होली की ठिठोली -दुष्यंत कुमार: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Dushyant-kumar.jpg...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 43: | Line 43: | ||
लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप, | लो हक़ की बात की तो उखड़ने लगे हैं आप, | ||
शी! होंठ सिल के बैठ गए ,लीजिए हुजूर।<ref>ये ग़ज़ल 1975 में ’धर्मयुग’ के होली-अंक में प्रकाशित हुई थीं।</ref> | शी! होंठ सिल के बैठ गए, लीजिए हुजूर।<ref>ये ग़ज़ल 1975 में ’धर्मयुग’ के होली-अंक में प्रकाशित हुई थीं।</ref> | ||
</poem> | </poem> |
Latest revision as of 13:29, 29 December 2012
| ||||||||||||||||||
|
पत्थर नहीं हैं आप तो पसीजिए हुज़ूर। |
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ये ग़ज़ल 1975 में ’धर्मयुग’ के होली-अंक में प्रकाशित हुई थीं।