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         '''[[नवरात्र]]''' [[हिन्दू]] धर्म ग्रंथ एवं [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। [[भारत]] में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। वर्ष में चार नवरात्र [[चैत्र]], [[आषाढ़]], [[आश्विन]] और [[माघ]] महीने की [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[प्रतिपदा]] से [[नवमी]] तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें भी देवीभक्त आश्विन के नवरात्र अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर [[राम|श्रीराम]] ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है। [[मार्कण्डेय पुराण]] के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है। [[संस्कृत]] व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण है। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुल्लिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है। [[नवरात्र|... और पढ़ें]]
         '''[[रक्षाबन्धन]]''' का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का पर्व है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में [[राखी]] बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] ने [[गीता]] में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। [[श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] की [[पूर्णिमा]] को भारतवर्ष में भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता है। [[रक्षाबन्धन|... और पढ़ें]]
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Revision as of 06:25, 6 August 2016

एक त्योहार

        रक्षाबन्धन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का पर्व है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा को भारतवर्ष में भाई-बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता है। ... और पढ़ें


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