तराइन का युद्ध: Difference between revisions
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1191 ई॰ और 1192 ई॰ में [[दिल्ली]] और [[अजमेर]] के चौहान राजा [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] और शहाबुद्दीन [[मुहम्मद ग़ोरी]] के मध्य हुआ। तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने शहाबुद्दीन को पराजित किया। वह घायल होकर भाग खड़ा हुआ। परन्तु एक वर्ष बाद ही 1192 ई॰ में होने वाले दूसरे युद्ध में शहाबुद्दीन ने पृथ्वीराज को परास्त करके मार डाला। इस दूसरे युद्ध में विजय के बाद शहाबुद्दीन ने दिल्ली पर अपना अधिकार लिया। इसके फलस्वरूप पूरा उत्तरी भारत कई शताब्दियों तक मुसलमानों के शासनों में रहा। | 1191 ई॰ और 1192 ई॰ में [[दिल्ली]] और [[अजमेर]] के चौहान राजा [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] और शहाबुद्दीन [[मुहम्मद ग़ोरी]] के मध्य हुआ। तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने शहाबुद्दीन को पराजित किया। वह घायल होकर भाग खड़ा हुआ। परन्तु एक वर्ष बाद ही 1192 ई॰ में होने वाले दूसरे युद्ध में शहाबुद्दीन ने पृथ्वीराज को परास्त करके मार डाला। इस दूसरे युद्ध में विजय के बाद शहाबुद्दीन ने दिल्ली पर अपना अधिकार लिया। इसके फलस्वरूप पूरा उत्तरी भारत कई शताब्दियों तक मुसलमानों के शासनों में रहा। | ||
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तरायन थानेसर से 14 मील दक्षिण में स्थित है। 1009-10 में कुछ दिनों तक यहाँ [[महमूद गजनवी]] का अधिकार रहा। तत्पश्चात यहाँ मुहम्मद ग़ोरी और चौहान नरेश पृथ्वीराज के बीच 1191 ई0 में पहला युद्ध हुआ। 1192 ई0 में ग़ोरी ने दुबारा [[भारत]] पर आक्रमण किया और इसी स्थान पर घोर युद्ध हुआ, जिसमें ग़ोरी की कूटनीति और छद्म के करण पृथ्वीराज मारे गए। इस विजय के पश्चात् [[मुसलमान|मुसलमानों]] के क़दम उत्तर भारत में जम गये। 1216 ई॰ ([[15 फरवरी]]) को एक बार फिर तरायन के मैदान में [[इल्तुतमिश]] तथा उसके प्रतिद्वन्द्वी सरदार इल्दोज में एक निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें इल्तुतमिश की विजय हुई और उसका दिल्ली की गद्दी पर अधिकार मज़बूत हो गया। तरावड़ी या तरायन को आज़माबाद भी कहते हैं। | तरायन थानेसर से 14 मील दक्षिण में स्थित है। 1009-10 में कुछ दिनों तक यहाँ [[महमूद गजनवी]] का अधिकार रहा। तत्पश्चात यहाँ मुहम्मद ग़ोरी और चौहान नरेश पृथ्वीराज के बीच 1191 ई0 में पहला युद्ध हुआ। 1192 ई0 में ग़ोरी ने दुबारा [[भारत]] पर आक्रमण किया और इसी स्थान पर घोर युद्ध हुआ, जिसमें ग़ोरी की कूटनीति और छद्म के करण पृथ्वीराज मारे गए। इस विजय के पश्चात् [[मुसलमान|मुसलमानों]] के क़दम उत्तर भारत में जम गये। 1216 ई॰ ([[15 फरवरी]]) को एक बार फिर तरायन के मैदान में [[इल्तुतमिश]] तथा उसके प्रतिद्वन्द्वी सरदार इल्दोज में एक निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें इल्तुतमिश की विजय हुई और उसका दिल्ली की गद्दी पर अधिकार मज़बूत हो गया। तरावड़ी या तरायन को आज़माबाद भी कहते हैं। | ||
Revision as of 13:32, 22 August 2010
1191 ई॰ और 1192 ई॰ में दिल्ली और अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज और शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी के मध्य हुआ। तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने शहाबुद्दीन को पराजित किया। वह घायल होकर भाग खड़ा हुआ। परन्तु एक वर्ष बाद ही 1192 ई॰ में होने वाले दूसरे युद्ध में शहाबुद्दीन ने पृथ्वीराज को परास्त करके मार डाला। इस दूसरे युद्ध में विजय के बाद शहाबुद्दीन ने दिल्ली पर अपना अधिकार लिया। इसके फलस्वरूप पूरा उत्तरी भारत कई शताब्दियों तक मुसलमानों के शासनों में रहा।
तराइन
तरायन थानेसर से 14 मील दक्षिण में स्थित है। 1009-10 में कुछ दिनों तक यहाँ महमूद गजनवी का अधिकार रहा। तत्पश्चात यहाँ मुहम्मद ग़ोरी और चौहान नरेश पृथ्वीराज के बीच 1191 ई0 में पहला युद्ध हुआ। 1192 ई0 में ग़ोरी ने दुबारा भारत पर आक्रमण किया और इसी स्थान पर घोर युद्ध हुआ, जिसमें ग़ोरी की कूटनीति और छद्म के करण पृथ्वीराज मारे गए। इस विजय के पश्चात् मुसलमानों के क़दम उत्तर भारत में जम गये। 1216 ई॰ (15 फरवरी) को एक बार फिर तरायन के मैदान में इल्तुतमिश तथा उसके प्रतिद्वन्द्वी सरदार इल्दोज में एक निर्णायक युद्ध हुआ जिसमें इल्तुतमिश की विजय हुई और उसका दिल्ली की गद्दी पर अधिकार मज़बूत हो गया। तरावड़ी या तरायन को आज़माबाद भी कहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- भारतीय इतिहास कोशी से पेज संख्या 186
- ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 392