छपाई के प्रमुख केंद्र गुजरात, राजस्थान और बुरहानपुर, मध्य प्रदेश में थे। इंग्लैंड में छपी हुई छींट का उपयोग परदों और चादरों के साथ-साथ परिधानों के लिए किया जाता था, किंतु भारत में सामान्यतः इसका उपयोग केवल वस्त्रों के लिए होता था। भारतीय महिलाओं द्वारा सबसे अधिक पहना जाने वाला परिधान, साड़ी, लगभग हमेशा छपी हुई होती थी।
घरेलू उपयोग की वस्तुओं और परिधान की वस्तुओं के लिए छींट की एक बड़ी मात्रा को विरंजित कर रंगाई और छपाई की जाती थी। छींप का कपड़ा उसके विभिन्न उपयोगों के आधार पर अनेक प्रकारों और गुणवत्ता में पाया जाता है, जिसमें अत्यधिक महीन और पारदर्शी से कुछ खुरदुरी और अधिक मज़बूत संरचना वाली श्रेणियाँ शामिल हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख