फ़िरोज़शाह तुग़लक़: Difference between revisions

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==मुहम्मद का उत्तराधिकारी==
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[[मुहम्मद बिन तुग़लक़|मुहम्मद]] का उत्तराधिकारी उसका भतीजा फ़िरोज़शाह हुआ। वह अपने चाचा से ज्यादा समझदार और रहमदिल था। लेकिन असहिष्णुता का अन्त नहीं हुआ था।
[[मुहम्मद बिन तुग़लक़|मुहम्मद]] का उत्तराधिकारी उसका भतीजा फ़िरोज़शाह हुआ। वह अपने चाचा से ज़्यादा समझदार और रहमदिल था। लेकिन असहिष्णुता का अन्त नहीं हुआ था।


==कुशल शासक==
==कुशल शासक==

Revision as of 12:22, 21 September 2010

मुहम्मद का उत्तराधिकारी

मुहम्मद का उत्तराधिकारी उसका भतीजा फ़िरोज़शाह हुआ। वह अपने चाचा से ज़्यादा समझदार और रहमदिल था। लेकिन असहिष्णुता का अन्त नहीं हुआ था।

कुशल शासक

फ़िरोज़ एक कुशल शासक था और उसने अपने शासन में बहुत से सुधार किये। वह दक्षिण या पूर्व के खोये हुए सूबों को फिर से न पा सका, लेकिन साम्राज्य के बिखरने का जो सिलसिला शुरू हो गया था, उसने उसे ज़रूर रोक दिया।

निर्माणकार्य

उसे नये-नये शहर, महल, मस्जिदें और बगीचे बनाने का ख़ास शौक था। दिल्ली के नज़दीक फ़िरोजाबाद और इलाहाबाद के कुछ दूर जौनपुर शहर उसी के बसाये हुए हैं। उसने यमुना नदी की एक बड़ी नहर भी बनवाई थी और बहुत सी पुरानी इमारतों की, जो टूट-फूट रही थीं, मरम्मत करवाई। उसे अपने इस काम पर बहुत गर्व था और वह अपनी बनवाई हुई नई इमारतों की, और मरम्मत कराई गई पुरानी इमारतों की एक बड़ी फेहरिस्त छोड़ गया है।

परिवार

फ़िरोज़शाह की माँ एक राजपूत स्त्री थी। उसका नाम बीबी नैला था और वह एक बड़े सरदार की लड़की थी। कहते हैं, उसके पिता ने पहले फ़िरोज़ के बाप के साथ उसका विवाह करने से इन्कार कर दिया था। इस पर लड़ाई शुरू हुई। नैला के देश पर हमला हुआ और वह बरबाद कर दिया गया। जब बीबी नैला को मालूम हुआ कि उसके कारण उसकी प्रजा पर मुसीबत आ रही है तो वह परेशान हुई और उसने निश्चय किया कि अपने को फ़िरोज़शाह के पिता के हवाले करके इसे खत्म कर दे और अपनी प्रजा को बचा ले। इस तरह फ़िरोज़शाह में राजपूती खून था। मुसलमान शासकों और राजपूत स्त्रियों के बीच ऐसे अंतर्जातीय विवाह अक्सर होने लगे थे। इसकी वजह से एक जातीयता की भावना के विकास में ज़रूर मदद मिली होगी।

मृत्यु

फ़िरोज़शाह 37 वर्ष के लम्बे समय तक राज करने के बाद, सन 1388 ई. में मर गया। फ़ौरन ही दिल्ली साम्राज्य का ढांचा, जिसे उसने जोड़ रखा था, टुकड़े-टुकड़े हो गया। कोई केन्द्रीय सरकार न रह गई और हर जगह छोटे-छोटे शासकों की तूती बोलने लगी। अव्यवस्था और कमज़ोरी के इसी समय में फ़िरोज़शाह की मृत्यु के ठीक दस वर्ष पश्चात तैमूर उत्तर से आ टूटा। दिल्ली को तो उसने क़रीब-क़रीब ख़त्म ही कर डाला था।