बाबा हरभजन सिंह: Difference between revisions

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'''बाबा हरभजन सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Baba Harbhajan Singh'' ; जन्म- [[3 अगस्त]], [[1941]], कपूरथल, पंजाब; मृत्यु- [[11 सितम्बर]], [[1968]]) [[भारतीय सेना]] का एक ऐसा सैनिक, जिसके बारे में यह माना जाता है कि अपनी मृत्यु के बाद आज भी वह देश की सरहद की रक्षा कर रहा है। इस सिपाही को अब लोग 'कैप्टन बाबा हरभजन सिंह' के नाम से पुकारते हैं। हरभजन सिंह की मृत्यु [[4 अक्टूबर]], [[1968]] में [[सिक्किम]] के साथ लगती [[चीन]] की सीमा के साथ नाथूला दर्रे में गहरी खाई में गिरने से हो गई थी। लोगों का ऐसा मानना है कि तब से लेकर आज तक यह सिपाही भूत बनकर सरहदों की रक्षा कर रहा है। इस बात पर हमारे देश के सैनिकों को पूरा विश्ववास तो है ही, साथ ही चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं, क्योंकि उन्होंने कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को मरने के बाद घोड़े पर सवार होकर सरहदों की गश्त करते हुए देखा है।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/news/c-3-768849-NOR.html|title=भूत बनकर भी देश की सरहदों रक्षा में जुटा है एक फौजी|accessmonthday= 20 जनवरी|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिम भास्कर.कॉम|language= हिन्दी}}</ref>
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==जन्म तथा शिक्षा==
==जन्म तथा शिक्षा==
हरभजन सिंह का जन्म 3 अगस्त, 1941 को [[पंजाब]] के [[कपूरथला ज़िला|कपूरथला ज़िले]] में ब्रोंदल नामक [[ग्राम]] में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से प्राप्त की थी। [[मार्च]], [[1955]] में उन्होंने 'डी.ए.वी. हाई स्कूल', पट्टी से मेट्रिकुलेशन किया था।
हरभजन सिंह का जन्म 3 अगस्त, 1941 को [[पंजाब]] के [[कपूरथला ज़िला|कपूरथला ज़िले]] में ब्रोंदल नामक [[ग्राम]] में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से प्राप्त की थी। [[मार्च]], [[1955]] में उन्होंने 'डी.ए.वी. हाई स्कूल', पट्टी से मेट्रिकुलेशन किया था।

Revision as of 08:48, 20 January 2015

बाबा हरभजन सिंह (अंग्रेज़ी: Baba Harbhajan Singh ; जन्म- 3 अगस्त, 1941, कपूरथला, पंजाब; मृत्यु- 11 सितम्बर, 1968) भारतीय सेना का एक ऐसा सैनिक, जिसके बारे में यह माना जाता है कि अपनी मृत्यु के बाद आज भी वह देश की सरहद की रक्षा कर रहा है। इस सिपाही को अब लोग 'कैप्टन बाबा हरभजन सिंह' के नाम से पुकारते हैं। हरभजन सिंह की मृत्यु 4 अक्टूबर, 1968 में सिक्किम के साथ लगती चीन की सीमा के साथ नाथूला दर्रे में गहरी खाई में गिरने से हो गई थी। लोगों का ऐसा मानना है कि तब से लेकर आज तक यह सिपाही भूत बनकर सरहदों की रक्षा कर रहा है। इस बात पर हमारे देश के सैनिकों को पूरा विश्ववास तो है ही, साथ ही चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं, क्योंकि उन्होंने कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को मरने के बाद घोड़े पर सवार होकर सरहदों की गश्त करते हुए देखा है।[1]

जन्म तथा शिक्षा

हरभजन सिंह का जन्म 3 अगस्त, 1941 को पंजाब के कपूरथला ज़िले में ब्रोंदल नामक ग्राम में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से प्राप्त की थी। मार्च, 1955 में उन्होंने 'डी.ए.वी. हाई स्कूल', पट्टी से मेट्रिकुलेशन किया था।

भारतीय सेना में प्रवेश

जून, 1956 में हरभजन सिंह अमृतसर में एक सैनिक के रूप में प्रविष्ट हुए और सिग्नल कोर में शामिल हो गए। 30 जून, 1965 को उन्हें एक कमीशन प्रदान की गई और वे '14 राजपूत रेजिमेंट' में तैनात हुए। वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने अपनी यूनिट के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इसके बाद उनका स्थानांतरण '18 राजपूत रेजिमेंट' के लिए हुआ।

निधन

वर्ष 1968 में कैप्टन हरभजन सिंह '23वीं पंजाब रेजिमेंट' के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे। 4 अक्टूबर, 1968 को खच्चरों का एक काफिला लेकर, पूर्वी सिक्किम के तुकुला से डोंगचुई तक, जाते समय पाँव फिसलने के कारण एक नाले में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। पानी का तेज बहाव होने के कारण उनका पार्थिव शरीर बहकर घटना स्थल से 2 कि.मी. की दूरी पर जा पहुँचा। जब भारतीय सेना ने बाबा हरभजन सिंह की खोज-खबर लेनी शुरू की गई, तो तीन दिन बाद उनका पार्थिव शरीर मिला।

समाधि

ऐसा विश्वास किया जाता है कि उन्होंने अपने साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर अपनी मृत्यू की जानकारी दी और बताया कि उनका शव कहां पड़ा है। उन्होंने प्रीतम प्रीतम सिंह से यह भी इच्छा जाहिर की कि उनकी समाधि भी वहीं बनाई जाए। पहले प्रीतम सिंह की बात का किसी ने विश्वास नहीं किया, लेकिन जब उनका शव उसी स्थल पर मिला, जहां उन्होंने बताया था तो सेना के अधिकारियों को उनकी बात पर विश्वास हो गया। सेना के अधिकारियों ने उनकी 'छोक्या छो' नामक स्थान पर समाधि बनवाई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भूत बनकर भी देश की सरहदों रक्षा में जुटा है एक फौजी (हिन्दी) दैनिम भास्कर.कॉम। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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