प्रयोग:कविता बघेल 8: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 35: Line 35:
|शीर्षक 5=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|पाठ 5=
|अन्य जानकारी=जब आनंदी गोपाल जोशी के मात्र दस दिनों के भीतर उनके पुत्र का निधन हो गया, तो उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। कुछ दिनों बाद इन्होंने अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय किया।
|अन्य जानकारी=जब आनंदी गोपाल जोशी के मात्र दस दिनों के भीतर ही इनके पुत्र का निधन हो गया, जिससे इन्हें गहरा सदमा पहुंचा। कुछ दिनों बाद इन्होंने अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय किया।
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
|अद्यतन=

Revision as of 10:50, 7 April 2017

कविता बघेल 8
पूरा नाम आनंदी गोपाल जोशी
अन्य नाम यमुना
जन्म 31 मार्च, 1865
जन्म भूमि पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु 26 फ़रवरी, 1887
पति/पत्नी गोपालराव
भाषा संस्कृत
विद्यालय वीमेन्स कॉलेज ऑफ़ फिलाडेल्फिया का मेडिकल कॉलेज, अमेरिका
पुरस्कार-उपाधि डॉक्टर
प्रसिद्धि भारत की प्रथम महिला डॉक्टर
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जब आनंदी गोपाल जोशी के मात्र दस दिनों के भीतर ही इनके पुत्र का निधन हो गया, जिससे इन्हें गहरा सदमा पहुंचा। कुछ दिनों बाद इन्होंने अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय किया।

आनंदी गोपाल जोशी (अंग्रेज़ी:Anandi Gopal Joshi, जन्म: 31 मार्च, 1865, पुणे; मृत्यु: 26 फ़रवरी, 1887) पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। आनंदीबाई जोशी का व्‍यक्तित्‍व महिलाओं के लिए प्रेरणास्‍त्रोत था। इन्‍होंने सन 1886 में अपने सपने को साकार रूप दिया। जब इन्‍होंने डॉक्टर बनने का निर्णय लिया था, तो उनकी समाज में काफी आलोचना हुई थी कि एक शादीशुदा हिंदू स्‍त्री विदेश (पेनिसिल्‍वेनिया) जाकर डॉक्‍टरी की पढ़ाई करे। लेकिन आनंदीबाई एक दृढ़निश्‍चयी महिला थीं और उन्‍होंने आलोचनाओं की तनिक भी परवाह नहीं की। यही वजह है कि उन्‍हें पहली भारतीय महिला डॉक्‍टर होने का गौरव प्राप्‍त हुआ।

परिचय

डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी का जन्म एक मराठी परिवार में 31 मार्च 1865 को कल्याण, थाणे, महाराष्ट्र में हुआ था। इनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा। इनका परिवार एक रूढ़िवादी परिवार था, जो केवल संस्कृत पढ़ना जानते थे। इनके पिता जमींदार थे। ब्रिटिश शासकों द्वारा महाराष्ट्र में जमींदारी प्रथा समाप्त किए जाने के बाद इनके के परिवार की स्थिति बेहद खराब हो गई थी। वे किसी तरह अपना गुजर बसर कर रहे थे। ऐसे ही परिवार में जन्मी आनंदी गोपाल उर्फ यमुना की शादी नौ वर्ष की उम्र में ही उनसे 20 वर्ष बड़े एक विधुर से कर दी गई थी। हिंदू समाज के रिवाज़ के अनुसार शादी के बाद इनका नाम बदल कर आनंदी रख दिया गया और डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी यमुना से आनंदी बन गर्इं।[1]

डॉक्टर बनने का संकल्प

आनंदी गोपाल जोशी उस समय मात्र चौदह साल की थी, जब इन्होंने अपने बेटे को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्यवश उचित चिकित्सा के अभाव में दस दिनों में उसका देहांत हो गया। इस घटना से इन्हें गहरा सदमा पहुंचा। यह भीतर ही भीतर टूट-सी गई। इनके पति गोपल राव एक प्रगतिशील विचारक थे और महिला-शिक्षा का समर्थन भी करते थे। आनंदी गोपाल जोशी ने कुछ दिनों बाद अपने आपको संभाला और खुद एक डॉक्टर बनने का निश्चय लिया। यह चिकित्सा के अभाव में असमय होने वाली मौतों को रोकने का प्रयास करना चाहती थी चूँकि उस समय भारत में ऐलोपैथिक डॉक्टरी की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उन्हें पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना पड़ता था।[2]

रूढ़िवादी हिंदू समाज द्वारा विद्रोह करना

आनंदी गोपाल जोशी द्वारा अचानक लिए गए उनके इस फ़ैसले से उनके परिजन और आस-पड़ोस में विरोध की लहर उठ खड़ी हुई। उनकी काफी आलोचना भी की गयी। समाज को यह कतई गवारा नहीं था कि एक शादीशुदा हिंदू औरत विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करे क्योंकि उन्हें आशंका थी कि वहां जाकर दोनों पति-पत्नी अपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपना लेंगे। जब यह बात डॉक्टर आनंदी राव को पता चली, तो उन्होंने सिरमपुर कॉलेज के हॉल में लोगों को जमा करके यह ऐलान किया कि मैं केवल डॉक्टरी की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका जा रही हूं। मेरा इरादा न तो धर्म बदलने का है न वहां नौकरी करने का। मेरा मकसद भारत में रह कर यहां के लोगों की सेवा करने का है, क्योंकि भारत में एक भी महिला डॉक्टर नहीं है, जिसके अभाव में असमय ही बहुत-सी महिलाओं और बच्चों की मौत हो जाती है। आनंदी गोपाल जोशी के भाषण का रूढ़िवादी लोगों पर व्यापक असर हुआ और पूरे देश से उनकी डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए मदद देने के लिए पेशकश की गई।[3]

अमेरिका में उनके द्वारा किया गया संघर्ष

आनंदी गोपाल जोशी के इस वक्तव्य के प्रकाशित होने के बाद पूरे भारत ने उन्हें सहायता प्रदान की, यहां तक की वाइसराय ने भी उन्हें 200 रुपये की सहायता राशि भेजी। उन्होंने अपने सोने के सभी जेवरात बेच दिए और कुछ यूरोपियन महिलाओं के साथ कोलकाता से न्यूयार्क के लिए रवाना हो गईं। जहां जून 1883 में उनकी मुलाकात मिसेज कारपेंटर से हुई। इसके बाद इन्होंने वीमेन्स कॉलेज ऑफ़ फिलाडेल्फिया के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए आवेदन किया और शीघ्र ही कॉलेज के डीन का पत्र उन्हें मिला जिसमें उनसे कालेज में प्रवेश लेने के लिए कहा गया था। अमेरिका आनंदी के लिए एक अजनबी शहर था। वहां की बहुत सारी बातें उन्हें समझ नहीं आती। उनके और अमरीकियों के रहन-सहन और खान-पान में बहुत अंतर था। लेकिन उनके और मिसेज कारपेंटर के बीच एक आत्मीय रिश्ता कायम हो गया था। कॉलेज के सुपरिंटेंडेट और सेक्रेट्री इस बात से बहुत प्रभावित थे कि एक लड़की सामाजिक विरोधों को झेलते हुए यहां इतनी दूर पढ़ने आयी है। उन्होंने तीन साल की उनकी पढ़ाई के लिए 600 डॉलर की स्कॉलरशिप मंजूर कर दी।

लेकिन समस्याएं अभी खत्म नहीं हुई थी। उनके वस्त्र वहां की सर्दी के अनुकूल नहीं थे। नौ गजी महाराष्ट्रियन साड़ी पहनने पर उनकी कमर और हाथ खुले रहते थे। जबकि पश्चिमी पोशाकें सर्दी से बचाव के लिए ज्यादा उपयुक्त थीं। वैसे उनके पति ने इन्हें आश्वस्त किया था कि यदि वे मांसाहार करती है और पश्चिमी ढंग की पोशाक पहनती हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन वे इसके लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रही थी। उन्होंने गीता का स्मरण किया जिसमें कहा गया है कि शरीर तो मात्र आत्मा का आवरण है जो अपवित्र नहीं हो सकता। उन्होंने सोचा कि अगर यह सत्य हैं तो मेरे पश्चिमी सभ्यता के वस्त्र पहनने से मेरी आत्मा कैसे अपवित्र हो सकती है? काफी सोचने-विचारने के बाद उन्होंने गुजराती ढंग से साड़ी पहनने का निश्चय किया और अपने पति को इस बात की सूचना भी दे दी। कॉलेज की तरफ से उनको रहने के लिए जो कमरा दिया गया था, उसका फायर प्लेस ठीक से काम नहीं करता था। लकड़ियां जलाते वक्त उससे लगातार धुँआ उठता रहता। उनके पास दो ही विकल्प थे या तो ठंड में रहो या धुँएं में। उन्होंने दूसरा कमरा तलाश करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी भारतीय हिंदू लड़की को जो डॉक्टर बनने की कोशिश कर रही थी, कमरा देने को तैयार नहीं था। लगातार डेढ़-दो साल तक उस कमरे में रहने के कारण उन्हें बुखार और खाँसी की शिकायत हो गई।

बनी देश की पहली महिला डॉक्टर

डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के पति गोपालराव ने हर कदम पर इनका हौसला अफजाई किया। साल 1883 में आनंदी गोपाल ने अमेरिका (पेनसिल्वेनिया) के जमीन पर कदम रखा उस दौर में वे किसी भी विदेशी जमीन पर कदम रखने वाली वह पहली भारतीय हिंदू महिला थी। न्यू जार्नी में रहने वाली थियोडिशिया ने उनका पढ़ाई के दौरान सहयोग किया। उन्नीस साल की उम्र में साल 1886 में आनंदीबाई ने एम.डी कर लिया। डिग्री लेने के बाद वह भारत लौट आई। जब उन्होंने यह डिग्री प्राप्त की, तब महारानी विक्टोरिया ने उन्हें बधाई-पत्र लिखा और भारत में उनका स्वागत एक नायिका के तरह किया गया।[2]

मृत्यु

डॉक्टर आनंदी राव जोशी 1886 के अंत में भारत लौट आईं और अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल, प्रिंसलि स्टेट आॅफ़ कोल्हापुर में एक महिला डॉक्टर के रूप में चार्ज ले लिया। लेकिन कुछ ही दिनों बाद ही वह टीबी की शिकार हो गई। जिससे 26 फ़रवरी, 1987 को मात्र इक्कीस साल की उम्र में इनका निधन हो गया। इनके जीवन पर कैरोलिन विल्स ने साल 1888 में बायोग्राफी भी लिखी। इस बायोग्राफी पर दूरदर्शन चैनल ‘आनंदी गोपाल’ नाम से हिंदी टीवी सीरियल का प्रसारण किया गया जिसका निर्देशन कमलाकर सारंग ने किया था।[1]

  1. 1.0 1.1 डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) tarzezindagi.com। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2017।
  2. 2.0 2.1 आनंदीबाई जोशी: देश की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) feminisminindia.com। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2017।
  3. डॉक्टर आनंदी गोपाल राव जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर (हिंदी) pratibhaba-bhagwanbharose.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2017।