वाजिद अली शाह: Difference between revisions

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Revision as of 09:36, 2 March 2014

thumb|वाजिद अली शाह (अभिकल्पित चित्र) वाजिद अली शाह (1822 - 1887) लखनऊ और अवध के नवाब रहे। ये ब्रिटिश शासन से पहले के अंतिम नवाब थे। ये अमजद अली शाह के पुत्र थे। जब राष्ट्र ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया तब इनके बेटे बिरजिस क़द्र अवध के अंतिम नवाब थे। वाजिद अली शाह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था।

कला प्रेमी शासक

संगीत की दुनिया में नवाब वाजिद अली शाह का नाम अविस्मरणीय है। ये 'ठुमरी' इस संगीत विधा के जन्मदाता के रूप में जाने जाते हैं। इनके दरबार में हर दिन संगीत का जलसा हुआ करता था। इनके समय में ठुमरी को कत्थक नृत्य के साथ गाया जाता था। इन्होंने कई बेहतरीन ठुमरियां रची। कहा जाता है कि जब अंग्रेज़ों ने अवध पर कब्जा कर लिया और नवाब वाजिद अली शाह को देश निकाला दे दिया, तब उन्होंने 'बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये' यह प्रसिद्ध ठुमरी गाते हुए अपनी रैयत से अलविदा कहा।

वाजिद अली शाह की प्रसिद्ध ठुमरी

बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये,
बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाये…
चार कहर मिल मोरी डोलिया सजावें,
मोरा अपना बेगाना छूटो जाये।
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये…
आंगन तो पर्वत भयो और देहरी भयी बिदेस,
जाये बाबुल घर आपनो मैं चली पिया के देस,
बाबुल मोरा नैहर छूटो जाये...[1]

वाजिद अली शाह की प्रसिद्ध ग़ज़ल

उर्दू, अरबी और फ़ारसी के विद्वान् व कलापारखी नवाब वाजिद अली शाह ने एक बढ़कर एक बेहतरीन ग़ज़लें लिखीं। इनकी लिखी हुई एक दुर्लभ ग़ज़ल है-

साकी कि नज़र साकी का करम
सौ बार हुई सौ बार हुआ
ये सारी खुदाई ये सारा जहाँ
मैख्वार हुई मैख्वार हुआ
जब दोनों तरफ से आग लगी
राज़ी-व-रजा जलने के लिए
तब शम्मा उधर परवाना इधर
तैयार हुई तैयार हुआ[1]

निधन

अंग्रेज़ों के देश निकला देने के बाद नवाब वाजिद अली शाह ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में शरण ली। 21 सितम्बर सन 1887 में कलकत्ता के मटियाबुर्ज़ में 65 साल की उम्र में इस कला और संगीत परखी अवध के अंतिम नवाब की मौत हो गयी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 अवध के आखरी नवाब वाजिद अली शाह (हिंदी) तीर-ए-नज़र। अभिगमन तिथि: 2 मार्च, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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