मरणोत्तर जीवन -स्वामी विवेकानन्द: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Marnottar jeevan-vivekanand.jpg |चित्र का नाम='...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
Line 40: Line 40:
{{स्वामी विवेकानंद की रचनाएँ}}  
{{स्वामी विवेकानंद की रचनाएँ}}  
[[Category:स्वामी विवेकानन्द]]
[[Category:स्वामी विवेकानन्द]]
[[Category:योग दर्शन]][[Category:हिन्दू दर्शन]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:योग दर्शन]][[Category:हिन्दू दर्शन]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:दर्शन कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 12:16, 21 March 2014

मरणोत्तर जीवन -स्वामी विवेकानन्द
लेखक स्वामी विवेकानन्द
मूल शीर्षक मरणोत्तर जीवन
प्रकाशक रामकृष्ण मठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2002
देश भारत
भाषा हिंदी
मुखपृष्ठ रचना अजिल्द
विशेष इस पुस्तक में स्वामी जी ने पुनर्जन्म के संबंध में हिन्दू मत तथा पाश्चात्य मत दोनों की बड़ी सुन्दर रूप से विवेचना की है।

मरणोत्तर जीवन पुस्तक स्वामी विवेकानन्द जी के मौलिक अंग्रेज़ी लेखों का हिन्दी अनुवाद है। इस पुस्तक में स्वामी जी ने पुनर्जन्म के संबंध में हिन्दू मत तथा पाश्चात्य मत दोनों की बड़ी सुन्दर रूप से विवेचना की है और इन दोनों मतों की पारस्परिक तुलना करते हुए इस विषय को भलीभाँति समझा दिया है कि हिन्दुओं का पुनर्जन्मवाद वास्तव में किस प्रकार नितान्त तर्कयुक्त है, साथ ही यह भी मनुष्य की अनेकानेक प्रवृत्तियों का स्पष्टीकरण केवल इसी के द्वारा किस प्रकार हो सकता है।

पुस्तक के अंश

बृहत् पौराणिक ग्रन्थ ‘‘महाभारत’’ में एक आख्यान है जिसमें कथानायक युधिष्ठिर से धर्म ने प्रश्न किया कि संसार में सब से आश्चर्यजनक क्या है ? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि मनुष्य अपने जीवन भर प्राय: प्रतिक्षण अपने चारों ओर सर्वत्र मृत्यु का ही दृश्य देखता है, तथापि उसे ऐसा दृढ़ और अटल विश्वास है कि मैं मृत्युहीन हूँ। और मनुष्य-जीवन में यह सचमुच अत्यन्त आश्चर्यजनक है। यद्यपि भिन्न-भिन्न मतावलम्बी भिन्न-भिन्न जमाने में इसके विपरीत दलीलें करते आये और यद्यपि इन्द्रिय द्वारा ग्राह्य और अतीन्द्रिय सृष्टियों के बीच जो रहस्य का परदा सदा पड़ा रहेगा उसका भेदन करने में बुद्ध असमर्थ है, तथापि मनुष्य पूर्ण रूप से यही मानता है कि वह मरणहीन है। हम जन्म भर अध्ययन करने के पश्चात् भी अन्त में जीवन और मृत्यु की समस्या को तर्क द्वारा प्रामाणित करके, ‘‘हाँ’’ या ‘‘नहीं’’ में उत्तर देने में असफल रहेंगे। हम मानव-जीवन की नित्यता या अनित्यता के पक्ष में या विरोध में चाहे जितना बोले या लिखें, शिक्षा दे या उपदेश करे, हम इस पक्ष के या उस पक्ष के प्रबल या कट्टर पक्षपाती बन जायँ; एक से एक पेचीदे सैकड़ों नामों का आविष्कार करके क्षण भर के लिए इस भ्रम में पड़कर भले ही शान्त हो जाएँ कि हमने समस्या को सदा के लिए हल कर डाला; हम अपनी शक्ति भर किसी एक विचित्र धार्मिक अन्धविश्वास या और भी अधिक आपत्तिजनक वैज्ञानिक अन्धविश्वासों से चाहे चिपकें रहें, परन्तु अन्त में तो यही देखेंगे कि हम तर्क की संकीर्ण गली में खिलवाड़ ही कर रहे हैं और केवल बार-बार मार गिराने के लिए मानो एक के बाद एक बौद्धिक गोटियाँ उठाते और रखते जा रहे हैं।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मरणोत्तर जीवन (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख