साड़ी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{पुनरीक्षण}}
[[चित्र:Indian-Sari.jpg|thumb|250px|साड़ी में महिलायें]]
[[चित्र:Indian-Sari.jpg|thumb|250px|साड़ी में महिलायें]]
'''साड़ी''' भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्म पहनावा है। पांच या छह मीटर लंबे कपड़े के टुकड़े के रूप में तैयार साड़ी रेशमी, सूती या कृत्रिम कच्चे माल की बनी होती है, जो छापे, बुने डिज़ाइन वाली साड़ी का एक छोर एक कंधे के उपर से होकर बाई या दाई ओर लटकता छोड़ दिया जाता है अथवा सिर पर ओढ़ा जाता है।
'''साड़ी''' भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्य पहनावा है। पांच या छह मीटर लंबे कपड़े के टुकड़े के रूप में तैयार साड़ी रेशमी, सूती या कृत्रिम कच्चे माल की बनी होती है, जो छापे, बुने डिज़ाइन वाली साड़ी का एक छोर, एक कंधे के उपर से होकर बाईं या दाईं ओर लटकता हुआ छोड़ दिया जाता है अथवा सिर पर ओढ़ा जाता है।
====इतिहास====
====इतिहास====
दूसरी [[शताब्दी]] ई.पू. की [[मूर्तिकला|मूर्तियों]] में पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के ऊपरी भाग को अनावृत दर्शाया गया है। ये कमर के गिर्द साड़ी इस प्रकार लपेटे हुए हैं कि पैरों के बीच सामने वाले भाग में चुन्नटें बन जाती हैं। इसमें 12वीं सदी तक कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। [[भारत]] के उत्तरी और मध्य भाग को जीतने के बाद [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने ज़ोर दिया कि शरीर को पूरी तरह ढका जाए। [[हिंदू]] महिलाएं साड़ी को एक छोटे अंग वस्त्र (ब्लाउज) तथा लहंगे (पेटीकोट) के साथ पहनती हैं, जिसमें साड़ी को खोंसकर कमर से पैर तक एक लंबा घेरा बना लिया जाता हौ। [[महाराष्ट्र]] में अक्सर नौगज़ी साड़ी लांधदार बांधी जाती है।
दूसरी [[शताब्दी]] ई.पू. की [[मूर्तिकला|मूर्तियों]] में पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के ऊपरी भाग को अनावृत दर्शाया गया है। ये कमर के इर्द-गिर्द साड़ी इस प्रकार लपेटे हुए हैं कि पैरों के बीच सामने वाले भाग में चुन्नटें बन जाती हैं। इसमें 12वीं सदी तक कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। [[भारत]] के उत्तरी और मध्य भाग को जीतने के बाद [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने ज़ोर दिया कि शरीर को पूरी तरह से ढका जाए। [[हिंदू]] महिलाएं साड़ी को एक छोटे से अंग वस्त्र जिसे सामान्यत: ब्लाउज़ तथा लहंगे जिसे बोलचाल की भाषा में पेटीकोट कहते हैं, के साथ पहनतीं हैं, जिसमें साड़ी को खोंसकर कमर से पैर तक एक लंबा घेरा बना लिया जाता है। [[महाराष्ट्र]] में अक्सर नौ गज़ की साड़ी लांघदार बांधी जाती है।


{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 01:35, 20 November 2012

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

thumb|250px|साड़ी में महिलायें साड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्य पहनावा है। पांच या छह मीटर लंबे कपड़े के टुकड़े के रूप में तैयार साड़ी रेशमी, सूती या कृत्रिम कच्चे माल की बनी होती है, जो छापे, बुने डिज़ाइन वाली साड़ी का एक छोर, एक कंधे के उपर से होकर बाईं या दाईं ओर लटकता हुआ छोड़ दिया जाता है अथवा सिर पर ओढ़ा जाता है।

इतिहास

दूसरी शताब्दी ई.पू. की मूर्तियों में पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के ऊपरी भाग को अनावृत दर्शाया गया है। ये कमर के इर्द-गिर्द साड़ी इस प्रकार लपेटे हुए हैं कि पैरों के बीच सामने वाले भाग में चुन्नटें बन जाती हैं। इसमें 12वीं सदी तक कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। भारत के उत्तरी और मध्य भाग को जीतने के बाद मुसलमानों ने ज़ोर दिया कि शरीर को पूरी तरह से ढका जाए। हिंदू महिलाएं साड़ी को एक छोटे से अंग वस्त्र जिसे सामान्यत: ब्लाउज़ तथा लहंगे जिसे बोलचाल की भाषा में पेटीकोट कहते हैं, के साथ पहनतीं हैं, जिसमें साड़ी को खोंसकर कमर से पैर तक एक लंबा घेरा बना लिया जाता है। महाराष्ट्र में अक्सर नौ गज़ की साड़ी लांघदार बांधी जाती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख