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{{सूचना बक्सा कलाकार
'''केदार शर्मा''' (अंग्रेज़ी: Kedar Sharma, जन्म: 12 अप्रैल, 1910, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान); मृत्यु: 29 अप्रैल, 1999, मुंबई) भारतीय फ़िल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक और हिंदी फ़िल्मों के गीतकार थे। उन्हें बॉलीवुड में ऐसे फ़िल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने [[राज कपूर]], [[भारत भूषण]], [[मधुबाला]], माला सिन्हा और तनुजा को फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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'''एस एच बिहारी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''S. H. Bihari'', जन्म: [[1922]], आरा ज़िला, [[बिहार]]; मृत्यु: [[25 फ़रवरी]], [[1987]]) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार थे। जिन्होंने कई प्रसिद्ध गीत लिखे हैं। एस एच बिहारी ने [[1960]] के दशक में संगीतकार [[ओ.पी. नैयर]] के साथ जुड़कर 'रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना', 'आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मैं तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया', 'मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो‘ जैसे सदाबहार गीत फ़िल्मी जगत को दिए जिसे आज भी याद किया जाता है। इन्होंने [[हिन्दी]] तथा [[उर्दू]] में रचनाएं भी की हैं।<ref>{{cite web |url=http://vinitutpal.blogspot.in/2010/09/blog-post_17.html |title=VINIT UTPAL/विनीत उत्पल  |accessmonthday=19 मई |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=vinitutpal.blogspot.in |language=हिंदी }}</ref>
 
==परिचय==
==परिचय==
एस एच बिहारी का जन्म बिहार के आरा ज़िले में 1922 में हुआ था। उनकी शिक्षा कोलकाता में हुई, जहां उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। वहां वे [[बंगाली भाषा|बंगाली]] भी सीख गए और पहले से हिंदी और उर्दू तो आती ही थी। उस दौर में वे फ़ुटबॉल खेल में इतने अच्छे थे, कि मोहन बगान की टीम में भी चुने गए।
केदार शर्मा का जन्म 12 अप्रैल, 1910 को पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के नरौल शहर में हुआ था। उन्होंने अपनी  प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर से पूरी की। इसके बाद वह नौकरी की तलाश में मुंबई आ गए लेकिन वहां काम नहीं मिलने के कारण वह अमृतसर लौट गए। इस बीच उन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेज से स्नाकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।
==फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत==
==फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत==
एस एच बिहारी [[1947]] में [[बंबई]] पहुंच गए, जहाँ उनके भाई रहते थे। काफ़ी मशक्कत करने के बाद उन्हें वहाँ काम मिला। एस एच बिहारी भले ही सीधे सादे से दिखने वाले थे लेकिन उनमें कई ऐसे गुण थे जो उन्हें दूसरों से अलग पहचान दिलाते थे। [[1950]] में फ़िल्म आई ’दिलरूबा‘ और इसका एक गीत था ’हटो-हटो जी आते हैं हम‘। बस यहीं से इनकी फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत हुई लेकिन न ही यह गीत लोगों की जुबान पर चढ़ सका और न ही किसी की नजर में, लेकिन इसी साल आई फ़िल्म ’निर्दोष‘ और इसके बाद ’बेदर्दी‘, ’खूबसूरत‘, ’निशान डंका‘ और [[1953]] में ’रंगीला‘ में भी इन्होंने इक्का-दुक्का गीत लिखें जो लोगों की जुबां पर छाने में नाकाम रहे।
वर्ष 1933 में केदार शर्मा को देवकी बोस निर्देशित फ़िल्म पुराण भगत देखने का अवसर मिला। इस फ़िल्म से वह इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने निश्चय किया कि वह फ़िल्मों में ही अपना करियर बनाएंगे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए केदार [[कलकत्ता]] चले गए। कलकत्ता में केदार की मुलाकात फ़िल्मकार [[देवकी बोस]] से हुई और उनकी सिफ़ारिश से उन्हें न्यू थियेटर में बतौर छायाकार शामिल कर लिया गया। वर्ष [[1934]] में प्रदर्शित फ़िल्म सीता बतौर छायाकर केदार की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद न्यू थियेटर की फ़िल्म इंकलाब में केदार को एक छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला। वर्ष [[1936]] में प्रदर्शित फ़िल्म देवदास केदार शर्मा के सिने कैरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वह बतौर कथाकार और गीतकार की भूमिका में थे। फ़िल्म हिट रही और केदार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।
==गीतकार के रूप में==
==निर्देशक के रूप में==
[[1954]] में आई फ़िल्म ’शर्त‘ जिसका निर्माण किया था शशिधर मुखर्जी ने, इसमें संगीत था [[हेमंत कुमार]] का और गीत लिखे थे एस.एच. बिहारी और राजेंद्र कृष्ण ने। इसका गाना 'न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे/मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे' जबर्दस्त हिट रहा। [[1954]] से [[1957]] के बीच आई फ़िल्म 'डाकू की लड़की', 'बहू', 'अरब का सौदागर', 'एक झलक' और 'यहूदी की लड़की' में इन्होंने गीत लिखा।
केदार शर्मा को [[1940]] में फ़िल्म तुम्हारी जीत में निर्देशित करने का मौका मिला लेकिन दुर्भाग्य से यह फ़िल्म पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद उन्होंने औलाद फ़िल्म को निर्देशित किया जिसकी सफलता के बाद वह कुछ हद तक बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए। वर्ष [[1941]] में उन्हें चित्रलेखा फ़िल्म को निर्देशित करने का मौका मिला। फ़िल्म की सफलता के बाद केदार शर्मा बतौर निर्देशक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इन सबके साथ ही फ़िल्म चित्रलेखा का स्नान दृश्य बहुत चर्चित हुआ था जो फ़िल्म अभिनेत्री मेहताब पर फ़िल्माया गया था। इस फ़िल्म के बाद मेहताब दर्शको के बीच काफी लोकप्रिय हुई थी लेकिन फ़िल्म के शुरूआत के समय मेहताब स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन के लिए तैयार नही थीं।
;ओ.पी. नैयर से मुलाकात
एस एच बिहारी [[1960]] के दशक में संगीतकार [[ओ.पी. नैयर]] के साथ जुड़ गए और उसके बाद एक से एक बेहतरीन गीत उन्होंने दिए। नैयर साहब उन्हें "शायर-ए-आजम" कहा करते थे। दोनों ने मिलकर 'रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना', 'आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मैं तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया', 'मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो‘ जैसे सदाबहार गीत फ़िल्मी जगत को दिए जिसे आज भी याद किया जाता है।


फिर [[आशा भोंसले]] और [[मोहम्मद रफ़ी]] ने अपनी पुरकशिश आवाज से इनकी गीतों को अमर करने का काम किया। [[1971]] में रिलीज हुई फ़िल्म 'बीस साल पहले' जिसका गीत 'भूल जा तू वो फसाने, कल के गुजरे जमाने' आज भी लोग याद करते हैं। 'कश्मीर की कली' का गीत 'तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया‘ या फिर 'किस्मत' का गीत 'कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला' आज भी गुनगुनाए और सुने जाते हैं। बिहारी ने संगीतकार श्यामसुंदर, शंकर-जयकिशन और [[मदन मोहन]] के साथ काम किया तो [[लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल]] और बप्पी लाहिड़ी के लिए भी गीत लिखे।
केदार ने जब मेहताब के समक्ष स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन का प्रस्ताव रखा तो मेहताब बोलीं, यह सीन आप दर्शकों के लिए रखना चाहते हैं या सिर्फ अपनी खुशी के लिए। केदार ने तब मेहताब को समझाया, देखो सेट पर अभिनेत्री और निर्देशक का रिश्ता पिता-पुत्री का होता है। केदार की यह बात मेहताब के दिल को छू गई और उसने केदार के सामने यह शर्त रखी कि दृश्य के फ़िल्मांकन के समय सेट पर केवल वहीं मौजूद रहेगें।
==प्रसिद्ध गीत==
==फ़िल्म निर्माण==
एस एच बिहारी द्वारा लिखे गये कुछ प्रसिद्ध गीत जो आज भी गुनगुनाए और सुने जाते हैं-
केदार शर्मा ने वर्ष 1947 में नीलकमल के जरिए राजकपूर को रूपहले पर्दे पर पहली बार पेश किया। राजकपूर इसके पूर्व केदार की यूनिट में क्लैपर बॉय का काम किया करते थे। वर्ष 1950 में केदार ने फ़िल्म बावरे नैन का निर्माण किया और अभिनेत्री गीता बाली को पहली बार बतौर अभिनेत्री काम करने का अवसर दिया। वर्ष 1950 में ही केदार की एक और सुपरहिट फ़िल्म जोगन प्रदर्शित हुई। फ़िल्म में [[दिलीप कुमार]] और [[नरगिस]] मुख्य भूमिका में थे। केदार की यह विशेषता रहती थी कि जिस अभिनेता-अभिनेत्री के काम से वह खुश होते उसे पीतल की दुअन्नी देकर सम्मानित किया करते। राजकपूर, दिलीप कुमार, गीताबाली और नरगिस को यह सम्मान प्राप्त हुआ था।
;अभिनेता के तौर पर
केदार शर्मा ने कई फ़िल्मों में अपने अभिनय से भी दर्शकों का दिल जीता। इन फ़िल्मों में इंकलाब, पुजारिन, विद्यापति, बड़ी दीदी, नेकी और बदी शामिल हैं।
==व्यक्तित्व==


*न ये चांद होगा, न तारे रहेंगे/मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे<br />
==प्रसिद्ध फ़िल्म==
*रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना<br />
उन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गीत भी लिखे। केदार ने बच्चों के लिए भी कई फ़िल्में बनाईं। इनमें जयदीप, गंगा की लहरें, गुलाब का फूल, 26 जनवरी, एकता, चेतक, मीरा का चित्र, महातीर्थ और खुदा हाफ़िज़ शामिल हैं।
*आज कोई प्यार से दिल की बातें कह गया/ मै तो आगे बढ़ गई, पीछे जमाना रह गया<br />
*मेरी जान तुम पे सदके एहसान इतना कर दो<br />
*भूल जा तू वो फसाने, कल के गुजरे जमाने<br />
*तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया<br />
*कजरा मोहब्बत वाला, अखियों में ऐसा डाला<br />
==व्यक्तित्व==
एस एच बिहारी न तो साहिर की तरह विद्रोही थे और न शकील की तरह जज्बाती। उनका व्यवहार तो शैलेंद्र की तरह था जो सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था और न ही मजरूह की भांति जिन्होंने शोख नगमे ही दिए। उनका मानना था जिस तरह जिंदगी में मुश्किलात है वैसी ही हालत फ़िल्मी दुनिया की भी है। एच एस बिहारी को लिखने-पढ़ने और शायरी का शौक भी था। 
==निधन==
==निधन==
एस एच बिहारी की [[25 फ़रवरी]], [[1987]] को हार्ट अटैक होने से मौत हो गई और वह सदा के लिए अलविदा कह गए।
लगभग पांच दशक तक अपनी फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान फ़िल्मकार केदार शर्मा 29 अप्रैल, 1999 को इस दुनिया को अलविदा कह गए

Revision as of 12:23, 27 May 2017

केदार शर्मा (अंग्रेज़ी: Kedar Sharma, जन्म: 12 अप्रैल, 1910, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान); मृत्यु: 29 अप्रैल, 1999, मुंबई) भारतीय फ़िल्म निर्देशक, निर्माता, पटकथा लेखक और हिंदी फ़िल्मों के गीतकार थे। उन्हें बॉलीवुड में ऐसे फ़िल्मकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने राज कपूर, भारत भूषण, मधुबाला, माला सिन्हा और तनुजा को फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

परिचय

केदार शर्मा का जन्म 12 अप्रैल, 1910 को पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) के नरौल शहर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर से पूरी की। इसके बाद वह नौकरी की तलाश में मुंबई आ गए लेकिन वहां काम नहीं मिलने के कारण वह अमृतसर लौट गए। इस बीच उन्होंने अमृतसर के खालसा कॉलेज से स्नाकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।

फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत

वर्ष 1933 में केदार शर्मा को देवकी बोस निर्देशित फ़िल्म पुराण भगत देखने का अवसर मिला। इस फ़िल्म से वह इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने निश्चय किया कि वह फ़िल्मों में ही अपना करियर बनाएंगे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए केदार कलकत्ता चले गए। कलकत्ता में केदार की मुलाकात फ़िल्मकार देवकी बोस से हुई और उनकी सिफ़ारिश से उन्हें न्यू थियेटर में बतौर छायाकार शामिल कर लिया गया। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फ़िल्म सीता बतौर छायाकर केदार की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद न्यू थियेटर की फ़िल्म इंकलाब में केदार को एक छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला। वर्ष 1936 में प्रदर्शित फ़िल्म देवदास केदार शर्मा के सिने कैरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वह बतौर कथाकार और गीतकार की भूमिका में थे। फ़िल्म हिट रही और केदार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।

निर्देशक के रूप में

केदार शर्मा को 1940 में फ़िल्म तुम्हारी जीत में निर्देशित करने का मौका मिला लेकिन दुर्भाग्य से यह फ़िल्म पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद उन्होंने औलाद फ़िल्म को निर्देशित किया जिसकी सफलता के बाद वह कुछ हद तक बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए। वर्ष 1941 में उन्हें चित्रलेखा फ़िल्म को निर्देशित करने का मौका मिला। फ़िल्म की सफलता के बाद केदार शर्मा बतौर निर्देशक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इन सबके साथ ही फ़िल्म चित्रलेखा का स्नान दृश्य बहुत चर्चित हुआ था जो फ़िल्म अभिनेत्री मेहताब पर फ़िल्माया गया था। इस फ़िल्म के बाद मेहताब दर्शको के बीच काफी लोकप्रिय हुई थी लेकिन फ़िल्म के शुरूआत के समय मेहताब स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन के लिए तैयार नही थीं।

केदार ने जब मेहताब के समक्ष स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन का प्रस्ताव रखा तो मेहताब बोलीं, यह सीन आप दर्शकों के लिए रखना चाहते हैं या सिर्फ अपनी खुशी के लिए। केदार ने तब मेहताब को समझाया, देखो सेट पर अभिनेत्री और निर्देशक का रिश्ता पिता-पुत्री का होता है। केदार की यह बात मेहताब के दिल को छू गई और उसने केदार के सामने यह शर्त रखी कि दृश्य के फ़िल्मांकन के समय सेट पर केवल वहीं मौजूद रहेगें।

फ़िल्म निर्माण

केदार शर्मा ने वर्ष 1947 में नीलकमल के जरिए राजकपूर को रूपहले पर्दे पर पहली बार पेश किया। राजकपूर इसके पूर्व केदार की यूनिट में क्लैपर बॉय का काम किया करते थे। वर्ष 1950 में केदार ने फ़िल्म बावरे नैन का निर्माण किया और अभिनेत्री गीता बाली को पहली बार बतौर अभिनेत्री काम करने का अवसर दिया। वर्ष 1950 में ही केदार की एक और सुपरहिट फ़िल्म जोगन प्रदर्शित हुई। फ़िल्म में दिलीप कुमार और नरगिस मुख्य भूमिका में थे। केदार की यह विशेषता रहती थी कि जिस अभिनेता-अभिनेत्री के काम से वह खुश होते उसे पीतल की दुअन्नी देकर सम्मानित किया करते। राजकपूर, दिलीप कुमार, गीताबाली और नरगिस को यह सम्मान प्राप्त हुआ था।

अभिनेता के तौर पर

केदार शर्मा ने कई फ़िल्मों में अपने अभिनय से भी दर्शकों का दिल जीता। इन फ़िल्मों में इंकलाब, पुजारिन, विद्यापति, बड़ी दीदी, नेकी और बदी शामिल हैं।

व्यक्तित्व

प्रसिद्ध फ़िल्म

उन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गीत भी लिखे। केदार ने बच्चों के लिए भी कई फ़िल्में बनाईं। इनमें जयदीप, गंगा की लहरें, गुलाब का फूल, 26 जनवरी, एकता, चेतक, मीरा का चित्र, महातीर्थ और खुदा हाफ़िज़ शामिल हैं।

निधन

लगभग पांच दशक तक अपनी फ़िल्मों के जरिए दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान फ़िल्मकार केदार शर्मा 29 अप्रैल, 1999 को इस दुनिया को अलविदा कह गए