चीता: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''चीता''' (अंग्रेज़ी: ''Cheetah'', वैज्ञानिक नाम- एसीनोनिक्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{सूचना बक्सा जीव जन्तु
|चित्र=Cheetah.jpg
|चित्र का नाम=चीता
|जगत=जंतु
|संघ=कशेरुकी
|वर्ग=स्तनपायी
|उप-वर्ग=
|गण=मांसाहारी
|उपगण=
|अधिकुल=
|कुल=फॅ़लिडी
|जाति=ए. जुबैटस
|प्रजाति=
|द्विपद नाम=ऍसिनॉनिक्स जुबैटस
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=वंश
|पाठ 1=ऍसिनॉनिक्स
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=चीते की रिकॉर्ड रफ्तार अधिकतम एक मिनट के लिए रह सकती है। यह अपनी पूरी गति से सिर्फ 450 मीटर दूर तक ही दौड़ सकता है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''चीता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Cheetah'', वैज्ञानिक नाम- एसीनोनिक्स जुबेटस) बिल्ली के कुल (विडाल) में आने वाला वन्यजीव है, जो अपनी अदभुत फूर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाता है। यह एसीनोनिक्स प्रजाति के अंतर्गत रहने वाला एकमात्र जीवित सदस्य है, जो अपने पंजों की बनावट के रूपांतरण के कारण पहचाना जाता है। इसी कारण यह इकलौता विडालवंशी है, जिसके पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजह से इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है। [[भारत]] की आज़ादी से पहले तक देश में चीतों की बड़ी संख्या थी, किंतु अत्यधिक शिकार के कारण यह भारत से पूरी तरह समाप्त हो गये।  
'''चीता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Cheetah'', वैज्ञानिक नाम- एसीनोनिक्स जुबेटस) बिल्ली के कुल (विडाल) में आने वाला वन्यजीव है, जो अपनी अदभुत फूर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाता है। यह एसीनोनिक्स प्रजाति के अंतर्गत रहने वाला एकमात्र जीवित सदस्य है, जो अपने पंजों की बनावट के रूपांतरण के कारण पहचाना जाता है। इसी कारण यह इकलौता विडालवंशी है, जिसके पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजह से इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है। [[भारत]] की आज़ादी से पहले तक देश में चीतों की बड़ी संख्या थी, किंतु अत्यधिक शिकार के कारण यह भारत से पूरी तरह समाप्त हो गये।  



Revision as of 09:02, 18 September 2022

चीता
जगत जंतु
संघ कशेरुकी
वर्ग स्तनपायी
गण मांसाहारी
कुल फॅ़लिडी
जाति ए. जुबैटस
द्विपद नाम ऍसिनॉनिक्स जुबैटस
वंश ऍसिनॉनिक्स
अन्य जानकारी चीते की रिकॉर्ड रफ्तार अधिकतम एक मिनट के लिए रह सकती है। यह अपनी पूरी गति से सिर्फ 450 मीटर दूर तक ही दौड़ सकता है।

चीता (अंग्रेज़ी: Cheetah, वैज्ञानिक नाम- एसीनोनिक्स जुबेटस) बिल्ली के कुल (विडाल) में आने वाला वन्यजीव है, जो अपनी अदभुत फूर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाता है। यह एसीनोनिक्स प्रजाति के अंतर्गत रहने वाला एकमात्र जीवित सदस्य है, जो अपने पंजों की बनावट के रूपांतरण के कारण पहचाना जाता है। इसी कारण यह इकलौता विडालवंशी है, जिसके पंजे बंद नहीं होते हैं और जिसकी वजह से इसकी पकड़ कमज़ोर रहती है। भारत की आज़ादी से पहले तक देश में चीतों की बड़ी संख्या थी, किंतु अत्यधिक शिकार के कारण यह भारत से पूरी तरह समाप्त हो गये।

चीतों की विलुप्ति का मुख्‍य कारण उसका शिकार होना माना जाता है। इसके अलावा चीतों को पालतू बनाकर रखा जाता था। अपनी तेज गति और बाघ व शेर की तुलना में कम हिंसक होने की वजह से इसको पालना आसान था। उस समय राजा और जमींदार शिकार के समय चीतों का इस्‍तेमाल करके दूसरे जानवरों को पकड़ते थे। इन्‍हें पिंजरो में रखने की बजाय, जंजीर में बांधकर रखा जाता था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार के समय में चीते को हिंसक जानवर घोषित कर दिया गया और इसको मारने वालों को पुरस्कार दिया जाने लगा। 20वीं शताब्दी में भारतीय चीतों की आबादी में बहुत तेजी से गिरावट आ गई। कहा जाता है कि 1947 में चीतों को आखिरी बार देखा गया था। उस समय छत्तीसगढ़ की एक छोटी रियासत कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार कर उन्हें मार दिया। इसके बाद से चीते कभी नजर नहीं आए। 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया।[1]

शारीरिक बनावट

सन 1973 में हावर्ड में हुई एक रिसर्च के मुताबिक आमतौर पर चीते के शरीर का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस होता है, लेकिन रफ्तार पकड़ते ही उसके शरीर का तापमान 40.5 डिग्री सेल्सियस हो जाता है। चीते का दिमाग इस गर्मी को नहीं झेल पाता और वो अचानक से दौड़ना बंद कर देता है। तेज रफ्तार से दौड़ने के लिए चीते की मांसपेशियों को बहुत ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत होती है। इस ऑक्सीजन की सप्लाई को बरकरार रखने के लिए चीते के नथुनों के साथ श्वास नली भी मोटी होती है, ताकि वह कम बार सांस लेकर भी ज्यादा ऑक्सीजन शरीर में पहुंचा सके।

चीते की आंख सीधी दिशा में होती है। इसकी वजह से वह कई मील दूर तक आसानी से देख सकता है। इससे चीते को अंदाजा हो जाता है कि उसका शिकार कितनी दूरी पर है। इसकी आंखों में इमेज स्टेबिलाइजेशन सिस्टम होता है। इसकी वजह से वह तेज रफ्तार में दौड़ते वक्त भी अपने शिकार पर फोकस बनाए रखता है। चीते के पंजे घुमावदार और ग्रिप वाले होते हैं। दौड़ते वक्त चीता पंजे की मदद से जमीन पर ग्रिप बनाता है और आगे की ओर आसानी से जंप कर पाता है। इतना ही नहीं अपने पंजे की वजह से ही वो शिकार को कसकर जकड़े रख पाता है। चीते की पूंछ 31 इंच यानी 80 सेंटीमीटर तक लंबी होती है। यह चीते के लिए रडार का काम करती है। अचानक मुड़ने पर संतुलन बनाने के काम आती है।

चीते का दिल शेर के मुकाबले साढ़े तीन गुना बड़ा होता है। यही वजह है कि दौड़ते वक्त इसे भरपूर ऑक्सीजन मिलती है। यह तेजी से पूरे शरीर में रक्त को पंप करता है और इसकी मांसपेशियों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है। चीता अपने शिकार का पीछा अक्सर 200-230 फीट यानी 60-70 मीटर के दायरे में ही करता है। एक मिनट तक ही वह अपने शिकार का पीछा करता है। अगर इस दौरान वो उसे नहीं मार पाता तो उसका पीछा करना छोड़ देता है। वो अपने पंजे का इस्तेमाल कर शिकार की पूंछ पकड़कर लटक जाता है या तो पंजे के जरिए शिकार की हडि्डया तोड़ देता है। अपने शिकार को पकड़ने के बाद चीता तकरीबन पांच मिनट तक उसकी गर्दन को काटता है ताकि वो मर जाए। हालांकि छोटे शिकार पहली बार में ही मर जाते हैं।

प्राकृतिक वास

भौगोलिक द्रष्टि से अफ्रीका और दक्षिण पश्चिम एशिया में चीतों की ऐसी आबादी मौजूद है जो अलग-थलग रहती है। इनकी एक छोटी आबादी (लगभग पचास के आसपास) ईरान के खुरासान प्रदेश में भी रहती है। चीतों के संरक्षण का कार्यभार देख रहा समूह इन्हें बचाने के प्रयास में पूरी तत्परता से जुटा हुआ है। सम्भव है कि इनकी कुछ संख्या भारत में भी मौजूद हो, लेकिन इस बारे में विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसार पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान राज्य में भी कुछ एशियाई मूल के चीते मौजूद हैं, हाल ही में इस क्षेत्र से एक मृत चीता पाया गया था। चीतों की नस्ल उन क्षेत्रों में अधिक पनपती है, जहां मैदानी इलाक़ा काफी बड़ा होता है और इसमें शिकार की संख्या भी अधिक होती है। चीता खुले मैदानों और अर्धमरूभूमि, घास का बड़ा मैदान और मोटी झाड़ियों के बीच में रहना ज्यादा पसंद करता है, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में इनके रहने का स्थान अलग-अलग होता है। मिसाल के तौर पर नामीबिया में ये घासभूमि, सवाना के जंगलों, घास के बड़े मैदानों और पहाड़ी भूभाग में रहते हैं। जिस तरह आज छोटे जानवरों के शिकार में शिकारी कुत्तों का उपयोग किया जाता है, उसी तरह अभिजात वर्ग के उस समय हिरण या चिकारा के शिकार में चीते का उपयोग किया करते थे।

आनुवांशिकी और वर्गीकरण

चीते की प्रजातियों को ग्रीक शब्द में 'एसीनोनिक्स' कहते हैं, जिसका अर्थ होता है- 'न घूमने वाला पंजा', वहीं लातिन में इसकी जाति को 'जुबेटस' कहते हैं, जिसका मतलब होता है- 'अयाल', जो शायद शावकों की गर्दन में पाये जाने वाले बालों की वजह से पड़ा हो। चीता शायद एशिया प्रवास से पहले अफ़्रीका में मायोसीन (2.6 करोड़-75 लाख वर्ष पहले) काल में विकसित हुआ। हाल ही में वॉरेन जॉनसन और स्टीफन औब्रेन की अगुवाई में एक दल ने जीनोमिक डाइवरसिटी की प्रयोगशाला के नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट में एक नया अनुसंधान किया है और एशिया में रहने वाले 1.1 करोड़ वर्ष के रूप में सभी मौजूदा प्रजातियों के पिछले आम पूर्वजों को रखा है जो संशोधन और चीता विकास के बारे में मौजूदा विचारों के शोधन के लिए नेतृत्व कर सकते हैं। लुप्त प्रजातियों में अब शामिल हैं- एसिनोनिक्स परडिनेनसिस, जो आधुनिक चीता से भी काफी बड़ा होता था और यूरोप, भारत और चीन में पाया जाता था। विलुप्त जीनस मिरासिनोनिक्स बिलकुल चीता जैसा ही दिखने वाला प्राणी था, लेकिन हाल ही में डीएनए विश्लेषण ने प्रमाणित किया है कि मिरासिनोनिक्स इनेक्सपेकटेटस, मिरासिनोनिक्स स्टुडेरी और मिरासिनोनिक्स ट्रुमनी, (प्लिस्टोसेन काल के अंत के प्रारंभ) उत्तर अमेरिका में पाए गए थे और जिसे उत्तर अमेरिकी चीता कहा जाता था; लेकिन वे वास्तविक चीता नहीं थे, बल्कि वे कौगर के निकट जाति के थे।

विशेषताएँ

  • चीता 120 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ सकता है।[2]
  • यह हर सेकेंड में चार छलांग लगाता है। चीते की अधिकतम रफ्तार 120 कि.मी. प्रति घंटे की हो सकती है।
  • सबसे तेज रफ्तार के दौरान चीता 23 फीट यानी करीब सात मीटर लंबी छलांग लगा सकता है।
  • चीते की रिकॉर्ड रफ्तार अधिकतम एक मिनट के लिए रह सकती है। यह अपनी पूरी गति से सिर्फ 450 मीटर दूर तक ही दौड़ सकता है।
  • चीते का सिर बाघ, शेर, तेंदुए और जगुआर की तुलना में काफी छोटा होता है। इससे तेज रफ्तार के दौरान उसके सिर से टकराने वाली हवा का प्रतिरोध काफी कम हो जाता है।
  • इसकी खोपड़ी पतली हड्डियों से बनी होता है। इससे उसके सिर का वजन भी कम हो जाता है।
  • हवा के रेजिस्टेंस को कम करने के लिए चीते के कान बहुत छोटे होते हैं।

इतिहास

12वीं सदी के संस्कृत दस्तावेज 'मनसोलासा' में सबसे पहले चीतों का जिक्र है। इसे सन 1127 से 1138 के बीच शासन करने वाले कल्याणी के चालुक्य शासक सोमेश्वरा तृतीय ने तैयार करवाया था। कहा जाता है कि चीता शब्द संस्कृत के 'चित्रक' शब्द से आया है, जिसका अर्थ 'चित्तीदार' होता है। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह ने चितों को लेकर एक किताब लिखी थी। इसका नाम 'द एंड ऑफ ए ट्रेल-द चीता इन इंडिया' है। इसमें उन्होंने बताया कि अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में चीतों की मौजूदगी देखी गई। कहा जाता है कि 1556 से 1605 ई. तक शासन करने वाले मुग़ल बादशाह अकबर के समय देश में 10 हजार से ज्यादा चीते थे। अकबर के पास भी कई चीते रहते थे। जिनका इस्तेमाल वह शिकार के लिए करता था। कई रिपोर्ट्स में तो यहां तक दावा किया जाता है कि अकेले अकबर के पास ही हजार से ज्यादा चीते थे।[2]

अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीतों की मदद से 400 से अधिक हिरणों का शिकार किया था। अकबर ही नहीं, मुग़ल काल और बाद के भी तमाम राजाओं ने शिकार के लिए चीतों का सहारा लेना शुरू कर दिया। चूंकि शिकार के लिए राजा चीतों को कैद करने लगे। एक तरह से कुत्ते-बिल्ली, गाय और अन्य पालतू जानवरों की तरह चीतों को राजा पालते थे। इसके चलते इनके प्रजनन दर में गिरावट आई और आबादी घटती चली गई। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय चीतों की आबादी गिरकर सैंकड़ों में रह गई और राजकुमारों ने अफ्रीकी जानवरों को आयात करना शुरू कर दिया। सन 1918 से 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे। ब्रिटिश शासन के दौरान चीतों का ही शिकार होने लगा।

सन 1608 में ओरछा के महाराजा राजा वीरसिंह देव के पास सफेद चीते थे। इन चीतों के शरीर पर काले की बजाय नीले धब्बे हुआ करते थे। इसका जिक्र भी जहांगीर ने अपनी किताब 'तुजुक-ए-जहाँगीरी' में किया है। इस तरह का ये इकलौता चीता बताया जाता था। इसके बाद धीरे-धीरे चीतों का भी शिकार शुरू हो गया। जो बचे थे, उन्हें भी राजाओं और अंग्रेजों के शौक ने मार डाला। अंग्रेजों के समय चीतों का शिकार करने पर इनाम मिलता था। चीतों के शावकों को मारने पर छह रुपये और वयस्क चीतों को मारने पर 12 रुपये का इनाम दिया जाता था।

अंतिम तीन चीतों का शिकार

ये मामला 1947-1948 का है। बताया जाता है कि तब देश के आखिरी तीन चीतों का शिकार हुआ था। मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत (अब छत्तसीगढ़ में) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने ये शिकार किया था। कहा जाता है कि उस दौरान गांव के लोगों ने राजा से शिकायत की कि कोई जंगली जानवर उनके मवेशियों का शिकार कर रहा है। तब राजा जंगल में गए और उन्होंने तीन चीतों को मार गिराया। यही तीनों चीते देश के आखिरी चीते बताए जाते हैं। उस दिन के बाद से भारत में कभी भी चीते नहीं दिखे। कोरिया के पास ही एक और रियासत थी। इसका नाम था अंबिकारपुर। कहा जाता है कि इसके राजा रामानुज शरण सिंह देव ने भी करीब 1200 से ज्यादा शेरों का शिकार किया था। साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से देश से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कैसे भारत की धरती से हो गया था चीतों का सफाया (हिंदी) zeebiz.com। अभिगमन तिथि: 18 सितंबर, 2021।
  2. 2.0 2.1 2.2 अकबर के समय थे 10 हजार चीते, इस राजा ने किया आखिरी तीन चीतों का शिकार (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 18 सितंबर, 2021।

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:जीव जन्तु