कोमल कोठारी

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कोमल कोठारी (अंग्रेज़ी: Komal Kothari ; जन्म- 4 मार्च, 1929, जोधपुर, राजस्थान; मृत्यु- 20 अप्रैल, 2004) राजस्थान के ऐसे व्यक्ति, जो राजस्थानी लोक गीतों व कथाओं आदि के संकलन एवं शोध हेतु समर्पित थे। इन्हें 'भारत सरकार' द्वारा सन 2004 में कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। ये कमल कोठारी जी के परिश्रम का ही परिणाम था कि 1963 में पहली बार मंगणियार कलाकारों का कोई दल राजधानी दिल्ली गया और वहाँ जाकर मंच पर अपनी प्रस्तुति दे सका। कोमल कोठारी द्वारा राजस्थान की लोक कलाओं, लोक संगीत एवं वाद्यों के संरक्षण, लुप्त हो रही कलाओं की खोज एवं उन्नयन तथा लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने हेतु बोरूंदा में रूपायन संस्था की स्थापना की गई थी।[1]

जन्म तथा शिक्षा

कोमल कोठारी का जन्म 4 मार्च, 1929 को राजस्थान के जोधपुर में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा उदयपुर में पाई थी। इनका परिवार राष्ट्रवादी विचरधारा वाला था।

संगीत से प्रेम

कोमल कोठारी ने 1953 में अपने पुराने दोस्त विजयदान देथा, जो देश के अग्रणी कहानीकारों में गिने जाते हैं, उनके साथ मिलकर 'प्रेरणा' नामक पत्रिका निकालना शुरू किया। 'प्रेरणा' का मिशन था- हर महीने एक नया लोकगीत खोजकर उसे लिपिबद्ध करना। उनके परिवार के राष्ट्रवादी विचारों और कोमल कोठारी के संगीत प्रेम का मिला-जुला परिणाम यह निकला कि उनकी दिलचस्पी 1800 से 1942 के बीच रचे गए राजस्थानी देशभक्तिमूलक लोकगीतों में बढ़ी। यहीं से उनके जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ। उन्होंने राजस्थान की मिट्टी में बिखरी अमूल्य संगीत सम्पदा से जितना साक्षात्कार किया, उतना वे उसके पाश में बंधते गए।[2]

राजस्थानी लोक संगीत के संरक्षक

विभिन्न प्रकार के काम कर चुकने के बाद कोमल कोठारी 1958 में अन्ततः 'राजस्थान संगीत नाटक अकादमी' में कार्य करने लगे और अगले चालीस सालों तक उन्होंने एक जुनून की तरह राजस्थान के लोक संगीत को रिकॉर्ड करने और संरक्षित करने का बीड़ा उठा लिया। वर्ष 1959-1960 के दौरान वे कई बार जैसलमेर गए और लांगा और मंगणियार गायकों से मिले। उनके काफ़ी समझाने-बुझाने के बाद वे 1962 में पहली बार इन लोगों के संगीत को रिकॉर्ड कर पाने में कामयाब हुए।

यह कोमल कोठारी जी की मेहनत का ही नतीज़ा था कि 1963 में पहली बार मंगणियार कलाकारों का कोई दल दिल्ली गया और वहाँ जाकर स्टेज पर अपनी सफल प्रस्तुति दे सका। कोमल कोठारी जीवन से लबालब भरे इस राजस्थानी लोक संगीत को इस सब से कहीं आगे ले जाना चाहते थे। 1967 में इन कलाकारों के साथ उनकी स्वीडन की यात्रा के बाद चीज़ें इस तेज़ी से बदलीं कि आज राजस्थान के लगातार विकसित होते पर्यटन की इस संगीत के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती।[2]

संस्था की स्थापना

वर्ष 1964 में कोमल कोठारी ने 'रूपायन' नामक संस्था की स्थापना की। संगीत को रिकॉर्ड करके संरक्षित करने का विचार उन्हें पेरिस में बस चुके एक भारतीय संगीतविद देबेन भट्टाचार्य से मिला था। भट्टाचार्य साहब की पत्नी स्वीडन की थीं और उनके प्रयासों से ही लांगा-मंगणियार संगीत को पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय मंच प्राप्त हुआ।

पुरस्कार व सम्मान

राजस्थानी लोक संगीत की महत्ता, आवश्यकता और प्रासंगिकता को रेखांकित करना उनके जीवन का ध्येय था और वे इसमें पूरी तरह से सफल भी हुए। 'भारत सरकार' ने उनके योगदान को पहचाना और उन्हें 'पद्मश्री तथा 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया। राजस्थानी लोक गीतों व कथाओं आदि के संकलन एवं शोध हेतु समर्पित कोमल कोठारी को राजस्थानी साहित्य में किए गए कार्य हेतु 'नेहरू फैलोशिप' भी प्रदान की गई थी।[2]

निधन

राजस्थानी लोक संगीत को संरक्षित करने वाले कोमल कोठारी का निधन 20 अप्रैल, 2004 में हुआ। वे कैंसर से पीड़ित थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजस्थानी साहित्य से संबंधित प्रमुख साहित्यकार (हिन्दी) राजस्थान अध्ययन। अभिगमन तिथि: 05 अगस्त, 2014।
  2. 2.0 2.1 2.2 कोमल कोठारी का परिचय और दम मस्त कलन्दर (हिन्दी) कबाड़खाना। अभिगमन तिथि: 05 अगस्त, 2014।

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