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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
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| {लाखों लोग [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] को [[देवता]] के रूप में पूजते हैं और अन्य लाखों लोग एक दुष्ट के रूप में घृणा करते हैं", यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-41
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| +मैक्सी
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| -सेबाइन
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| -कार्ल पॉपर
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| -ऑकशाट
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| ||[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] वैज्ञानिक समाजवाद का जन्मदाता है यद्यपि मार्क्स से पहले अनेक ब्रिटिश तथा फ्रेंच विचारक थे जिनके द्वारा समाजवादी विचार व्यक्त किए गए। इनमें फ्रांस के नॉयल बाबेफ, सेण्ड साइमन, चार्ल्सफोरियर, और इग्लैण्ड में जॉन, डी. सिसमेण्डी, बिलियम थॉम्पसन तथा रावर्ट आवेन प्रमुख थे। लेकिन [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] ने सामाजिक परिवर्तन करने वाली शक्तियों की व्याख्या कर उसे वैज्ञानिकता प्रदान की। मार्क्स के विचार इतने हुए मैक्सी ने लिखा है कि "निष्पक्ष रूप से उस व्यक्ति के बारे में कुछ भी कहना बहुत कठिन हो जाता है जिसे लाखों लोग ईश्वर की भांति पूजते हो और लाखों पिशाच मानकर घृणा करते हों।"{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[कार्ल मार्क्स]]
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| {फ़ेबियन समाजवाद समर्थक नहीं था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-52
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| +उग्र परिवर्तनों का
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| -म्यूनिसिपल सुधारों का
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| -अविलंब सामाजिक पुन: संरचना का
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| -मजदूरों के आंदोलन का
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| ||फ़ेबियन समाजवाद उग्र परिवर्तनों का समर्थक नहीं था।
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| {राज्य के कार्यों को परंपरागत विचारधारा के अनुसार अनिवार्य तथा ऐच्छिक दो भागों में बांटा गया है लेकिन वर्तमान समय में समय की अवधारणा के अनुसार अनिवार्य और ऐच्छिक का भेद समाप्त है तथा समस्त कार्य अनिवार्य ही माने जा रहे हैं।(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-53
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| +लोक कल्याणकारी राज्य
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| -अनिवार्य सेवा राज्य
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| -लोकतांत्रिक राज्य
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| -आदर्शवादी राज्य
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| ||परंपरागत विचारधारा राज्य के कार्यों को दो वर्गों (अनिवार्य तथा ऐच्छिक) में विभाजित करने की रही है और यह माना जाता रहा है कि अनिवार्य कार्य तो [[राज्य]] के अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किए जाने ज़रूरी हैं, किंतु ऐच्छिक कार्य राज्य की जनता के हित में होते हुए भी राज्य के द्वारा उनका किया जाना तत्कालीन समय की विशेष परिस्थितियों और शासन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन लोक-कल्याणकारी राज्य की धारणा के विकास के परिणामस्वरूप अनिवार्य और ऐच्छिक कार्यों की वह सीमा-रेखा समाप्त हो गई है और अब यह माना जाने लगा है कि परंपरागत रूप में ऐच्छिक कहे जाने वाले कार्य भी राज्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने कि अनिवार्य समझे जाने वाले कार्य।
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| {"इतिहास कुलीन वर्ग का श्मशान है।" यह कथन किस विचारक का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-61
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| -[[प्लेटो]]
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| +पैरेटो
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| -मोस्का
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| -बर्नहम
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| ||पैरेटो 'अभिजन वर्ग' सिद्धांत का प्रवक्ता है। इसके अनुसार, अभिजनों में संरचण होता है। कोई भी राजनीतिक अभिजन स्थायी नहीं होता है। प्रत्येक समाज में व्यक्ति और अभिजन वर्ग अनवरत रूप से ऊंचे स्तर से नीचे स्तर की ओर, और नीचे स्तर से ऊंचे स्तर की ओर जाते रहते हैं। पतनकारक तत्त्वों की संख्या बढ़ती रहती है और दूसरी ओर शासित वर्गों में ऊंचे गुणों से संपन्न तत्त्व उभरते रहते हैं। पैरेटो का कहना हैं कि इस प्रक्रिया के माध्यम से समाज का प्रत्येक अभिजन वर्ग अंतत: नष्ट हो जाता है और उसके स्थान पर दूसरे लोग आ जाते हैं। इसके पैरेटो ने इतिहास को 'कुलीन वर्ग का शमशान' कहा है।
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| {यह कथन किसका है "ईश्वर जिसने हमें जन्म दिया उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-88,प्रश्न-28
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| -[[महात्मा गाँधी|गांधी जी]]
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| -लास्की
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| -मिल
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| +जेफरसन
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| ||थॉमस जेफरसन [[अमेरिका]] के तीसरे [[राष्ट्रपति]] और 'अमेरिकी' 'स्वतंत्रता की घोषणा' के मुख्य लेखक थे। उन्होंने कहा था कि "ईश्वर जिसने हमें जन्म दिया उसी ने स्वतंत्रता भी प्रदान की।" जेफरसन का ही कथन है कि जहाँ प्रेस की आजादी होती है और सभी पढ़ने के योग्य होने हैं वहा सभी सुरक्षित होते हैं।
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| {इनमें से कौन राजनीतिक व्यवस्था का लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-72
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| |type="()"}
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| +राजनीतिक व्यवस्था के अंग एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होते।
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| -राजनीतिक व्यवस्था की सीमा होती है।
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| -राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण होता है।
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| -राजनीतिक व्यवस्था की वैध बाह्यकारी शक्ति होती है।
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| ||आमंड और पावेल ने राजनीतिक व्यवस्था के कुछ लक्षण इस प्रकार बताए हैं- भागों की अंतनिर्भरता या अंत:संबंधित गतिविधियां, राजनीतिक व्यवस्था की सीमा, राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण, और वैध बाध्यकारी शक्ति।
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| {लोक लेखा-समिति अपना प्रतिवेदन सौंपती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-59
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| -[[राष्ट्रपति]] को
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| -[[प्रधानमंत्री]] को
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| +[[लोक सभा]] को
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| -वित्त मंत्री को
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| ||लोक सभा समिति अपना प्रतिवेदन [[लोक सभा]] के स्पीकर (अध्यक्ष) को प्रस्तुत करती है क्योंकि यह वित्तीय समिति है साथ ही यह समिति लोक सभा की समिति है। [[राज्य सभा]] के सदस्य इसमें सहयुक्त होते हैं जिससे समिति सुदृढ़ हो जाए।
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| {इनमें से कौन-सा तथ्य [[संघ लोक सेवा आयोग]] के सदस्यों के संदर्भ में सत्य नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-117
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| -वे [[राष्ट्रपति]] द्वारा नियुक्त होते हैं
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| -उनकी नियुक्ति 6 वर्ष या जब तक वे 65 वर्ष के हों, जो भी पहले हो, के लिए होती है
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| +वे [[प्रधानमंत्री]] द्वारा नियुक्त होते हैं
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| -वे निष्पक्ष होते हैं
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| ||[[संघ लोक सेवा आयोग]] के सदस्यों तथा अध्यक्ष की नियुक्ति [[राष्ट्रपति]] द्वारा की जाती है। संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य 6 वर्ष या जब तक वह 65 वर्ष आयु के हों, जो भी पहले हो, पद पर बने रहते हैं। अपने कार्यकाल के दौरान निष्पक्षता से कार्य करने हेतु वे कर्त्तव्यबद्ध होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि कथन-3 असत्य है।
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| {विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना कहाँ हुई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-63,प्रश्न-68
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| |type="()"}
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| -[[चीन]] में
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| +[[सोवियत संघ]] में
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| -क्यूबा में
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| -चेकोस्लोवालिया में
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| ||विश्व में प्रथम समाजवादी राज्य की स्थापना [[सोवियत संघ]] में [[1917]] में हुई थी। लेनिन सोवियत संघ की बोल्शेविक क्रांति (1917) के कर्णधार थे। यह प्रथम विश्व युद्ध ([[1914]]-[[1918]]) का समय था जब लेनिन ने अपनी विख्यात कृति 'साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है' (1916) लिखी। इसमें लेनिन ने तर्क दिया है कि पूंजीवाद राष्ट्रीय स्तर पर सर्वहारा का शोषण तो करता ही है पर यह साम्राज्यवाद का जाल बिछाकर अल्प विकसित देशों का शोषण भी करता है। इसी नारे के साथ लेनिन ने [[रूस]] में क्रांन्ति कर समाजवादी राज्य की स्थापना की।
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| {"समाज की उन्नति के लिए '[[विज्ञान]] की प्रबुद्ध तानाशाही" आवश्यक है।" निम्नलिखित विचारकों में से किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न- 82
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| |type="()"}
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| +फ्रांसिस बेकन
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| -ज्यां जाक रूसो
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| -ल्यूकाच
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| -सी.बी. मैक्फर्सन
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| ||फ्रांसिस बेकन के अनुसार "समाज की उन्नति के लिए विज्ञान की प्रबुद्ध तानाशाही आवश्यक है।"
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| |type="()"} | | |type="()"} |
| -जार्ज कैटलिन | | -जार्ज कैटलिन |
| +लियो स्ट्रास | | +लियो स्ट्रॉस |
| -जार्ज सेबाइन | | -जार्ज सेबाइन |
| -नार्मन जैकबसन | | -नार्मन जैकबसन |
| ||लियोस्ट्रास राजनीति विज्ञान में दार्शनिक सिद्धांत के प्रमुख उन्नायक हैं लियोस्ट्रास ने राजनीति सिद्धान्त और राजनीति दर्शन में भेद बताया है। इनकी मान्यता है कि ये दोनों ही राजनीतिक चिंतन के अंग है। इनके अनुसार राजनीतिक सिद्धांत-राजनीतिक घटनाओं की प्रकृति को उसके सही रूप में जानने का प्रयत्न है" तथा राजनीतिक दर्शन से तात्पर्य "राजनीतिक गतिविधियों के संबंध में अभिमत के स्थान पर उनकी प्रकृति के संबंध में ज्ञान की स्थापना करने का प्रयत्न है। राजनीतिक गतिविधियों की प्रकृति और अच्छी राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप को उनके सही रूप में जान लेने का प्रयत्न है।" | | ||लियो स्ट्रॉस राजनीति विज्ञान में दार्शनिक सिद्धांत के प्रमुख उन्नायक हैं लियो स्ट्रॉस ने राजनीति सिद्धान्त और राजनीति दर्शन में भेद बताया है। इनकी मान्यता है कि ये दोनों ही राजनीतिक चिंतन के अंग है। इनके अनुसार राजनीतिक सिद्धांत-राजनीतिक घटनाओं की प्रकृति को उसके सही रूप में जानने का प्रयत्न है तथा राजनीतिक दर्शन से तात्पर्य राजनीतिक गतिविधियों के संबंध में अभिमत के स्थान पर उनकी प्रकृति के संबंध में ज्ञान की स्थापना करने का प्रयत्न है। राजनीतिक गतिविधियों की प्रकृति और अच्छी राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप को उनके सही रूप में जान लेने का प्रयत्न है। |
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| {कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसका निर्णय कौन करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-50 | | {कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसका निर्णय कौन करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-146,प्रश्न-50 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश | | -[[सर्वोच्च न्यायालय]] का मुख्य न्यायाधीश |
| -लोक सभा का अध्यक्ष | | -[[लोक सभा अध्यक्ष|लोक सभा का अध्यक्ष]] |
| -प्रधानमंत्री | | -[[प्रधानमंत्री]] |
| +इनमें से कोई नहीं | | +इनमें से कोई नहीं |
| ||कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसके लिए निर्णय की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 117 में वित्त विधेयक के संबंध में विशेष उपबंध का उल्लेख है। सामान्य रूप से कोई ऐसा विधेयक वित्त विधेयक होता है जो राजस्व व्यय से संबंधित हो। वित्त विधेयकों में किसी धन विधेयक के लिए संविधान में उल्लिखित किसी मामले का उपबंध करने के अतिरिक्त, अन्य मामलों का भी उपबंध किया जाता है। वित्त विधेयकों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- | | ||कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसके लिए निर्णय की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 117 में वित्त विधेयक के संबंध में विशेष उपबंध का उल्लेख है। सामान्य रूप से कोई ऐसा विधेयक वित्त विधेयक होता है जो राजस्व व्यय से संबंधित हो। वित्त विधेयकों में किसी धन विधेयक के लिए [[संविधान]] में उल्लिखित किसी मामले का उपबंध करने के अतिरिक्त, अन्य मामलों का भी उपबंध किया जाता है। वित्त विधेयकों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- श्रेणी (क) ऐसे विधेयक जिसमें धन विधेयक के लिए अनुच्छेद 110 में उल्लिखित किसी भी मामले के लिए उपबंध किए जाते है परंतु केवल उन्हीं मामलों के लिए ही उपबंध नहीं किए जाते, उदाहरणार्थ कोई विधेयक जिसमें करारोपण का खंड होता है परंतु वह केवल करारोपण के संबंध में नहीं होता। श्रेणी (ख) ऐसे विधेयक जिसमें संचित निधि से व्यय संबंधी उपबंध हों, जबकि कोई विधेयक 'धन विधेयक' है या नहीं इसका विनिश्चय संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के अनुसार [[लोक सभा अध्यक्ष]] द्वारा किया जाता है और उसका विनिश्चय अंतिम होता है। |
| श्रेणी (क) ऐसे विधेयक जिसमें धन विधेयक के लिए अनुच्छेद 110 में उल्लिखित किसी भी मामले के लिए उपबंध किए जाते है परंतु केवल उन्हीं मामलों के लिए ही उपबंध नहीं किए जाते, उदाहरणार्थ कोई विधेयक जिसमें करारोपण का खंड होता है परंतु वह केवल करारोपण के संबंध में नहीं होता। | |
| श्रेणी (ख) ऐसे विधेउक जिसमें संचित निधि से व्यय संबंधी उपबंध हों, जबकि कोई विधेयक 'धन विधेयक' है या नहीं इसका विनिश्चय संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के अनुसार लोक सभा अध्यक्ष द्वारा किया जाता है और उसका विनिश्चय अंतिम होता है। | |
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| {किन दो भाषाओं का उपयोग भारत के किसी भी हिस्से में भाषाओं के रूप में नहीं होता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-118 | | {किन दो भाषाओं का उपयोग [[भारत]] के किसी भी हिस्से में भाषाओं के रूप में नहीं होता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-118 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +सिंधी और संस्कृत | | +[[सिंधी भाषा|सिंधी]] और [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] |
| -सिंधी और अंग्रेजी | | -सिंधी और [[अंग्रेज़ी]] |
| -पंजाबी और उर्दू | | -[[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] और [[उर्दू भाषा|उर्दू]] |
| -तमिल और कश्मीरी | | -[[तमिल भाषा|तमिल]] और [[कश्मीरी भाषा|कश्मीरी]] |
| ||इंधी तथा संस्कृत भाषा का उपयोग भारत के किसी भी हिस्से में भाषाओं के रूप में नहीं होता है। ये दोनों ही भाषाएं आठवीं अनुसूची में वर्णित 22 भाषाओं में सम्मिलित हैं। | | ||[[सिंधी भाषा|सिंधी]] तथा [[संस्कृत भाषा]] का उपयोग भारत]] के किसी भी हिस्से में [[भाषा|भाषाओं]] के रूप में नहीं होता है। ये दोनों ही भाषाएं [[आठवीं अनुसूची]] में वर्णित 22 भाषाओं में सम्मिलित हैं।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[आठवीं अनुसूची]] |
| अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
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| .अनु. 343 (1) के अनुसार, संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी है।
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| .अनु. 345 राज्य की राजभाषा या राजभाषाएं संबंधी उपबंध करता है।
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| .अनु. 345 के अनुसार, अनु 246 (दो राज्यों के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा) और अनु. 347 (किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा संबंधी विशेष उपबंध) के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान मंडल, विधि द्वारा इस राज्य में प्रयोग की जाने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक को या हिंदी को उस राज्य के शासकीय प्रयोजन में प्रयुक्त भाषा के रूप में अंगीकार कर सकेगा।
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| .अनु. 351 के प्रावधानों के अनुसार, संघ का कर्त्तव्य है कि वह हिंदी का प्रसार बढ़ाए तथा मुख्यतया संस्कृत और अन्य गौण भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।
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| {अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के यथार्थवादी दृष्टिकोण के विकास में निम्नलिखित में से किस विद्वान का योगदान नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-83 | | {अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के यथार्थवादी दृष्टिकोण के विकास में निम्नलिखित में से किस विद्वान का योगदान नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-83 |
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| -हान्स मार्गेन्थाऊ | | -हान्स मार्गेन्थाऊ |
| +अब्राहम लिंकन | | +अब्राहम लिंकन |
| ||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के बीच निरंतर होने वाले शक्ति संघर्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है।" यह कथन किसका है? | | ||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के यथार्थवादी दृष्टिकोण के विकास में कई विद्वानों का योगदान रहा है जिनमें जॉर्ज कैनन, राइनॉल्ड नेबूर, जॉर्ज श्वरजनबरगर, डॉ हेनरी किंसिजर तथा हान्स, मॉरगेन्थाऊ प्रमुख हैं, जबकि अब्राहम लिकंन प्रजातांत्रिक व्यवस्था के पोषक थे। |
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| {मार्क्सवाद स्थापित करना चाहता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-43 | | {मार्क्सवाद स्थापित करना चाहता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-43 |
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| -उत्पादन एवं वितरण पर आधारित समाज | | -उत्पादन एवं वितरण पर आधारित समाज |
| -शोषण विहीन, वर्ग विहीन समाज | | -शोषण विहीन, वर्ग विहीन समाज |
| +उक्त सभी | | +उपरोक्त सभी |
| ||मार्क्सवाद एक न्यायसंगत समाज, उत्पादन व वितरण पर आधारित समाज, शोषण विहीन, वर्ग विहीन, राज्य विहीन समाज के स्थापना की बात करना है और यह सब 'साम्यवाद' में ही संभव है। | | ||मार्क्सवाद एक न्यायसंगत समाज, उत्पादन व वितरण पर आधारित समाज, शोषण विहीन, वर्ग विहीन, राज्य विहीन समाज के स्थापना की बात करना है और यह सब 'साम्यवाद' में ही संभव है। |
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