अलखनन्दन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 09:57, 3 December 2012 by दिनेश (talk | contribs) (''''अलखनन्दन''' (जन्म- 1948, भोजपुर, बिहार; मृत्यु- [[फ़रवरी...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

अलखनन्दन (जन्म- 1948, भोजपुर, बिहार; मृत्यु- फ़रवरी, 2012, भोपाल, मध्य प्रदेश) भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी, निर्देशक और कवि थे। लभगग 40 वर्ष के अपने रंग जीवन में उन्होंने कई प्रसिद्ध नाटकों का निर्देशन किया था। वे लम्बे समय तक 'भारत भवन' के रंगमंडल के सहायक निदेशक भी रहे। अलखनन्दन ने स्माइल मर्चेन्ट व अन्य निदेशकों के साथ फ़िल्म के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया था। उनके प्रसिद्ध नाटकों में 'चंदा', 'बैढनी', 'महानिर्वाण', 'वेटिंग फ़ॉर गोडो' आदि शामिल हैं। वर्ष 2012 में उन्होंने महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का मंचन भी किया था, जिसे देश भर में अत्यंत सराहा गया।

जीवन परिचय

अलखनन्दन जी का जन्म सन 1948 में भोजपुर, बिहार में हुआ था। बिहार से विस्थापित होकर वे छत्तीसगढ़, सरगुजा और बुंदेलखण्ड के इलाकों में बार-बार जाते रहे थे। इन इलाकों से उनका गहरा लगाव और प्रेम था। उनकी समूची बुनावट में जो मिश्रण था, वह इसी घुमन्तू आचरण का परिणाम था। वे भोजपुरी बोलना कभी नहीं भूले, जबकि उनका अंतिम परिदृश्य बुंदेलखण्ड ही बना। जबलपुर आकर वे स्थिर हुए और प्राण प्रण से काम करना शुरू किया। उनकी काया में जो भाषा तैर रही थी, वह संघर्षशील हिन्दी पट्टियों में ही तैयार हुई थी। अलखनन्दन कुंभकार के चाक की तरह अविराम अपने जीवन को चलाते रहे। उन्होंने नाटक किये भी और कई नाटकों की रचना भी की।

तुलना

अलखनन्दन की तुलना केवल अलखनन्दन जी से ही की जा सकती है। उन्होंने अपने शुरुआती रंगकर्मी जीवन से अविभाजित मध्य प्रदेश के ज़िलों और गाँवों तक एक सार्थक, सृजनात्मक रंगकर्म की अलख जगाई थी। उन्होंने अनेक रंगकर्मियों के साथ हिन्दी क्षेत्र का एक नया रंग मुहावरा गढ़ा और उसको सजाया संवारा। उन्हें रंगकर्म इतना प्रिय था कि इसके लिए उन्होंने अपनी केन्द्रीय सरकार की नौकरी भी त्याग दी थी। वे बगैर किसी सरकारी मदद के रंग आंदोलन को नई गति देते रहे। 'नट बुंदेले संस्था' में नया रंग भरना, नए कलाकारों को रंगकर्म की जुबान समझाने वाला जुझारू व्यक्तित्व, अनुशासनप्रिय, कवि, समय का पाबंद, जीवटता से भरपूर, प्रयोगधर्मिता उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। वे गंभीर बात को सहज रूप में व्यक्त करते थे।

बीमारी

अलखनन्दन मजबूत कद-काठी के स्वस्थ और सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति थे। उनका शरीर पुख्ता और कसरती था। किशोर अवस्था से ही भारतीय भाषाओं के साहित्य और खासतौर पर लोक-नाट्‌य की पढ़ाई करने लगे थे। वे उदार वामपंथी थे और आत्महत्या के विरुद्ध थे। लेकिन आजीवन कठोर परिश्रम और रंगकर्म की लगातार रात-दिन जागती दिनचर्याओं और मुठभेड़ों में उन्हें पता ही नहीं चला कब वे बीमार हुए। उनके फेंफड़े तबाह हुए और चौबीस घंटों की आक्सीजन उन्हें लग गई। उन्हें 'फ़ाइब्रोसिस ऑफ़ लंग्स' की बीमारी थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः