चलार्थ पत्र मुद्रणालय, नासिक: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
||
Line 17: | Line 17: | ||
*[http://cnpnashik.spmcil.com/Interface/Home.aspx आधिकारिक वेबसाइट] | *[http://cnpnashik.spmcil.com/Interface/Home.aspx आधिकारिक वेबसाइट] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{ | {{भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड}} | ||
[[Category:भारतीय टकसाल]] [[Category:भारत सरकार]] [[Category:अर्थव्यवस्था]] [[Category:वित्त मंत्रालय]] [[Category:गणराज्य संरचना कोश]] | [[Category:भारतीय टकसाल]] [[Category:भारत सरकार]] [[Category:अर्थव्यवस्था]] [[Category:वित्त मंत्रालय]] [[Category:गणराज्य संरचना कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 14:25, 7 September 2014
चलार्थ पत्र मुद्रणालय, नासिक महाराष्ट्र में स्थित है जो भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड की एक इकाई है तथा भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्वाधीन है।
स्थापना
भारतीय रिज़र्व बैंक की आवश्यकतानुसार और उसके द्वारा समय समय पर दिए गए मांग-पत्र के अनुसार विभिन्न मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की छपाई के उद्देश्य से चलार्थ पत्र मुद्रणालय, नासिक रोड की वर्ष, 1928 में स्थापना हुई। सभी नौ टकसाल / मिल तथा मुद्रणालय, जो पूर्व में वित्त मंत्रालय के अधीन कार्यरत थे उनका निगमिकरण होने के बाद भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड के रूप में स्थापित हुए। भा.प्र.मु.नि.नि.लि. 13 जनवरी 2006 को पंजीकृत हुआ जिसका मुख्यालय जवाहर व्यापार भवन, नई दिल्ली में स्थित है। यह भारत सरकार, वित्त मंत्रालय के पूर्ण स्वामित्वाधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
इतिहास
कागज़ी मुद्रा में विकास
प्राचीन दिनों में वाणिज्य और व्यापार में वस्तु-विनिमय प्रणाली प्रचलन में थी। मानव-जाति की सभ्यता में हुए विकास के कारण जैसे जैसे समय बितता गया वस्तु-विनिमय की प्रथा समाप्त हुई। वित्तीय सौदे के लिए लम्बे समय तक धातु के टोकन प्रयोग में लाए गए जो बाद में सिक्के बन गए। दसवीं शताब्दी में चीन में कागज करेंसी विकसित हुई। तथापि, कागज़ी मुद्रा का भारत में एक सम्मानित / पूजनीय इतिहास है। इसके मूल का पता 18वीं शताब्दी में चला जब वर्ष 1770 में बैंक ऑफ हिंदुस्तान ने कागज़ी रुपया जारी किया। इसी प्रकार जनरल बैंक ऑफ बंगाल और बिहार ने प्रॉमिसरी नोट जारी किए जो अल्पावधी के लिए चलते थे। उसके बाद 19वीं शताब्दी में अर्ध-सरकारी स्थापना के साथ कागज़ी रूपये जारी किए गए। 1861 में भारत सरकार द्वारा भारत सरकार में कागज़ी रूपये / मुद्रा अधिनियमित किए और भारत सरकार को रुपये जारी करने का एकाधिकार प्रदान किया और इसी दौरान ब्रिटीश काल में करेंसी नियंत्रण कार्यालय द्वारा कागज़ी मुद्रा प्रबंधन का प्रबंधन किया जाता था।
भुगतान का वचन
पूर्व कागज़ी मुद्रा ने उस स्तर को प्रस्तुत किया था जहां भैतिक, सिक्कों का मूलभूत / सांकेतिक मूल्य का स्वामित्व था उसे बदल कर "भुगतान का वचन" कर उसे भौतिक मूल्य के समकक्ष कर दिया। बाद में कागज़ी रुपये `"भूगतान का वचन" कर उसे भौतिक मूल्य के समकक्ष कर दिया। बाद में कागजी रुपये को कागज़ी मुद्रा में परिवर्तित कर दिया जहां वह किसी समकक्ष के मूल को नहीं दर्शाता था लेकिन वह अपने आप में एक टोकन था। वचन देने के परिच्छेद को छोटा कर दिया और उस में नाम की व्यवस्था को हटा दिया और निम्न प्रकार से संशोधित किया गया जैसे "मैं, धारक को मांग करने पर का भुगतान करने का वचन देता हूँ"
करेंसी मुद्रणालय की भारत में स्थापना
विश्व में करेंसी और बैंक नोटों का एक उपयोगी वस्तु के रूप में बहुमात्रा में उत्पादन किया गया था। 1922 में इंडियन मर्चंट चेंबर्स और इंडियन करेंसी कमिटी ब्यूरो की मांग के अनुसार प्रतिभूति मुद्रणालय की स्थापना का कार्य लेफ्टिनंट जनरल जी. एच. विल्स, मुंबई मिंट के मास्टर और मिस्टर एफ.डी. असकोली, मुद्रक एवं लेखन-सामग्री नियंत्रक को सौंपा गया था। इस प्रकार प्रतिभूति मुद्रणालय की स्थापना 1925 में और करेंसी नोट प्रेस की स्थापना 1928 में नासिक (महाराष्ट्र) में हुई। करेंसी नोट प्रेस की 1928 में नासिक में हुई स्थापना के साथ भारत में करेंसी नोटों का मुद्रण प्रगतिशील हुआ। 1932 तक करेंसी नोट प्रेस में भारतीय करेंसी नोटों के सभी वर्ण प्रकार की छपाई हुआ करती थी।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख