सुकुमार सेन: Difference between revisions

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दरअसल [[1957]] के आम चुनाव में 419 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। इसमें कांग्रेस को 371 सीटों पर सफलता हासिल हुई। अबतक के दोनों चुनाव पार्टी के लिए बहुत ही अच्छे रहे, लेकिन अगला चुनाव कांग्रेस और नेहरू के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला था। क्योंकि एक तो [[स्वतंत्रता आंदोलन]] की खुमारी उतर चुकी थी और दूसरा कांग्रेस के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे थे।<ref>{{cite web |url=http://khabar.ibnlive.in.com/news/9348/1 |title=दूसरे चुनाव में सफलता का श्रेय चुनाव आयोग को |accessmonthday= 7 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आईबीएन खबर |language=हिंदी }}</ref>
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[[1952]] में [[भारत]] के पहले आम चुनावों के दौरान सुदूर पहाड़ी गाँवों तक चुनाव प्रक्रिया को पहुँचाने के लिए नदियों के ऊपर विशेष रूप से पुल बनवाए जाने पड़े। [[हिंद महासागर]] के छोटे-छोटे टापुओं तक मतदान सामग्री पहुँचाने के लिए [[नौसेना]] के जलयानों का सहारा लेना पड़ा। लेकिन एक दूसरी अन्य समस्या भी थी जो भौगोलिक कम और सामाजिक ज्यादा थी। [[उत्तर भारत]] की ज्यादातर महिलाओं ने संकोचकवश मतदाता सूची में अपना खुद का नाम न लिखाकर, अमुक की पत्नी या फलाँ की माँ इत्यादि लिखा दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन इस बात से खासे नाराज थे। उनके विचार में यह प्रथा ‘अतीत का एक अजीबोगरीब और मूर्खतापूर्ण अवशेष’ था। उन्होंने चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे मतदाता सूची में सुधार करें और ऐसे ‘मतदाताओं के महज़ कौटुंबिक व्याख्या’ के स्थान पर उनका स्वयं का नाम अंकित करें। इसके बावजूद करीब 28 लाख से ज्यादा महिला मतदाताओं का नाम सूची से बाहर करना पड़ा। उनके नामों को हटाने से जो हंगामा खड़ा हुआ उसके बारे में सेन की राय थी कि यह अच्छा ही हुआ। इस विवाद से लोगों में जागरूकता आएगी और अगले चुनावों तक उनका यह पूर्वाग्रह दूर हो जाएगा। उस समय तक महिलाएँ अपने खुद के नामों के साथ मतदाता सूची में अंकित हो चुकी होंगी।<ref>{{cite web |url=https://sites.google.com/site/democracyconnect7/democracy-katha-hnd-06-03-2012 |title=स्वनामिनी |accessmonthday= 7 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=डेमोक्रेसी कथा |language=हिंदी }}</ref>
[[1952]] में [[भारत]] के पहले आम चुनावों के दौरान सुदूर पहाड़ी गाँवों तक चुनाव प्रक्रिया को पहुँचाने के लिए नदियों के ऊपर विशेष रूप से पुल बनवाए जाने पड़े। [[हिंद महासागर]] के छोटे-छोटे टापुओं तक मतदान सामग्री पहुँचाने के लिए [[नौसेना]] के जलयानों का सहारा लेना पड़ा। लेकिन एक दूसरी अन्य समस्या भी थी जो भौगोलिक कम और सामाजिक ज्यादा थी। [[उत्तर भारत]] की ज्यादातर महिलाओं ने संकोचकवश मतदाता सूची में अपना खुद का नाम न लिखाकर, अमुक की पत्नी या फलाँ की माँ इत्यादि लिखा दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन इस बात से खासे नाराज थे। उनके विचार में यह प्रथा ‘अतीत का एक अजीबोगरीब और मूर्खतापूर्ण अवशेष’ था। उन्होंने चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे मतदाता सूची में सुधार करें और ऐसे ‘मतदाताओं के महज़ कौटुंबिक व्याख्या’ के स्थान पर उनका स्वयं का नाम अंकित करें। इसके बावजूद करीब 28 लाख से ज्यादा महिला मतदाताओं का नाम सूची से बाहर करना पड़ा। उनके नामों को हटाने से जो हंगामा खड़ा हुआ उसके बारे में सेन की राय थी कि यह अच्छा ही हुआ। इस विवाद से लोगों में जागरूकता आएगी और अगले चुनावों तक उनका यह पूर्वाग्रह दूर हो जाएगा। उस समय तक महिलाएँ अपने खुद के नामों के साथ मतदाता सूची में अंकित हो चुकी होंगी।<ref>{{cite web |url=https://sites.google.com/site/democracyconnect7/democracy-katha-hnd-06-03-2012 |title=स्वनामिनी |accessmonthday= 7 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=डेमोक्रेसी कथा |language=हिंदी }}</ref>


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==संबंधित लेख==
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[[Category:राजनीति कोश]]
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Revision as of 07:20, 7 July 2013

सुकुमार सेन
पूरा नाम सुकुमार सेन
जन्म 1899
जन्म भूमि बंगाल
कर्म-क्षेत्र 'सुकुमार सेन' भारतीय गणराज्य के प्रथम मुख्य निर्वाचन आयुक्त / मुख्य चुनाव आयुक्त हैं।
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण
नागरिकता भारतीय
कार्यकाल 21 मार्च 1950 से 19 दिसंबर 1958 तक

सुकुमार सेन भारतीय गणराज्य के प्रथम मुख्य निर्वाचन आयुक्त / मुख्य चुनाव आयुक्त हैं। सुकुमार सेन 21 मार्च 1950 से 19 दिसंबर 1958 तक भारतीय गणराज्य के मुख्य निर्वाचन आयुक्त / मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। सुकुमार सेन को प्रशासकीय सेवा क्षेत्र में पद्म भूषण से 1954 में सम्मानित किया गया। ये पश्चिम बंगाल राज्य से हैं। 

लोकसभा चुनाव (1957)

भारत में लोकतंत्र सफलता से अपने पैर पसार चुका है। वैसे एक हकीकत ये भी है कि देश में हुए दूसरे चुनावों के एक बड़े हीरो थे मुख्य निर्वाचन कमिश्नर सुकुमार सेन। जिन्होंने पहले चुनाव को सफलता पूर्वक कराया तो दूसरे चुनाव में देश के करोड़ों रुपये बचा लिए। वहीं दूसरे आम चुनाव में पहली बार कांग्रेस के वर्चस्व को झटका लगा। केरल में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने राज्य की सत्ता पर कब्जा किया। इसी चुनाव में तमिलनाडु में डीएमके का जन्म हुआ यानी पहली बार देश के भीतर अलग तमिल राष्ट्र की भावना का जन्म। हालांकि डीएमके ने चुनाव में बहुत अच्छा परिणाम नहीं कर पाया, लेकिन केंद्र के लिए ये एक खतरे की घंटी थी। इस चुनाव की भी सारी जिम्मेदारी मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन के कंधों पर थी। सेन ने पहले चुनाव के बाद करीब पैंतीस लाख बैलेट बॉक्स को अच्छी तरह से बंद करके रखवा दिया था। एक बार फिर उन बैलेट बॉक्सेस को निकाला गया और दूसरे चुनाव में भी इस्तेमाल किया गया। जिससे दूसरे चुनाव में साढ़े चार करोड़ रुपये कम खर्च हुए। दरअसल 1957 के आम चुनाव में 419 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हुआ। इसमें कांग्रेस को 371 सीटों पर सफलता हासिल हुई। अबतक के दोनों चुनाव पार्टी के लिए बहुत ही अच्छे रहे, लेकिन अगला चुनाव कांग्रेस और नेहरू के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी करने वाला था। क्योंकि एक तो स्वतंत्रता आंदोलन की खुमारी उतर चुकी थी और दूसरा कांग्रेस के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे थे।[1]

लोकसभा चुनाव (1952)

1952 में भारत के पहले आम चुनावों के दौरान सुदूर पहाड़ी गाँवों तक चुनाव प्रक्रिया को पहुँचाने के लिए नदियों के ऊपर विशेष रूप से पुल बनवाए जाने पड़े। हिंद महासागर के छोटे-छोटे टापुओं तक मतदान सामग्री पहुँचाने के लिए नौसेना के जलयानों का सहारा लेना पड़ा। लेकिन एक दूसरी अन्य समस्या भी थी जो भौगोलिक कम और सामाजिक ज्यादा थी। उत्तर भारत की ज्यादातर महिलाओं ने संकोचकवश मतदाता सूची में अपना खुद का नाम न लिखाकर, अमुक की पत्नी या फलाँ की माँ इत्यादि लिखा दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन इस बात से खासे नाराज थे। उनके विचार में यह प्रथा ‘अतीत का एक अजीबोगरीब और मूर्खतापूर्ण अवशेष’ था। उन्होंने चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे मतदाता सूची में सुधार करें और ऐसे ‘मतदाताओं के महज़ कौटुंबिक व्याख्या’ के स्थान पर उनका स्वयं का नाम अंकित करें। इसके बावजूद करीब 28 लाख से ज्यादा महिला मतदाताओं का नाम सूची से बाहर करना पड़ा। उनके नामों को हटाने से जो हंगामा खड़ा हुआ उसके बारे में सेन की राय थी कि यह अच्छा ही हुआ। इस विवाद से लोगों में जागरूकता आएगी और अगले चुनावों तक उनका यह पूर्वाग्रह दूर हो जाएगा। उस समय तक महिलाएँ अपने खुद के नामों के साथ मतदाता सूची में अंकित हो चुकी होंगी।[2]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दूसरे चुनाव में सफलता का श्रेय चुनाव आयोग को (हिंदी) आईबीएन खबर। अभिगमन तिथि: 7 जुलाई, 2013।
  2. स्वनामिनी (हिंदी) डेमोक्रेसी कथा। अभिगमन तिथि: 7 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख