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भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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{"युद्ध की स्थिति राज्य के व्यक्तित्व की सर्वशक्तिमता को प्रकट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-56
{"आधुनिक राज्यों में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-49
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-ग्रीन
+बार्कर
-मुसोलिनी
-ब्राइस
+हीगल
-दुवर्जर
-हिटलर
-थामस हेयर
||हीगल का कथन है कि "युद्ध की स्थिति राज्य के व्यक्तित्व की सर्वशक्तिमत्ता को प्रकट करती है"।
||बार्कर का कहना है कि आधुनिक राज्यों में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी।


{निम्न में कौन-सा कथन सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-23
{"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57
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-स्वतंत्रता और समानता विरोधी हैं
-जॉर्ज केनन द्वारा
+स्वतंत्रता और समानता पूरक हैं
-हेनरी टूमैन द्वारा
-स्वतंत्रता और समानता असंगत हैं
+जॉन फॉस्टर डलेस द्वारा
-स्वतंत्रता और सत्ता विरोधी हैं
-उपर्युक्त में से किसी के भी द्वारा नहीं
||स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के पूरक हैं। इसके समर्थक रूसो, ग्रीन, टॉनी, लास्की, मैक्फर्सन आदि विद्बान रहे हैं। स्वतंत्रता और समानता दोनों का ही उद्देश्य मानवीय व्यक्तित्व का उच्चतम विकास है। स्वतंत्रता जहां एक तरफ व्यक्तियों के जीवन पर न्यूनतम प्रतिबंध को स्वीकार करते हुए उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर समानता सभी को समान अवसर प्रदान करती है, अत: स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के सहायक व पूरक हैं, परस्पर विरोधी नहीं।
||पूर्व अमेरिकी विदेश सचिव जॉन फोस्टर डलेस द्वारा 'असंलग्नता को अनैतिक' कहा गया था।


{"कर्त्तव्यों के उचित क्रम निर्धारण का नाम नागरिकता है।" नागरिकता की उपर्युक्त परिभाषा किसकी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-66
{इनमें से कौन-सा ल्यूशियन पाई की राजनीति विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न- 24
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+विलियम आयड
+स्वतंत्रता
-[[अरस्तू]]
-समानता
-लास्की
-क्षमता
-जे.एस. मिल
-विभिन्नीकरण
||विलियम बायड ने नागरिकता को परिभाषित करते हुए कहा है कि कर्त्तव्यों के उचित क्रम निर्धारण का नाम नागरिकता है"।
||ल्यूशियन पाई ने अपनी पुस्तक "एसपेक्ट्स ऑफ पॉलिटिकल डेवलेपमेंट"  में राजनीतिक विकास का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था में समानता, क्षमता और संरचनात्मक विभेदीकरण (Structural Differentiation) से संबंधित बताया है। 'स्वतंत्रता ल्यूशियन पाई की राजनीतिक विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
.राजनीतिक विकास (Political Development) की अवधारणा राजनीति शास्त्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई है।
.राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले अन्य राजनीतिक विचार डेविड ईस्टन, डेविड एप्टर, कोलमैन वीनर, रिग्स, ला पालोम्बरा आदि हैं।
.माइनर वीनर ने भारत के राजनीतिक विकास का अध्ययन किया।


{[[भारत]] के [[उपराष्ट्रपति]] को कौन पदमुक्त कर सकता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-53
{सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67
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-[[राज्य सभा]]
-हीगल के अनुसार
-[[लोक सभा]]
+बेंथम के अनुसार
+[[राज्य सभा]] व [[लोक सभा]] दोनों
-ग्राम्सी के अनुसार
-[[निर्वाचन आयोग]]
-लेनिन के अनुसार
||अनुच्छेद 67 के अनुसार, [[उपराष्ट्रपति]] को उसके पद से तभी हटाया जा सकता है जब इस हेतु संकल्प राज्य सभा के तत्कालीन सभी सदस्यों के बहुमत से पारित हो जाता है और जिससे लोक सभा सहमत हो। {{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[उपराष्ट्रपति]]


{संविधान के किस अनुच्छेद के तहत यह उपबंधित है कि 'निर्वाचक नामावली' धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर तैयार नहीं की जाएगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-112
{भारतीय संसद निर्मित होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-54
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-अनुच्छेद 17
+राष्ट्रपति राज्य सभा एवं [[लोक सभा]] द्वारा
-अनुच्छेद 29
-[[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा
+अनुच्छेद 325
-राज्य सभा, लोक सभा एवं एटॉर्नी जनरल द्वारा
-अनुच्छेद 326
-राज्य सभा, लोक सभा एवं [[निर्वाचन आयोग]] द्वारा
||संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार, [[संसद]] के प्रत्येक सदन या किसी [[राज्य]] के [[विधान मंडल]] के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचन के लिए प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्र के लिए एक साधारण निर्वाचक-नामावली होगी और केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या इनमें से किसी के आधार पर कोई व्यक्ति ऐसी किसी नामावली में सम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र नहीं होगा या ऐसे किसी निर्वाचन-क्षेत्र के लिए किसी विशेष निर्वाचन-नामावली में सम्मिलित किए जाने का दावा नहीं करेगा।
||अनुच्छेद 79 के अनुसार [[संसद|भारतीय संसद]] [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से अर्थात [[लोक सभा]] और राज्य सभा से मिलकर बनती है।


{"पूंजीवाद के सागर के बीच का समाजवादी द्वीप सारे संसार के सर्वहारा वर्ग के क्रांतिकारी आंदोलन के लिए एक प्रकाश पुंज का कार्य करेगा।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-61
 
{राज्य निर्वाचन आयुक्त अपदस्थ किया जा सकता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-113
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-माओत्सेतुंग
-राज्य के [[राज्यपाल]] के द्वारा
-[[कार्ल मार्क्स]]  
-राज्य [[विधान सभा]] के द्वारा
+लेनिन
-[[मुख्यमंत्री]] द्वारा जारी आदेश के द्वारा
-स्टालिन
+[[उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश को अपदस्थ करने की प्रक्रिया के समान प्रक्रिया के द्वारा।
||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
.अनुच्छेद 243-ट (1) के अनुसार पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचन के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन, अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा जिसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया गया एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा।
.[[निर्वाचन आयोग|भारत निर्वाचन आयोग]] का राज्य स्तरीय प्रतिनिधि मुख्य निर्वाचन अधिकारी होता है।


{"समाजवाद परिस्थितियों के अनुसार रंग बदलने वाला गिरगिट का सा धर्म है।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-62
{नेहरू समर्थक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-63
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-सी.ई.एम. जोड
-पूंजीवाद के
-एच.जे. लास्की
-साम्यवाद के
-सी.एल. वेपर
+गणतांत्रिक समाजवाद के
+रैम्जे म्योर
-अराजकतावाद के
||समाजवाद एक प्रगतिशील और परिवर्तनशील दर्शन तथा कार्यक्रम है। यह बदलते हुए आर्थिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं के साथ-साथ अपने स्वरूप में परिवर्तन करता रहता है। समाजवाद के इस परिवर्तनशील स्वरूप को दृष्टि में रखते हुए रैम्जे म्योर ने कहा है कि, "समाजवाद परिस्थितियों के अनुसार रंग बदलने वाला गिरगिट का सा धर्म है।" [[जयप्रकाश नारायण]] ने कहा था- 'समाजवादी समाज एक ऐसा वर्ग विहीन समाज होगा, जिसमें सब श्रमजीवी होंगे। इस समाज में वैयक्तिक संपत्ति के हित के लिए मनुष्य के श्रम का शोषण नहीं होगा। इस समाज को सारी संपत्ति सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय अथवा सार्वजनिक संपत्ति होगी तथा अनार्जित आय और आय संबंधी भीषण असामनताएं अदैव के लिए समाप्त हो जाएगी। ऐसे समाज में मानव जीवन तथा उसकी प्रगति योजनाबद्ध होगी और सब लोग सबके हित के लिए जीयेंगे।"
||पं. जवाहरालाल नेहरू गणतांत्रिक समाजवद के समर्थक थे। जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी ये आर्थिक नियोजन (समाजवाद) तथा, लोकतंत्र में समंवय स्थापित करना चाहते थे। इसलिए लोकतांत्रिक समाजवाद में निष्ठा व्यक्त की। इसीलिए नेहरू जी ने भारत में भूमि सुधार को प्राथमिकता  दी तथा जमींदारी, तालुकेदारी प्रथाओं को मिटाने की पहल की। इन्होंने राष्ट्रीयकरण की नीति भी अपनाई और प्रतिरक्षा तथा अन्य प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीकरण किया।


{'उपलब्ध समय के अनुसार काम का विस्तार होता जाता है।" यह कथन किसका है?- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-77
{सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78
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-पीटर ड्रकर
-प्लेटो
+नॉर्थकोर्ट पार्किन्सन
-हीगल
-फ्रेडरिक टेलर
+मैक्स वेबर
-एल्टन मेयो
-कार्ल पॉपर
||नॉर्थकोर्ट पार्किन्सन के अनुसार, "उपलब्ध समय के अनुसार काम का विस्तार होता जाता है"।
||मैक्स वेबर ने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया था। वेबर का नौकरशाही सिद्धांत सत्ता के सिद्धांत का ही एक अंग है। वेबर ने सत्ता के कुल तीन प्रकार माने हैं- 1. पारंपरिक सत्ता, 2.श्रद्धा पर आधारित सत्ता अथवा करिश्माई सत्ता, तथा 3.वैधानिक प्रभुत्व। नैकरशाही इनमें से अंतिम श्रेणी में आती है। विधि स्तर से पोषित एवं समर्थिक नौकरशाही को उन्होंने संगठन का सबसे प्रभावशाली स्वरूप माना।


{किसने कहा था, 'हस्त चालित मशीन से निर्मित वस्तुओं से सामंतवादी समाज और वाष्प चालित मशीन से निर्मित वस्तुओं से पूंजीवादी समाज निर्मित होता है?" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-36
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक कार्ल मार्क्स द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-38
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-[[महात्मा गाँधी]]
-दास  कैपिटल
+[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]]
+ग्रामर ऑफ़ पॉलिटिक्स
-[[प्लेटो]]
-कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो
-लेनिन
-वैल्यू प्राइस एंड प्रॉफिट
||मार्क्स 'इतिहास की आर्थिक व्याख्या' में उत्पादन प्रणाली को निर्णायक बताते हुए कहते हैं कि "हस्त चालित मशीन से निर्मित वस्तुओं से सामंतवादी समाज और वाष्प चालित मशीनों से निर्मित वस्तुओं से पूंजीवादी समाज निर्मित होता है।" मार्क्स के इतिहास की आर्थिक व्याख्या को 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' या 'इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या' भी कहा जाता है। यह द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का पूरक सिद्धांत है। इसके अनुसार, किसी राष्ट्र या समाज के विकास की प्रक्रिया में आर्थिक तत्व अर्थात वस्तुओं के उत्पादन, विनिमय और वितरण प्रणाली की भूमिका सबसे प्रधान होती है।  {{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[कार्ल मार्क्स]]
||''कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो' (Communist Manifesto) मार्क्स एवं ऐंजिल्स की संयुक्त रचना है जिसे वर्ष 1848 में प्रकाशित किया गया था। इसमें इन्होंने लिखा है कि "अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।" इसी पुस्तक में मार्क्स ने सर्वहारा क्रांति की भविष्यवाणी की है। इसी में मार्क्स ने कहा है कि दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ अपने बेड़ियों और दासता के सिवाय तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है।
मार्क्स की अन्य रचनाएं
.द पुअर्टी ऑफ़ फिलोसोफी
.द क्रिटिक ऑफ़ पॉलिटकल इकोनॉमी
.वैल्यू, प्राइस एण्ड प्रोफिड
.दास कैपिटल
.सिविल वार इन फ्रांस
.गोथ्हा प्रोग्राम
.क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस


{'समाजवाद' का संबंध मुख्यतया निम्न में से किस वर्ग से है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-47
{समाजवाद की संकल्पना किसके द्वारा क्रमबद्धता से विकसित की गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-49
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-पूंजीपति
-एडम स्मिथ
-सैनिक
-रॉबर्ट ओवेन
+श्रमिक
-सेंट साइमन
-उत्पादक
+कार्ल मार्क्स
||अपने आधुनिक रूप में समाजवाद का उद्भव 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में माना जाता है। यह व्यक्तिवाद के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया एवं प्रगतिशील आंदोलन है। यह पूंजीवाद का विरोधी तथा उत्पादन के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है। इसका संबंध मुख्यतया श्रमिक वर्ग से है।
||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय कार्ल मार्क्स को दिया जाता है। इसीलित उनके समाजवाद को 'वैज्ञानिक समाजवाद' कहा जाता है। लास्की के अनुसार, 'मार्क्स ने समाजवाद को अव्यवस्थित रूप में पाया और इसे एक निश्चित आंदोलन बना दिया"।


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Revision as of 12:12, 4 November 2017

1 "आधुनिक राज्यों में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-49

बार्कर
ब्राइस
दुवर्जर
थामस हेयर

2 "असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57

जॉर्ज केनन द्वारा
हेनरी टूमैन द्वारा
जॉन फॉस्टर डलेस द्वारा
उपर्युक्त में से किसी के भी द्वारा नहीं

3 इनमें से कौन-सा ल्यूशियन पाई की राजनीति विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न- 24

स्वतंत्रता
समानता
क्षमता
विभिन्नीकरण

4 सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67

हीगल के अनुसार
बेंथम के अनुसार
ग्राम्सी के अनुसार
लेनिन के अनुसार

5 भारतीय संसद निर्मित होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-54

राष्ट्रपति राज्य सभा एवं लोक सभा द्वारा
राज्य सभा एवं लोक सभा द्वारा
राज्य सभा, लोक सभा एवं एटॉर्नी जनरल द्वारा
राज्य सभा, लोक सभा एवं निर्वाचन आयोग द्वारा

6 राज्य निर्वाचन आयुक्त अपदस्थ किया जा सकता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-113

राज्य के राज्यपाल के द्वारा
राज्य विधान सभा के द्वारा
मुख्यमंत्री द्वारा जारी आदेश के द्वारा
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अपदस्थ करने की प्रक्रिया के समान प्रक्रिया के द्वारा।

7 नेहरू समर्थक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-63

पूंजीवाद के
साम्यवाद के
गणतांत्रिक समाजवाद के
अराजकतावाद के

8 सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78

प्लेटो
हीगल
मैक्स वेबर
कार्ल पॉपर

9 निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक कार्ल मार्क्स द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-38

दास कैपिटल
ग्रामर ऑफ़ पॉलिटिक्स
कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो
वैल्यू प्राइस एंड प्रॉफिट

10 समाजवाद की संकल्पना किसके द्वारा क्रमबद्धता से विकसित की गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-49

एडम स्मिथ
रॉबर्ट ओवेन
सेंट साइमन
कार्ल मार्क्स