ऊँट की चाल: Difference between revisions
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'''[[ऊँट]]''' अपने चाल के लिए पूरे मरुस्थल में प्रसिद्ध रहा है। ऊँट की एक खास चाल को झुरको कहते हैं। ऊँट की तेज चाल को ढाण कहते हैं तथा विशेष रूप से सिखाई हुई चाल को ठिरियों कहते हैं। चारों पाँव उठाकर भागने को तबड़कौ कहते हैं। पिछले पाँव से लात निकालने को ताप कहते हैं तथा चारों पाँव साथ उठालने को तापौ कहते हैं। ऊँट के इधर-उधर फुदकने को तरापणै कहते हैं। रपटक नाम की भी ऊँट की एक खास चाल होती है। ओछीढाण | '''[[ऊँट]]''' अपने चाल के लिए पूरे मरुस्थल में प्रसिद्ध रहा है। ऊँट की एक खास चाल को झुरको कहते हैं। ऊँट की तेज चाल को ढाण कहते हैं तथा विशेष रूप से सिखाई हुई चाल को ठिरियों कहते हैं। चारों पाँव उठाकर भागने को तबड़कौ कहते हैं। पिछले पाँव से लात निकालने को ताप कहते हैं तथा चारों पाँव साथ उठालने को तापौ कहते हैं। ऊँट के इधर-उधर फुदकने को तरापणै कहते हैं। रपटक नाम की भी ऊँट की एक खास चाल होती है। ओछीढाण अर्थात् खुलकर नहीं चलने वाल भी ऊँट की एक चाल होती है। सूरड़को, टसरियो लूंरियो, पड़छ आदि ऊँट की अन्य चालों में से एक है। | ||
ऊँट द्वारा खींची जाने वाली तोप को गुराब कहते हैं तथा ऊँट पर लादने वाली तोप को आराबा कहा जाता है। ऊँट पर लदने वाली एक लम्बूतरी बंदूक को जजायल कहते हैं। ऊँट पर बंधने वाली बड़े मुँह की तोप आठिया कहलाती है। ऊँट के ऊपर रखकर चलाई जाने वाली तोप को सुतरनाल कहते हैं। अगर ऊँट का सवार किसी गाँव की सरहद से निकल रहा है तो उस गाँव के जागीरदार के सम्मान में उसे नीचे उतरकर पैदल चलते हुए उसकी सरहद पार करनी पड़ती है। उस समय जनाना सवारी ऊँट पर ही सवार रहती है। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो उसको दण्ड दिया जाता है। जब भी किसी की ओठी किसी गाँव से निकले तो पूछने पर उसे अपना पूरा परिचय देना पड़ता है। कहीं मेहमान बनकर जाने पर ऊँट के चारे-पानी की व्यवस्था अगले को करनी पड़ती है। घर पर आए मेहमान को सम्मान देने के लिए उसके सामने जाकर ऊँट की मोहरी थामनी चाहिए और पीलाण वगैरह उतारने में मदद करनी चाहिए। | ऊँट द्वारा खींची जाने वाली तोप को गुराब कहते हैं तथा ऊँट पर लादने वाली तोप को आराबा कहा जाता है। ऊँट पर लदने वाली एक लम्बूतरी बंदूक को जजायल कहते हैं। ऊँट पर बंधने वाली बड़े मुँह की तोप आठिया कहलाती है। ऊँट के ऊपर रखकर चलाई जाने वाली तोप को सुतरनाल कहते हैं। अगर ऊँट का सवार किसी गाँव की सरहद से निकल रहा है तो उस गाँव के जागीरदार के सम्मान में उसे नीचे उतरकर पैदल चलते हुए उसकी सरहद पार करनी पड़ती है। उस समय जनाना सवारी ऊँट पर ही सवार रहती है। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो उसको दण्ड दिया जाता है। जब भी किसी की ओठी किसी गाँव से निकले तो पूछने पर उसे अपना पूरा परिचय देना पड़ता है। कहीं मेहमान बनकर जाने पर ऊँट के चारे-पानी की व्यवस्था अगले को करनी पड़ती है। घर पर आए मेहमान को सम्मान देने के लिए उसके सामने जाकर ऊँट की मोहरी थामनी चाहिए और पीलाण वगैरह उतारने में मदद करनी चाहिए। |
Latest revision as of 07:55, 7 November 2017
ऊँट की चाल
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जगत | जंतु (Animalia) |
संघ | कौरडेटा (Chordata) |
वर्ग | स्तनधारी (Mammalia) |
गण | आर्टियोडैकटिला (Artiodactyla) |
कुल | कैमलिडाए (Camelidae) |
जाति | कैमेलस (Camelus) |
प्रजाति | बॅक्ट्रिऍनस (bactrianus) |
द्विपद नाम | कॅमलस बॅक्ट्रिऍनस (Camelus bactrianus) |
संबंधित लेख | गाय, भैंस, हाथी, घोड़ा, सिंह, बाघ |
अन्य जानकारी | अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते है। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज़ भी कहते हैं। |
ऊँट अपने चाल के लिए पूरे मरुस्थल में प्रसिद्ध रहा है। ऊँट की एक खास चाल को झुरको कहते हैं। ऊँट की तेज चाल को ढाण कहते हैं तथा विशेष रूप से सिखाई हुई चाल को ठिरियों कहते हैं। चारों पाँव उठाकर भागने को तबड़कौ कहते हैं। पिछले पाँव से लात निकालने को ताप कहते हैं तथा चारों पाँव साथ उठालने को तापौ कहते हैं। ऊँट के इधर-उधर फुदकने को तरापणै कहते हैं। रपटक नाम की भी ऊँट की एक खास चाल होती है। ओछीढाण अर्थात् खुलकर नहीं चलने वाल भी ऊँट की एक चाल होती है। सूरड़को, टसरियो लूंरियो, पड़छ आदि ऊँट की अन्य चालों में से एक है।
ऊँट द्वारा खींची जाने वाली तोप को गुराब कहते हैं तथा ऊँट पर लादने वाली तोप को आराबा कहा जाता है। ऊँट पर लदने वाली एक लम्बूतरी बंदूक को जजायल कहते हैं। ऊँट पर बंधने वाली बड़े मुँह की तोप आठिया कहलाती है। ऊँट के ऊपर रखकर चलाई जाने वाली तोप को सुतरनाल कहते हैं। अगर ऊँट का सवार किसी गाँव की सरहद से निकल रहा है तो उस गाँव के जागीरदार के सम्मान में उसे नीचे उतरकर पैदल चलते हुए उसकी सरहद पार करनी पड़ती है। उस समय जनाना सवारी ऊँट पर ही सवार रहती है। अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो उसको दण्ड दिया जाता है। जब भी किसी की ओठी किसी गाँव से निकले तो पूछने पर उसे अपना पूरा परिचय देना पड़ता है। कहीं मेहमान बनकर जाने पर ऊँट के चारे-पानी की व्यवस्था अगले को करनी पड़ती है। घर पर आए मेहमान को सम्मान देने के लिए उसके सामने जाकर ऊँट की मोहरी थामनी चाहिए और पीलाण वगैरह उतारने में मदद करनी चाहिए।
मारवा में कुछ आङ्याँ (पहेलियाँ) ऊँट की सवारी के सम्बन्ध में प्रचलित हैं जो गाँवों में आज भी कही-सुनी जाती है। जैसे :-
ऊँट आला ओठी थारे थकै बैठी,
जका थारी बैन है कै थारी बेटी।
नहीं तो है बैन अर नहीं है बेटी,
इन्नी सासू नै म्हारी सासू सग्गी माँ बेटी।
पुराने जमाने में ऊँट का मोल इस बात से आँका जाता था कि ऊँट किस टोले से सम्बन्ध रखता है। कुछ उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं :-
सगलां में ढावको जैसलमेर में नाचणा रे टोलो। नाचना का ऊँट हिम्मती, तेज चलने वाल, देखने में चाबकियों तथा न लगने जैसा खूबसूरत होता है। फलौदी के गोमठ टोले के ऊँट भी नाचना के टोले से उन्नीस-बीस पङ्ते हैं। गोमठिया टोले के ऊँट (धाणमोला) होते है। यहाँ के ऊँट नाचने-कूदने वाले, खूबसूरत, छोटे कद, मरदानगीयुक्त होते हैं। गोमठ के ऊँट खासकर सवारी के लिए खरीदे जते हैं।
- सिंध के ऊँट : चौड़े पाँव, मजबूत भार उठाने में सबसे आगे, धीमे चलने वाले और ठीक-ठाक होते हैं।
- गुंडे के टोले के ऊँट : यह ऊँट खूबसूरत तो होते ही हैं साथ ही साथ वे भार भी अच्छा उठाते हैं, परन्तु स्वामिभक्ति एवं अन्य गुणों में वे नाचना एवं गोमठ के ऊँट से नरम होते हैं।
- केस के टोला के ऊँट : सवारी एवं भार उठाने में मजबूत होते हैं। यहाँ के ऊँट ठीक-ठाक गिने जाते हैं।
- पाज के टोले के ऊँट : भार ढोने के कलए ठीक-ठाक है परन्तु सवारी योग्य बिल्कुल नहीं होते। जालोर के ऊँट ओछे मोल के एवे घाघस होते हैं तथा चलने में ढीठ होते हैं।
- बीकानेर टोले के ऊँट : देखने में खूबसूरत, भार उठाने में मजबूत, परन्तु अत्यन्त गुस्सैल एवं मौका मिलने पर मालिक पर घात करने से भी नहीं चूकता। इसलिए इन्हें धणीमार ऊँट भी कहा जाता है।
- मेवाड़ी टोला के ऊँट : यह दिखने में गंदे, बदशक्ल, भार उठाने में कमजोर और मरियल होते हैं इसलिए उनके बारे में यह कहावत प्रचलित है कि आछो मेवाड़े लायौ रे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऊँट की चाल (हिंदी) igcna.nic.in। अभिगमन तिथि: 26 अक्टूबर, 2017।
संबंधित लेख
- REDIRECT साँचा:जीव जन्तु