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अंशः (पुल्लिंग) [अंश्+अच]

1. हिस्सा, भाग, टुकड़ा; सकृदंशो निपतति-मनुस्मृति 9/47 रघुवंश 8/16-अंशेन दर्शितानुकूलता-कादम्बरी 159 अंशतः;

2 संपत्ति में हिस्सा, दाय स्वतोंशतः - मनुस्मृति 8/408, 9/201; याज्ञवल्क्यस्मृति 2/115;

3. भिन्न में ऊपर की संख्या; कभी-कभी भिन्न के लिए भी प्रयुक्त

4. अक्षांश या रेखांश की कोटि

5. कंधा (सामान्यतः 'कंधे' के अर्थ में, ‘अंस' का प्रयोग होता है दे.)

6. वृत्त की परिधि का 360वां हिस्सा।

सम. अंशः अंशावतार, हिस्से का हिस्सा;

अंशि (क्रिया विशेषण) हिस्सेदार;

अवतरणम् - अवतारः- पृथ्वी पर देवताओं के अंश को लेकर जन्म लेना, आंशिक अवतार, 'तार इव धर्मस्य-दश. 153; महाभारत के आदिपर्व के 64-67 तक अध्याय;

कल्पना (स्त्रीलिंग),- प्रकल्पना (स्त्रीलिंग)-प्रदान (न.) किसी भाग का बंटवारा या देना।

भाजू, हर, हारिन् (विशेषण) उत्तराधिकारी, सहदायभागी-पिण्डदोंशहर- श्चैषां पूर्वाभावे परः परः- याज्ञवल्क्य स्मृति 2/132-133-

सवर्णनम् -भिन्नों को एक समान हर में लाना;

स्वरः मुख्य स्वर, मूलस्वर ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 02 |

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