शारंगदेव: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:35, 2 September 2013
शारंगदेव आयुर्वेदाचार्य विशिष्ट दार्शनिक और संगीतशास्त्र के प्रवीण विद्वान थे। उनकी कृति 'संगीतरत्नाकर' सांगीतिक विषय वस्तुओं का अत्यन्त व्यवस्थित विषय विन्यास की दृष्टि से सप्त अध्याय की व्यवस्था के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। यह भारतीय संगीत के ऐतिहासिक ग्रन्थों में अनन्य है। 12वीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखे गये सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार से वर्णन है।
- शारंगदेव स्वयं आयुर्वेदाचार्य विशिष्ट दार्शनिक और संगीतशास्त्र के एक निपुण विद्वान थे। वे मूलत: कश्मीर के रहने वाले थे।
- दक्षिण भारत के देवगिरि (दौलताबाद) राजा सिंह के राजाश्रित शारंगदेव संगीत विद्वान थे, और यहीं पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति 'संगीतरत्नाकर' की रचना की थी।
- 'संगीतरत्नाकर' ग्रन्थ का विषय विन्यास स्वर, राग, प्रकीर्णक, प्रबन्ध, ताल, वाद्य और नृत्य इन सात अध्यायों में किया गया है। यही कारण है कि यह ग्रन्थ विद्वतजनों में 'सप्ताध्यायी' नाम से प्रसिद्ध है।
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