अभिजित नक्षत्र: Difference between revisions
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ज्योतिष शास्त्र में समस्त [[आकाश गंगा|आकाश मंडल]] को 27 भागों में विभक्त कर प्रत्येक भाग का नाम एक-एक नक्षत्र रखा गया है। सूक्ष्मता से समझाने के लिए प्रत्येक नक्षत्र के चार भाग किए गए हैं जो चरण कहलाते हैं। अभिजित को 28वां नक्षत्र माना गया है और इसका स्वामी [[ब्रह्मा]] को कहा गया है। | ज्योतिष शास्त्र में समस्त [[आकाश गंगा|आकाश मंडल]] को 27 भागों में विभक्त कर प्रत्येक भाग का नाम एक-एक नक्षत्र रखा गया है। सूक्ष्मता से समझाने के लिए प्रत्येक नक्षत्र के चार भाग किए गए हैं जो चरण कहलाते हैं। अभिजित को 28वां नक्षत्र माना गया है और इसका स्वामी [[ब्रह्मा]] को कहा गया है। | ||
==अभिजित मुहूर्त== | ==अभिजित मुहूर्त== | ||
मुहूर्त शास्त्र में दिन एवं रात्रि के समय को 15-15 मुहूर्तों में बांटा गया है। इन मुहूर्तों के अपने-अपने गुण एवं दोष हैं। इन मुहूर्तों में से एक है अभिजित मुहूर्त। दिन का आठवां मुहूर्त अभिजित होता है और यह मघ्याह्न के समय यह आता है। जब किसी कार्यारंभ के लिए कोई अनुकूल लग्न या ग्रह स्थिति नहीं मिल पा रही हो, तब अभिजित मुहूर्त में वह कार्य किया जा सकता है। यह अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। यहां इस बात का ध्यान विशेष रूप से रखें कि [[बुधवार]] के दिन अभिजित मुहूर्त का निषेध बताया गया है। | मुहूर्त शास्त्र में दिन एवं रात्रि के समय को 15-15 मुहूर्तों में बांटा गया है। इन मुहूर्तों के अपने-अपने गुण एवं दोष हैं। इन मुहूर्तों में से एक है अभिजित मुहूर्त। दिन का आठवां मुहूर्त अभिजित होता है और यह मघ्याह्न के समय यह आता है। जब किसी कार्यारंभ के लिए कोई अनुकूल लग्न या ग्रह स्थिति नहीं मिल पा रही हो, तब अभिजित मुहूर्त में वह कार्य किया जा सकता है। यह अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। यहां इस बात का ध्यान विशेष रूप से रखें कि [[बुधवार]] के दिन अभिजित मुहूर्त का निषेध बताया गया है। अर्थात् बुधवार के दिन अभिजित मुहूर्त होने पर भी कोई शुभ कार्य की शुरूआत नहीं करें क्योंकि अभिजित काल दिन का मघ्याह्न समय होता है और बुधवार भी वारों में मध्य में ही आता है।<ref>{{cite web |url=http://www.patrika.com/article.aspx?id=10944 |title=अभिजित मुहूर्त |accessmonthday=14 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=पत्रिका डॉट कॉम |language= हिंदी}}</ref> | ||
Latest revision as of 07:51, 7 November 2017
ज्योतिष शास्त्र में समस्त आकाश मंडल को 27 भागों में विभक्त कर प्रत्येक भाग का नाम एक-एक नक्षत्र रखा गया है। सूक्ष्मता से समझाने के लिए प्रत्येक नक्षत्र के चार भाग किए गए हैं जो चरण कहलाते हैं। अभिजित को 28वां नक्षत्र माना गया है और इसका स्वामी ब्रह्मा को कहा गया है।
अभिजित मुहूर्त
मुहूर्त शास्त्र में दिन एवं रात्रि के समय को 15-15 मुहूर्तों में बांटा गया है। इन मुहूर्तों के अपने-अपने गुण एवं दोष हैं। इन मुहूर्तों में से एक है अभिजित मुहूर्त। दिन का आठवां मुहूर्त अभिजित होता है और यह मघ्याह्न के समय यह आता है। जब किसी कार्यारंभ के लिए कोई अनुकूल लग्न या ग्रह स्थिति नहीं मिल पा रही हो, तब अभिजित मुहूर्त में वह कार्य किया जा सकता है। यह अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। यहां इस बात का ध्यान विशेष रूप से रखें कि बुधवार के दिन अभिजित मुहूर्त का निषेध बताया गया है। अर्थात् बुधवार के दिन अभिजित मुहूर्त होने पर भी कोई शुभ कार्य की शुरूआत नहीं करें क्योंकि अभिजित काल दिन का मघ्याह्न समय होता है और बुधवार भी वारों में मध्य में ही आता है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अभिजित मुहूर्त (हिंदी) (ए.एस.पी) पत्रिका डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2013।