द्वितीय तमिल संगम: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:41, 29 April 2018

तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जाता है। 'संगम' शब्द का अर्थ है- संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। वास्तव में संगम, तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धिजीवियों की एक परिषद थी। सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया। संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था, उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन करना, जो अपनी रचाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे।

अनुश्रुति

परिषद अथवा संगम की संस्तुति के उपरान्त ही किसी कवि या लेखक की रचना प्रकाशित हो पाती थी। प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि तीन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया। तमिल अनुश्रुतियों के अनुसार भी तीन परिषदों (संगम) का आयोजन हुआ था-

  1. प्रथम संगम
  2. द्वितीय संगम
  3. तृतीय संगम

द्वितीय संगम

यह संगम कवत्तापुरम या कपाटपुरम में आयोजित हुआ था। इसके अध्यक्ष अगस्त्य और तोल्काप्पियम हुए। इसकी भी सभी रचनाएँ विनष्ट हो गईं, केवल एक तमिल व्याकरण तोल्काप्पियम बचा रहा।[1]

तोल्काप्पियम

द्वितीय संगम का एक मात्र शेष ग्रंथ ‘तोल्काप्पियम’ अगस्त्य ऋषि के बारह योग्य शिष्यों में से एक 'तोल्काप्पियर' द्वारा लिखा गया ग्रंथ है। सूत्र शैली में रचा गया यह ग्रंथ तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रंथ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संगम साहित्य (हिंदी) vivacepanorama.com। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2017।

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