कुब्जा दासी: Difference between revisions
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Revision as of 13:29, 16 June 2010
- कुब्जा बलराम तथा ग्वालों के साथ कृष्ण मथुरा के बाज़ार में घूम रहे थे। उन्हें एक सुदंर मुख तथा कुबड़ी कमरवाली स्त्री दिखायी दी।
- वह कंस के लिए अंगराग बनाती थी। उससे अंगराग लेकर कृष्ण तथा बलराम ने लगाया तदनंतर उससे प्रसन्न होकर कृष्ण ने उसके दोनों पंजों को अपने पैरों से दबाकर हाथ ऊपर उठवाकर ठोड़ी को ऊपर उठाया, इस प्रकार उसका कुबड़ापन ठीक हो गया।
- उसके बहुत आमन्त्रित करने पर उसके घर जाने का वादा कर कृष्ण ने उसे विदा किया।
- कालांतर में कृष्ण ने उद्धव के साथ कुब्जा का आतिथ्य स्वीकार किया। कुब्जा के साथ प्रेम-क्रीड़ा भी की।
- उसने कृष्ण से वर मांगा कि वे चिरकाल तक उसके साथ वैसी ही प्रेम-क्रीड़ा करते रहें। [1] [2]