अंधक (दैत्य)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:14, 7 April 2011 by प्रियंका चतुर्वेदी (talk | contribs) ('अंधक पुराणों में वर्णित एक हज़ार सिरोंवाला ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

अंधक पुराणों में वर्णित एक हज़ार सिरोंवाला दैत्य है, कुछ मतों के अनुसार जिसे दिति के गर्भ से उत्पन्न कश्यप ऋषि का पुत्र बताया गया है और कहीं हिरणाक्ष का पुत्र बताया गया है। अंधक को शिव और विष्णु को छोड़कर अन्य किसी से भी पराजित न होने का वरदान प्राप्त था। इस वरदान से यह अत्यन्त उद्दंड और अत्याचारी बन गया था। आँख रहते हुए भी अंधों की तरह चलता था। इसीलिए इसका नाम अंधक पड़ा।

भृंगीरीटी

इसने इन्द्र को अपनी शरण आने को बाध्य किया। उच्चै:श्रवा घोड़ा और उर्वशी आदि अप्सराओं से युक्त इंद्रादिक देवताओं को इसने युद्ध में परास्त किया। नारद के पास एक सुगंधित माला देखकर उसे लेने के लिए झपटा तो नारद ने कहा कि, ‘वह इसे शिव के मंदार वन से प्राप्त कर सकता है।’ अंधक मंदार वन में प्रविष्ट हुआ और शिव के सामने ही पार्वती को हरण करने को उद्यत हुआ। परिणामस्वरूप दोनों में युद्ध हुआ। अंधक के रक्त से नए-नए दैत्यों की उत्पत्ति देखकर शिव ने उसका रक्तपान करने के लिए कृत्याएँ उत्पन्न कीं। वे रक्त पी-पीकर छक गईं। लेकिन दैत्यों की उत्पत्ति नहीं रुकी, तो शिव, विष्णु के पास सहायता हेतु गए। विष्णु के यत्न से नए दैत्यों की उत्पत्ति रुकी, तब शिव अंधक को पराजित कर पाए। उसने शिव की आराधना की, तो औघड़दानी शिव ने अंधक को ‘भृंगीरीटी’ नाम का अपना गण बना लिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः