नागालैंड की संस्कृति

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नागालैंड में जनजातीय संगठन में कोल्याक के निरंकुश अंग (सरदार) और सेमा व चांग के आनुवंशिक मुखिया से लेकर अंगामी, आओ, ल्होरा और रेंगमा की लोकतांत्रिक संरचनाओं जैसी भिन्नताएँ पाई जाती हैं। मोरुंग (सामुदायिक भवन या युवा अविवाहित पुरुषों का शयनागार) गाँव का प्रमुख संस्थान होता है, जहाँ पहले खोपड़िया और युद्ध के अन्य विजय चिह्न टांगे जाते थे। इनके स्तम्भों पर अब भी बाघ, धनेश, मानव तथा अन्य आकृतियों की नक़्क़ाशी की जाती है। नागा समाज में महिलाओं को अपेक्षाकृत ऊँचा और सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। वे खेतों में पुरुषों के ही समान शर्तों पर काम करती हैं तथा जनजातीय परिषदों में भी उनका अच्छा-ख़ासा प्रभाव है। नागा जीवन की एक केन्द्रीय विशेषता पुण्य का भोज है, जिसमें कई रस्मों के बाद मिथुन (गयाल, बॉस फ़्रॉन्टलिस) की बलि दी जाती है। प्रत्येक जनजाति के अपने त्योहार या गेन्ना होते हैं, और नागा नृत्य, संगीत गीत तथा लोकगीतों में जीवन के उल्लास की झलक मिलती है।

त्‍योहार
  • संगीत और नृत्‍य 'नगा' जनजीवन के मूलभूत अंग हैं।
  • वीरता, सुंदरता, प्रेम और उदारता का गुणगान करने वाले लोकगीत और लोकगाथाएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली जा रही हैं।
  • इसी तरह नृत्‍य हर उत्‍सव का महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा है।
  • हर त्‍योहार पर दावत, नाच-गाना और उल्‍लास होता है।
  • राज्‍य के कुछ महत्‍वपूर्ण त्‍योहार हैं - सेकरेन्‍यी, मोआत्‍सु, तोक्‍कू एमोंगा और तुलनी।


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