प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 6: | Line 6: | ||
<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{लाखों लोग [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] को देवता के रूप में पूजते हैं और अन्य लाखों लोग एक दुष्ट के रूप में घृणा करते हैं", यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-41 | {लाखों लोग [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] को [[देवता]] के रूप में पूजते हैं और अन्य लाखों लोग एक दुष्ट के रूप में घृणा करते हैं", यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-41 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+मैक्सी | +मैक्सी | ||
Line 12: | Line 12: | ||
-कार्ल पॉपर | -कार्ल पॉपर | ||
-ऑकशाट | -ऑकशाट | ||
||मार्क्स वैज्ञानिक समाजवाद का जन्मदाता है यद्यपि मार्क्स से पहले अनेक ब्रिटिश तथा फ्रेंच विचारक थे जिनके द्वारा समाजवादी विचार व्यक्त किए गए। इनमें फ्रांस के नॉयल बाबेफ, सेण्ड साइमन, चार्ल्सफोरियर, और इग्लैण्ड में जॉन, डी. सिसमेण्डी, बिलियम थॉम्पसन तथा रावर्ट आवेन प्रमुख थे। लेकिन [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने सामाजिक परिवर्तन करने वाली शक्तियों की व्याख्या कर उसे वैज्ञानिकता प्रदान की। मार्क्स के विचार इतने हुए मैक्सी ने लिखा है कि "निष्पक्ष रूप से उस व्यक्ति के बारे में कुछ भी कहना बहुत कठिन हो जाता है जिसे लाखों लोग ईश्वर की भांति पूजते हो और लाखों पिशाच मानकर घृणा करते हों।" | ||[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] वैज्ञानिक समाजवाद का जन्मदाता है यद्यपि मार्क्स से पहले अनेक ब्रिटिश तथा फ्रेंच विचारक थे जिनके द्वारा समाजवादी विचार व्यक्त किए गए। इनमें फ्रांस के नॉयल बाबेफ, सेण्ड साइमन, चार्ल्सफोरियर, और इग्लैण्ड में जॉन, डी. सिसमेण्डी, बिलियम थॉम्पसन तथा रावर्ट आवेन प्रमुख थे। लेकिन [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने सामाजिक परिवर्तन करने वाली शक्तियों की व्याख्या कर उसे वैज्ञानिकता प्रदान की। मार्क्स के विचार इतने हुए मैक्सी ने लिखा है कि "निष्पक्ष रूप से उस व्यक्ति के बारे में कुछ भी कहना बहुत कठिन हो जाता है जिसे लाखों लोग ईश्वर की भांति पूजते हो और लाखों पिशाच मानकर घृणा करते हों।"{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[कार्ल मार्क्स]] | ||
{फ़ेबियन समाजवाद समर्थक नहीं था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-52 | {फ़ेबियन समाजवाद समर्थक नहीं था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-52 | ||
Line 22: | Line 23: | ||
||फ़ेबियन समाजवाद उग्र परिवर्तनों का समर्थक नहीं था। | ||फ़ेबियन समाजवाद उग्र परिवर्तनों का समर्थक नहीं था। | ||
{राज्य के कार्यों | {राज्य के कार्यों को परंपरागत विचारधारा के अनुसार अनिवार्य तथा ऐच्छिक दो भागों में बांटा गया है लेकिन वर्तमान समय में समय की अवधारणा के अनुसार अनिवार्य और ऐच्छिक का भेद समाप्त है तथा समस्त कार्य अनिवार्य ही माने जा रहे हैं।(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-53 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+लोक कल्याणकारी राज्य | +लोक कल्याणकारी राज्य | ||
Line 28: | Line 29: | ||
-लोकतांत्रिक राज्य | -लोकतांत्रिक राज्य | ||
-आदर्शवादी राज्य | -आदर्शवादी राज्य | ||
||परंपरागत विचारधारा राज्य के कार्यों को दो वर्गों (अनिवार्य तथा ऐच्छिक) में विभाजित करने की रही है और यह माना जाता रहा है कि अनिवार्य कार्य तो [[राज्य]] के अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किए जाने ज़रूरी हैं, किंतु ऐच्छिक कार्य राज्य की जनता के हित में होते हुए भी राज्य के द्वारा उनका | ||परंपरागत विचारधारा राज्य के कार्यों को दो वर्गों (अनिवार्य तथा ऐच्छिक) में विभाजित करने की रही है और यह माना जाता रहा है कि अनिवार्य कार्य तो [[राज्य]] के अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किए जाने ज़रूरी हैं, किंतु ऐच्छिक कार्य राज्य की जनता के हित में होते हुए भी राज्य के द्वारा उनका किया जाना तत्कालीन समय की विशेष परिस्थितियों और शासन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन लोक-कल्याणकारी राज्य की धारणा के विकास के परिणामस्वरूप अनिवार्य और ऐच्छिक कार्यों की वह सीमा-रेखा समाप्त हो गई है और अब यह माना जाने लगा है कि परंपरागत रूप में ऐच्छिक कहे जाने वाले कार्य भी राज्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने कि अनिवार्य समझे जाने वाले कार्य। | ||
{"इतिहास कुलीन | {"इतिहास कुलीन वर्ग का श्मशान है।" यह कथन किस विचारक का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-61 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[प्लेटो]] | -[[प्लेटो]] | ||
Line 36: | Line 37: | ||
-मोस्का | -मोस्का | ||
-बर्नहम | -बर्नहम | ||
||पैरेटो 'अभिजन वर्ग' सिद्धांत का प्रवक्ता है। इसके अनुसार, अभिजनों में संरचण होता है। कोई भी राजनीतिक अभिजन स्थायी नहीं होता है। प्रत्येक समाज में व्यक्ति और अभिजन वर्ग अनवरत रूप से ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर, और नीचे स्तर से ऊंचे स्तर की ओर जाते रहते हैं। पतनकारक तत्त्वों की संख्या बढ़ती रहती है और दूसरी ओर शासित वर्गों में ऊंचे गुणों से संपन्न तत्त्व उभरते रहते हैं। पैरेटो का कहना हैं कि इस प्रक्रिया के माध्यम से समाज का प्रत्येक अभिजन वर्ग अंतत: नष्ट हो जाता है और उसके स्थान पर दूसरे लोग आ जाते हैं। इसके पैरेटो ने इतिहास को 'कुलीन | ||पैरेटो 'अभिजन वर्ग' सिद्धांत का प्रवक्ता है। इसके अनुसार, अभिजनों में संरचण होता है। कोई भी राजनीतिक अभिजन स्थायी नहीं होता है। प्रत्येक समाज में व्यक्ति और अभिजन वर्ग अनवरत रूप से ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर, और नीचे स्तर से ऊंचे स्तर की ओर जाते रहते हैं। पतनकारक तत्त्वों की संख्या बढ़ती रहती है और दूसरी ओर शासित वर्गों में ऊंचे गुणों से संपन्न तत्त्व उभरते रहते हैं। पैरेटो का कहना हैं कि इस प्रक्रिया के माध्यम से समाज का प्रत्येक अभिजन वर्ग अंतत: नष्ट हो जाता है और उसके स्थान पर दूसरे लोग आ जाते हैं। इसके पैरेटो ने इतिहास को 'कुलीन वर्ग का शमशान' कहा है। | ||
Line 45: | Line 46: | ||
-मिल | -मिल | ||
+जेफरसन | +जेफरसन | ||
|| | ||थॉमस जेफरसन [[अमेरिका]] के तीसरे [[राष्ट्रपति]] और 'अमेरिकी' 'स्वतंत्रता की घोषणा' के मुख्य लेखक थे। उन्होंने कहा था कि "ईश्वर जिसने हमें जन्म दिया उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की।" जेफरसन का ही कथन है कि जहाँ प्रेस की आजादी होती है और सभी पढ़ने के योग्य होने हैं वहा सभी सुरक्षित होते हैं। | ||
{इनमें से कौन राजनीतिक व्यवस्था का लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-72 | {इनमें से कौन राजनीतिक व्यवस्था का लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-72 | ||
Line 52: | Line 53: | ||
-राजनीतिक व्यवस्था की सीमा होती है। | -राजनीतिक व्यवस्था की सीमा होती है। | ||
-राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण होता है। | -राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण होता है। | ||
-राजनीतिक व्यवस्था | -राजनीतिक व्यवस्था की वैध बाह्यकारी शक्ति होती है। | ||
||आमंड और पावेल ने राजनीतिक व्यवस्था के कुछ लक्षण इस प्रकार बताए हैं- भागों की अंतनिर्भरता या अंत:संबंधित गतिविधियां, राजनीतिक व्यवस्था की सीमा, राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण, और वैध बाध्यकारी शक्ति। | ||आमंड और पावेल ने राजनीतिक व्यवस्था के कुछ लक्षण इस प्रकार बताए हैं- भागों की अंतनिर्भरता या अंत:संबंधित गतिविधियां, राजनीतिक व्यवस्था की सीमा, राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण, और वैध बाध्यकारी शक्ति। | ||
Line 69: | Line 70: | ||
+वे [[प्रधानमंत्री]] द्वारा नियुक्त होते हैं | +वे [[प्रधानमंत्री]] द्वारा नियुक्त होते हैं | ||
-वे निष्पक्ष होते हैं | -वे निष्पक्ष होते हैं | ||
||[[संघ लोक सेवा आयोग]] के सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति [[राष्ट्रपति]] द्वारा की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य 6 वर्ष या जब तक वह 65 वर्ष आयु के हों, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान | ||[[संघ लोक सेवा आयोग]] के सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति [[राष्ट्रपति]] द्वारा की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य 6 वर्ष या जब तक वह 65 वर्ष आयु के हों, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान निष्पक्षता से कार्य करने हेतु वे कर्त्तव्यबद्ध होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि कथन-3 असत्य है। | ||
{विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना | {विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना कहाँ हुई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-63,प्रश्न-68 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[चीन]] में | -[[चीन]] में | ||
Line 77: | Line 78: | ||
-क्यूबा में | -क्यूबा में | ||
-चेकोस्लोवालिया में | -चेकोस्लोवालिया में | ||
||विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना [[सोवियत संघ]] में [[1917]] में हुई थी। लेनिन सोवियत संघ की बोल्शेविक क्रांति (1917) के कर्णधार थे। यह प्रथम विश्व युद्ध ([[1914]]-[[1918]]) का समय था जब लेनिन ने अपनी विख्यात कृति 'साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है' | ||विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना [[सोवियत संघ]] में [[1917]] में हुई थी। लेनिन सोवियत संघ की बोल्शेविक क्रांति (1917) के कर्णधार थे। यह प्रथम विश्व युद्ध ([[1914]]-[[1918]]) का समय था जब लेनिन ने अपनी विख्यात कृति 'साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है' (1916) लिखी। इसमें लेनिन ने तर्क दिया है कि पूंजीवाद राष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा का शोषण तो करता ही है पर यह साम्राज्यवाद का जाल बिछाकर अल्प विकसित देशों का शोषण भी करता है। इसी नारे के साथ लेनिन ने [[रूस]] में क्रांन्ति कर समाजवादी राज्य की स्थापना की। | ||
{"समाज की उन्नति के लिए '[[विज्ञान]] की प्रबुद्ध तानाशाही" आवश्यक है।" निम्नलिखित विचारकों में से किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न- 82 | {"समाज की उन्नति के लिए '[[विज्ञान]] की प्रबुद्ध तानाशाही" आवश्यक है।" निम्नलिखित विचारकों में से किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न- 82 | ||
Line 86: | Line 87: | ||
-सी.बी. मैक्फर्सन | -सी.बी. मैक्फर्सन | ||
||फ्रांसिस बेकन के अनुसार "समाज की उन्नति के लिए विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही आवश्यक | ||फ्रांसिस बेकन के अनुसार "समाज की उन्नति के लिए विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही आवश्यक है।" | ||
Line 95: | Line 96: | ||
-किसी भी वर्ग की विचारधारा का प्रतिनिधि नहीं करता | -किसी भी वर्ग की विचारधारा का प्रतिनिधि नहीं करता | ||
-समाप्त कर दिया जाता है | -समाप्त कर दिया जाता है | ||
||मार्क्सवादी समाजवाद के अनुसार, समाजवादी राज्य अर्थात सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व में राज्य बना रहेगा लेकिन राज्य की शक्ति का प्रयोग सर्वहारा वर्ग के द्वारा पूंजीवाद के अवशेषों को समाप्त करने के लिए किया जाएगा। [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार, 'समाजवादी राज्य' एक साधन है इसका अभीष्ट 'साध्य' 'साम्यवादी समाज' है। समाजवादी व्यवस्था में बचे हुए पूंजीपतियों को नष्ट करने के लिए मार्क्सवाद बुर्जुआ वर्ग के ही | ||मार्क्सवादी समाजवाद के अनुसार, समाजवादी राज्य अर्थात सर्वहारा वर्ग के अधिनायकत्व में राज्य बना रहेगा लेकिन राज्य की शक्ति का प्रयोग सर्वहारा वर्ग के द्वारा पूंजीवाद के अवशेषों को समाप्त करने के लिए किया जाएगा। [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के अनुसार, 'समाजवादी राज्य' एक साधन है इसका अभीष्ट 'साध्य' 'साम्यवादी समाज' है। समाजवादी व्यवस्था में बचे हुए पूंजीपतियों को नष्ट करने के लिए मार्क्सवाद बुर्जुआ वर्ग के ही शस्त्र (राज्य) से इस वर्ग को खत्म करने की बात करता है। | ||
{निम्न में कौन [[राज्य]] का अनिवार्य अंग नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-54 | {निम्न में कौन [[राज्य]] का अनिवार्य अंग नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-54 |
Revision as of 12:40, 15 November 2017
|