पहेली 28 फ़रवरी 2021: Difference between revisions

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||[[चित्र:Iltutmish-Tomb-Qutab-Minar.jpg|100px|right|इल्तुतमिश की कब्र]]'इल्तुतमिश' एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध उसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे 'अमीर-उल-उमरा' नामक महत्त्वपूर्ण पद दिया था। अकस्मात् मुत्यु के कारण [[कुतुबद्दीन ऐबक]] अपने किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः [[लाहौर]] के तुर्क अधिकारियों ने कुतुबद्दीन ऐबक के विवादित पुत्र [[आरामशाह]], जिसे [[इतिहासकार]] नहीं मानते, को [[लाहौर]] की गद्दी पर बैठाया, परन्तु [[दिल्ली]] के तुर्क सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन ऐबक के दामाद [[इल्तुतमिश]] को, जो उस समय [[बदायूँ]] का सूबेदार था, [[दिल्ली]] आमंत्रित कर राज्य सिंहासन पर बैठाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इल्तुतमिश]]
||[[चित्र:Iltutmish-Tomb-Qutab-Minar.jpg|100px|right|इल्तुतमिश की कब्र]]'इल्तुतमिश' एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध उसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे 'अमीर-उल-उमरा' नामक महत्त्वपूर्ण पद दिया था। सुल्तान का पद प्राप्त करने के बाद इल्तुतमिश को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके अन्तर्गत इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम ‘कुल्बी’ अर्थात् कुतुबद्दीन ऐबक के समय सरदार तथा ‘मुइज्जी’ अर्थात् मुहम्मद ग़ोरी के समय के सरदारों के विद्रोह का दमन किया। इल्तुमिश ने इन विद्रोही सरदारों पर विश्वास न करते हुए अपने 40 ग़ुलाम सरदारों का एक गुट या संगठन बनाया, जिसे ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी’ का नाम दिया गया। इस संगठन को ‘चरगान’ भी कहा जाता है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इल्तुतमिश]]
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Latest revision as of 15:59, 28 February 2021

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सल्तनत काल के किस शासक द्वारा 'चिहालगानी' की स्थापना की गई थी?

इल्तुतमिश
कुतुबुद्दीन ऐबक
बलबन
रज़िया सुल्तान



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