झारखण्ड के वाद्य यंत्र: Difference between revisions

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अवनध्द वाद्य मुख्यत: चमड़े के वाद्य हैं। [[झारखण्ड]] में चमड़ा निर्मित वाद्यों की संख्या सबसे अधिक है। उनको ताल वाद्य भी कहा जाता है। उनमें मांदल या मांदर, [[ढोल]], ढाक, धमसा, [[नगाड़ा]], कारहा, तासा, जुड़ी-नागरा, ढप, चांगु, खंजरी, [[डमरू]], विषम ढाकी आदि आते हैं। उनमें मांदर, ढोल, ढाक, डमरू, विषम ढकी आदि मुख्य ताल वाद्य हैं। धमसा, कारहा, तासा, जुड़ी नागरा आदि गौण ताल वाद्य हैं। वे सभी वाद्य नृत्य के साथ बजाये जाते हैं।
अवनध्द वाद्य मुख्यत: चमड़े के वाद्य हैं। [[झारखण्ड]] में चमड़ा निर्मित वाद्यों की संख्या सबसे अधिक है। उनको ताल वाद्य भी कहा जाता है। उनमें मांदल या मांदर, [[ढोल]], ढाक, धमसा, [[नगाड़ा]], कारहा, तासा, जुड़ी-नागरा, ढप, चांगु, खंजरी, [[डमरू]], विषम ढाकी आदि आते हैं। उनमें मांदर, ढोल, ढाक, डमरू, विषम ढकी आदि मुख्य ताल वाद्य हैं। धमसा, कारहा, तासा, जुड़ी नागरा आदि गौण ताल वाद्य हैं। वे सभी वाद्य नृत्य के साथ बजाये जाते हैं।
====घन वाद्य====
====घन वाद्य====
घन वाद्य धातुओं से बनाये जाते हैं। खासकर कांसे से। उनमें झाल, [[झांझ]], [[करताल]], [[घंटा]], थाला, मंदिरा, काठी आदि शामिल हैं। उनकी आवाज गूंजती है। उन्हें 'सहायक ताल वाद्य' कहा जाता है। गीत, [[संगीत]] और [[नृत्य]] में उनका प्रयोग होता है।
घन वाद्य धातुओं से बनाये जाते हैं। ख़ासकर कांसे से। उनमें झाल, [[झांझ]], [[करताल]], [[घंटा]], थाला, मंदिरा, काठी आदि शामिल हैं। उनकी आवाज गूंजती है। उन्हें 'सहायक ताल वाद्य' कहा जाता है। गीत, [[संगीत]] और [[नृत्य]] में उनका प्रयोग होता है।
==वाद्य यंत्र==
==वाद्य यंत्र==
झारखण्ड में बजाये जाने वाले प्रमुख वाद्य यन्त्र निम्नलिखित हैं-
झारखण्ड में बजाये जाने वाले प्रमुख वाद्य यन्त्र निम्नलिखित हैं-

Latest revision as of 13:29, 1 November 2014

झारखण्ड के निवासियों के लिए नृत्य, गीत और संगीत प्राण हैं। सब में कई प्रकार के वाद्यों का प्रयोग होता है। विभिन्न प्रकार के गीत-संगीत, नृत्य, उत्सव, पर्व तथा त्योहार आदि पर ये वाद्य बजाए जाते हैं। ये वाद्य यंत्र झारखण्ड की संस्कृति की प्रमुख पहचान हैं।

प्रकार

झारखण्ड में वाद्य चार प्रकार के होते हैं-

  1. तंतु वाद्य
  2. सुषिर वाद्य
  3. अवनध्द वाद्य (चमड़े के बने मुख्य ताल वाद्य)
  4. घन वाद्य (धातु के बने सहायक ताल वाद्य)।

तंतु वाद्य

झारखण्ड में चारों प्रकार के वाद्य पाये जाते हैं। तंतु वाद्यों में तांत या तारों से आवाज निकलती है। उंगली, कमानी या लकड़ी के आघात से बजाये जाने वाले इन वाद्यों में केंदरी, एक तारा या गुपी यंत्र, सारंगी, टुईला और भूआंग झारखण्ड में मुख्य हैं और लोकप्रिय भी। उन्हें गीतों के साथ बजाया जाता है और उनसे धुनें भी बनायी जाती हैं।

सुषिर वाद्य

सुषिर वाद्य फूंक कर बजाये जाते हैं। उनमें आड़बांसी या बांसुरी, सानाई, सिंगा, निशान, शंख, मदनभेरी आदि शामिल हैं। उनसे धुन निकाली जाती है। उन्हें गीतों के साथ बजाया भी जाता है।

अवनध्द वाद्य

अवनध्द वाद्य मुख्यत: चमड़े के वाद्य हैं। झारखण्ड में चमड़ा निर्मित वाद्यों की संख्या सबसे अधिक है। उनको ताल वाद्य भी कहा जाता है। उनमें मांदल या मांदर, ढोल, ढाक, धमसा, नगाड़ा, कारहा, तासा, जुड़ी-नागरा, ढप, चांगु, खंजरी, डमरू, विषम ढाकी आदि आते हैं। उनमें मांदर, ढोल, ढाक, डमरू, विषम ढकी आदि मुख्य ताल वाद्य हैं। धमसा, कारहा, तासा, जुड़ी नागरा आदि गौण ताल वाद्य हैं। वे सभी वाद्य नृत्य के साथ बजाये जाते हैं।

घन वाद्य

घन वाद्य धातुओं से बनाये जाते हैं। ख़ासकर कांसे से। उनमें झाल, झांझ, करताल, घंटा, थाला, मंदिरा, काठी आदि शामिल हैं। उनकी आवाज गूंजती है। उन्हें 'सहायक ताल वाद्य' कहा जाता है। गीत, संगीत और नृत्य में उनका प्रयोग होता है।

वाद्य यंत्र

झारखण्ड में बजाये जाने वाले प्रमुख वाद्य यन्त्र निम्नलिखित हैं-

  1. केंदरी
  2. टुईला
  3. एकतारा]]
  4. भुआंग
  5. बाँसुरी
  6. सानाई
  7. सिंगा
  8. मदनभेरी
  9. मांदर
  10. ढोल
  11. धमसा
  12. ढाक


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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