प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 6: | Line 6: | ||
<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही | {निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-'मनुष्यों का सामूहिक भाईचारा'- काण्ट | -'मनुष्यों का सामूहिक भाईचारा'- काण्ट | ||
Line 17: | Line 17: | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मैकाइवर | -मैकाइवर | ||
- | -फ़ाइनर | ||
-ब्राइस | -ब्राइस | ||
+लास्की | +लास्की | ||
||'राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन है।" यह कथन लास्की का है। वास्तव में राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है। प्रो मुनरो ने कहा है कि लोकतंत्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। मैकाइवर ने कहा है कि जिस राज्य में दल प्रणाली नहीं होती उसमें क्रांति ही सरकार को बदलने का एक मात्र तरीका है। दल प्रणाली से क्रांति की आवश्यकता नहीं होती और संवैधानिक तरीके से शासन में परिवर्तन किया जा सकता है।" | ||'राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन है।" यह कथन लास्की का है। वास्तव में राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है। प्रो. मुनरो ने कहा है कि लोकतंत्रात्मक शासन दलीय शासन का ही दूसरा नाम है। मैकाइवर ने कहा है कि जिस राज्य में दल प्रणाली नहीं होती उसमें क्रांति ही सरकार को बदलने का एक मात्र तरीका है। दल प्रणाली से क्रांति की आवश्यकता नहीं होती और संवैधानिक तरीके से शासन में परिवर्तन किया जा सकता है।" | ||
{"समानता स्वतंत्रता की तरह एक ही चीज | {"समानता स्वतंत्रता की तरह एक ही चीज नहीं है। मैं लॉर्ड एक्टन के इस कथन से सहमत नहीं हूँ कि समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा के कारण स्वतंत्रता की आशा ही व्यर्थ हो गई है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-25 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मैजिनी | -मैजिनी | ||
Line 28: | Line 28: | ||
-वाल्टेयर | -वाल्टेयर | ||
-जॉन मिल्टन | -जॉन मिल्टन | ||
||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के मस्तिष्क में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक | ||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के [[मस्तिष्क]] में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक ग़लत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य ग़लत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया है।" इस तरह लास्की ने स्वतंत्रता और समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया है। | ||
{"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-69 | {"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-69 | ||
Line 46: | Line 46: | ||
||साधारण विधेयक के संदर्भ में [[संसद]] के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद 118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है। | ||साधारण विधेयक के संदर्भ में [[संसद]] के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद 118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है। | ||
{भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत [[राज्य सभा]], विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर [[संसद]] को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56 | {[[भारतीय संविधान]] के किस अनुच्छेद के अंतर्गत [[राज्य सभा]], विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर [[संसद]] को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-अनुच्छेद 247 | -अनुच्छेद 247 | ||
Line 52: | Line 52: | ||
+अनुच्छेद 249 | +अनुच्छेद 249 | ||
-अनुच्छेद 250 | -अनुच्छेद 250 | ||
||अनुच्छेद के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि | ||अनुच्छेद के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बना सकती है। साथ ही ऐसी विधि संपूर्ण [[भारत]] या उसके किसी भाग के लिए बनाई जा सकती है। परंतु राज्य सूची में सम्मिलित विषय पर राष्ट्रीय हित में विधि [[राज्य सभा]] द्वारा प्रस्ताव पारित होने के उपरांत संसद बनाती है न कि केवल राज्य सभा। | ||
{[[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114 | {[[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी | -[[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)|मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी]] | ||
-[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] | -[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] पार्टी | ||
+[[समाजवादी पार्टी]] | +[[समाजवादी पार्टी]] | ||
-[[बहुजन समाज पार्टी]] | -[[बहुजन समाज पार्टी]] | ||
||[[समाजवादी पार्टी]], [[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां हैं। वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) भारतीय जनता पार्टी, (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), (4) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, (5) बहुजन समाज पार्टी, (6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी। | ||[[समाजवादी पार्टी]], [[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां हैं। वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) [[भारतीय जनता पार्टी]], (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)|कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी)]], (4) [[भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी|कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया]], (5) बहुजन समाज पार्टी, (6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी। | ||
{समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64 | {समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64 | ||
Line 68: | Line 68: | ||
-व्यक्तियों द्वारा आर्थिक नियोजन हो | -व्यक्तियों द्वारा आर्थिक नियोजन हो | ||
+राज्य के द्वारा नियोजन हो | +राज्य के द्वारा नियोजन हो | ||
||समाजवाद राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन का पक्षधर है। पूंजीवाद का विरोधी दर्शन होने के नाते समाजवाद भूमि, | ||समाजवाद राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन का पक्षधर है। पूंजीवाद का विरोधी दर्शन होने के नाते समाजवाद भूमि, उद्योग तथा उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व (राज्य द्वारा स्वामित्व) की वकालत करता है। समाजवादियों के अनुसार वैयक्तिक उद्योग एक वैक्तिक लूटमार है। ब्लैचफोर्ड के अनुसार" भूमि तथा उत्पादन के सभी साधनों को राष्ट्रीय संपत्ति बना दो। सभी खेतों, खानों जहाजों, रेलों को राष्ट्रीय नियंत्रण में रख दो। बस व्यावहारिक समाजवाद पूरा हो जायेगा।" | ||
{मैक्स वेबर, दुर्खीम और पेरेटो को राजनीतिशास्त्र के किस उपागम से जोड़ा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-79 | {[[मैक्स वेबर]], दुर्खीम और पेरेटो को राजनीतिशास्त्र के किस उपागम से जोड़ा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-79 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-दार्शनिक | -दार्शनिक | ||
Line 76: | Line 76: | ||
-आध्यात्मिक | -आध्यात्मिक | ||
+समाजशास्त्रीय | +समाजशास्त्रीय | ||
||समाजशास्त्र, समाज के उद्भव, विकास, संगठनतंत्र और संस्थाओं के साथ-साथ, समाज के सामाजिक व्यवहार को वैज्ञानिक | ||समाजशास्त्र, समाज के उद्भव, विकास, संगठनतंत्र और संस्थाओं के साथ-साथ, समाज के सामाजिक व्यवहार को वैज्ञानिक तौर से समझने का विज्ञान है। मैक्स वेबर, दुर्खीम एवं पेरेटो तीनों ही समकालीन यूरोपीय समाजशास्त्री थे जो तत्कालीन यूरोपीय समाज की समस्याओं को अपने दृष्टिकोणों के आधार पर समझते थे। | ||
{"अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-39 | {"अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-39 | ||
Line 84: | Line 84: | ||
-स्टालिन का | -स्टालिन का | ||
-माओ का | -माओ का | ||
||मार्क्स | ||मार्क्स 'कम्युनिस्ट मैनीफेसटो' (साम्यवादी घोषणा पत्र) में लिखता है कि "अभी तक के समस्त समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है।" मार्क्स ने इसमें कुल पांच अवस्थाओं की बात की है जिसमें प्रारंभिक आदिम साम्यवादी अवस्था तथा अंतिम साम्यवादी अवस्था को छोड़कर अन्य तीनों अवस्थाओं में वर्ग विद्यमान रहे तथा उनके बीच संघर्ष चलता रहा। दास व्यवस्था में स्वामी तथा दास के मध्य, सामंती व्यवस्था में सामंत तथा कृषक के मध्य तथा पूंजीवाद व्यवस्था में बुर्जुग एवं सर्वहारा के मध्य संघर्ष विद्यमान रहा। इस प्रकार मानव इतिहास कुछ नहीं अपितु वर्ग संघर्ष की कहानी मात्र है। | ||
{ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त | |||
{"ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त होगा।" ये क्या है?- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-50 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -फ़ांसीवाद | ||
-अराजकतावाद | -अराजकतावाद | ||
-आदर्शवाद | -आदर्शवाद | ||
+समाजवाद | +समाजवाद | ||
||समाजवाद व्यक्तिवाद/उदारवाद के विरुद्ध एक प्रक्रिया है। यह पूंजीवाद विरोधी तथा उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है और व्यक्तियों के मध्य आर्थिक समानता का प्रबल पक्षधर है। परंतु मार्क्सवाद के अंतर्गत समाजवाद का एक विशेष अर्थ है। जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करके पूंजीवाद को धराशायी कर देता है और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सर्वहारा का स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर देता है तब समाजवाद अस्तित्व में आता है। इस अवस्था में राजनीतिक शक्ति के बल पर पूंजीवाद के अवशेष तत्वों को नष्ट किया जाता है जिससे वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो। | ||समाजवाद व्यक्तिवाद/उदारवाद के विरुद्ध एक प्रक्रिया है। यह पूंजीवाद विरोधी तथा उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है और व्यक्तियों के मध्य आर्थिक समानता का प्रबल पक्षधर है। परंतु मार्क्सवाद के अंतर्गत समाजवाद का एक विशेष अर्थ है। जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करके पूंजीवाद को धराशायी कर देता है और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सर्वहारा का स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर देता है तब समाजवाद अस्तित्व में आता है। इस अवस्था में राजनीतिक शक्ति के बल पर पूंजीवाद के [[अवशेष]] तत्वों को नष्ट किया जाता है जिससे वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो। | ||
{"राज्य का स्वरूप मूलत: निगम के समान है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-51 | {"राज्य का स्वरूप मूलत: निगम के समान है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-51 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-लास्की का | -लास्की का | ||
-मार्क्स का | -[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] का | ||
+मैकाइवर का | +मैकाइवर का | ||
-डुग्वी का | -डुग्वी का | ||
Line 129: | Line 127: | ||
||तनाव शैथिल्य के लिए राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में बुनियादी अंतर नहीं हुआ बल्कि 1960 के दशक के आरंभ से ही दोनों महाशक्तियां यह अनुभव करने लगी थीं कि शीत युद्ध दोनों के लिए यदि हानिकारक नहीं है तो लाभप्रद भी नहीं है। आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक संबंधों में उन्हें एक-दूसरे की कहीं न कहीं आवश्यकता हो जाती थी। अतएव अपने संबंध सुधारने की दृष्टि से दोनों ने तनाव में लचीलापन परिलक्षित किया। इस प्रक्रिया में 'देतांत' अर्थात 'तनाव-शैथिल्य' का युग आरंभ हुआ। | ||तनाव शैथिल्य के लिए राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में बुनियादी अंतर नहीं हुआ बल्कि 1960 के दशक के आरंभ से ही दोनों महाशक्तियां यह अनुभव करने लगी थीं कि शीत युद्ध दोनों के लिए यदि हानिकारक नहीं है तो लाभप्रद भी नहीं है। आर्थिक, राजनीतिक और सैनिक संबंधों में उन्हें एक-दूसरे की कहीं न कहीं आवश्यकता हो जाती थी। अतएव अपने संबंध सुधारने की दृष्टि से दोनों ने तनाव में लचीलापन परिलक्षित किया। इस प्रक्रिया में 'देतांत' अर्थात 'तनाव-शैथिल्य' का युग आरंभ हुआ। | ||
{भारत के राष्ट्रपति संविधान के किस अनुच्छेद द्वारा किसी राज्य के विधायी अधिकार संसद को सौंप सकते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-57 | {[[भारत]] के [[राष्ट्रपति]] [[संविधान]] के किस अनुच्छेद द्वारा किसी राज्य के विधायी अधिकार संसद को सौंप सकते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-57 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-अनुच्छेद 256 | -अनुच्छेद 256 | ||
Line 135: | Line 133: | ||
-अनुच्छेद 456 | -अनुच्छेद 456 | ||
-अनुच्छेद 328 | -अनुच्छेद 328 | ||
||भारत के राष्ट्रपति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 (1) (ख) के द्वारा राज्य विधानमंडल की शक्तियां संसद को सौंप सकते हैं। अनुच्छेद 356 के तहत यदि किसी राज्य के राज्यपाल के द्वारा राष्ट्रपति को यह लिखित सूचना प्रदान की जाए कि उस राज्य में शासन तंत्र विफल हो गया है तथा शासन संविधान के अनुरूप नहीं चलाया जा रहा है तो राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर देगा और राज्य की सभी प्राधिकारी | ||भारत के राष्ट्रपति [[भारतीय संविधान]] के अनुच्छेद 356 (1) (ख) के द्वारा राज्य विधानमंडल की शक्तियां संसद को सौंप सकते हैं। अनुच्छेद 356 के तहत यदि किसी राज्य के [[राज्यपाल]] के द्वारा राष्ट्रपति को यह लिखित सूचना प्रदान की जाए कि उस राज्य में शासन तंत्र विफल हो गया है तथा शासन संविधान के अनुरूप नहीं चलाया जा रहा है तो [[राष्ट्रपति]] उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर देगा और राज्य की सभी प्राधिकारी शक्तियां अपने हाथों में ले लेगा। | ||
{संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की जाती है-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-115 | |||
{[[संघ लोक सेवा आयोग]] के सदस्यों की नियुक्ति की जाती है-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-115 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्रधानमंत्री द्वारा | -[[प्रधानमंत्री]] द्वारा | ||
-लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष द्वारा | -[[लोक सेवा आयोग]] के अध्यक्ष द्वारा | ||
-गृह मंत्री द्वारा | -[[गृह मंत्री]] द्वारा | ||
+राष्ट्रपति द्वारा | +[[राष्ट्रपति]] द्वारा | ||
||भारतीय संविधान के | ||भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अनुसार, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग तथा प्रत्येक राज्य के लिए लोक सेवा आयोग होगा। अनुच्छेद 316 (1) के अनुसार, संघ लोक सेवा आयोग या संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति [[राष्ट्रपति]] द्वारा की जाती है और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपात्र द्वारा की जाती है। दो या अधिक राज्य एक संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग रख सकते हैं और संसद उनकी प्रार्थना पर संयुक्त आयोग की स्थापना कर सकती है। यदि किसी राज्य का [[राज्यपाल]] संघ के लोक सेवा आयोग से राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्य करने की प्रार्थना करे तो [[राष्ट्रपति]] के अनुमोदन से संघ लोक सेवा आयोग राज्यों के लिए भी कार्य कर सकता है। | ||
{समाजवादी राज्य को निम्न में से किस रूप में समझते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-66 | {समाजवादी राज्य को निम्न में से किस रूप में समझते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-66 | ||
Line 157: | Line 151: | ||
-राज्य एक अच्छी संस्था है। | -राज्य एक अच्छी संस्था है। | ||
||समाजवादियों के अनुसार राज्य एक कल्याणकारी संस्था है। इनके अनुसार व्यक्तिवादी पुलिस राज्य समाज की पूरी भलाई नहीं कर | ||समाजवादियों के अनुसार राज्य एक कल्याणकारी संस्था है। इनके अनुसार व्यक्तिवादी पुलिस राज्य समाज की पूरी भलाई नहीं कर सकता। समाजवादी राज्य के कार्यक्षेत्र को व्यापक करना चाहते हैं ये ग़रीबों, मजदूरों, असहायों के हित में राज्य को कल्याणकारी कार्य सौंपते है। अर्थात ये राज्य के कल्याणकारी स्वरूप को मानते हैं। | ||
{इनमें से कौन-सी अवधारणा मैक्स वेबर ने दिया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-80 | {इनमें से कौन-सी अवधारणा [[मैक्स वेबर]] ने दिया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-80 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-संसदीय वर्चस्ववाद | -संसदीय वर्चस्ववाद | ||
Line 169: | Line 163: | ||
{यह सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया है कि 'नव उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद की अंतिम अवस्था है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-40 | {यह सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया है कि 'नव उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद की अंतिम अवस्था है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-40 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +नक्रुमा | ||
-लेनिन | -लेनिन | ||
-जे.ए. हॉब्सन | -जे.ए. हॉब्सन | ||
-एरिक फ्रॉम | -एरिक फ्रॉम | ||
||नव उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद की अंतिम अवस्था है। यह कथन | ||नव उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद की अंतिम अवस्था है। यह कथन नक्रुमा का है। नक्रुमा (Kwame Nkrumag) घाना के प्रथम प्रधानमंत्री और [[राष्ट्रपति]] थे। घाना ने इन्हीं के नेतृत्व में 1957 में ब्रिटिश से आज़ादी प्राप्त की थी। नक्रुमा रूप के क्रांन्तिकारी लेनिन के अनुयायी थे। इन्हें [[अफ्रीका]] का लेनिन भी कहा जाता है। लेनिन की भांति इन्होंने भी अपनी पुस्तक का नाम नव उपनिवेशवाद: साम्राज्यवाद की अंतिम अवस्था रखा। ज्ञातव्य है कि लेनिन ने उपनिवेशवाद को साम्राज्यवाद का उच्चतम चरण कहा है। | ||
{श्रेणी समाजवाद समर्थन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-51 | {श्रेणी समाजवाद समर्थन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-51 | ||
Line 182: | Line 176: | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||श्रेणी समाजवाद का विकास ब्रिटेन में हुआ। इसके अनुसार, राज्य संप्रभु होगा, सभी शक्तियों का स्त्रोत होगा किंतु वह उसका उपभोग नहीं करेगा वरन् शक्तियों का प्रयोग विभिन्न आर्थिक श्रेणियां करेंगी। श्रेणी समाजवादी व्यावसायिक प्रतिनिधित्व की मांग करते हैं। | ||श्रेणी समाजवाद का विकास ब्रिटेन में हुआ। इसके अनुसार, राज्य संप्रभु होगा, सभी शक्तियों का स्त्रोत होगा किंतु वह उसका उपभोग नहीं करेगा वरन् शक्तियों का प्रयोग विभिन्न आर्थिक श्रेणियां करेंगी। श्रेणी समाजवादी व्यावसायिक प्रतिनिधित्व की मांग करते हैं। | ||
{निम्न में से कौन विकेंद्रित समाजवाद के प्रबल समर्थक थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-65 | {निम्न में से कौन विकेंद्रित समाजवाद के प्रबल समर्थक थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-65 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -[[जयप्रकाश नारायण]] | ||
-आचार्य नरेंद्र देव | -[[आचार्य नरेंद्र देव]] | ||
+डॉ. राम मनोहर लोहिया | +[[डॉ. राम मनोहर लोहिया]] | ||
-आचार्य विनोबा भावे | -[[आचार्य विनोबा भावे]] | ||
||डॉ. राम मनोहर लोहिया विकेंद्रीकृत समाजवाद के समर्थक थे। पूंजी के संचय तथा बढ़ती हुई बेकारी को रोकने के लिए लोहिया ने छोटी मशीनी पर आधारित उद्योग का समर्थन किया। लोहिया प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के भी समर्थक थे उन्होंने चौखंभा राज्य की कल्पना की। जिसके अंतर्गत गांव, मण्डल ( | ||डॉ. राम मनोहर लोहिया विकेंद्रीकृत समाजवाद के समर्थक थे। पूंजी के संचय तथा बढ़ती हुई बेकारी को रोकने के लिए लोहिया ने छोटी मशीनी पर आधारित उद्योग का समर्थन किया। लोहिया प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण के भी समर्थक थे उन्होंने चौखंभा राज्य की कल्पना की। जिसके अंतर्गत गांव, मण्डल (ज़िला), प्रांत तथा केंद्रीय सरकार इसके चार स्तंभ होगें। 'Wheel of History' इनकी प्रमुख रचना है। | ||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} | ||
|} | |} |
Revision as of 11:17, 11 November 2017
|