गोलकुंडा

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गोलकुंडा / Golkunda

गोलकुंडा एक क़िला व भग्नशेष नगर है। यह आंध्र प्रदेश का एक नगर है। हैदाराबाद से पांच मील पश्चिम की ओर बहमनी वंश के सुल्तानों की राजधानी गोलकुंडा के विस्तृत खंडहर स्थित हैं। गोलकुंडा का प्राचीन दुर्ग वारंगल के हिंदू राजाओं ने बनवाया था। ये देवगिरी के यादव तथा वारंगल के ककातीय नेरशों के अधिकार में रहा था। इन राज्यवंशों के शासन के चिह्न तथा कई खंडित अभिलेख दुर्ग की दीवारों तथा द्वारों पर अंकित मिलते हैं। 1364 ई0 में वारंगल नरेश ने इस qiक़िले को बहमनी सुल्तान महमूद शाह के हवाले कर दिया था।

संस्थापक

इतिहासकार फरिश्ता लिखता है कि बहमनी वंश की अवनति के पश्चात 1511 ई0 में गोलकुंडे के प्रथम सुल्तान ने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। किंतु क़िले के अन्दर स्थित जामा मसजिद के एक फारसी अभिलेख से ज्ञात होता है कि 1518 ई0 में भी गोलकुंडे का संस्थापक सुल्तान कुलोकुतुब, महमूद शाह बहमनी का सामन्त था।

इमारतें

गोलकुंडे का किला 400 फुट ऊंची कणाश्म (ग्रेनाइट) की पहाड़ी पर स्थित है। इसके तीन परकोटे हैं और इसका परिमाप सात मील के लगभग है। इस पर 87 बुर्ज बने हैं। दुर्ग के अन्दर कुतुबशाही बेगमों के भवन उल्लेखनीय है। इनमें तारामती, पेमामती, हयात बख्शी बेगम और भागमती (जो हैदराबाद या भागनगर के संस्थापक कुली कुतुब शाह की प्रेयसी थी) के महलों से अनेक मधुर आख्यायिकी का संबंध बताया जाता है। क़िले के अन्दर नौमहल्ला नामक अन्य इमारतें हैं। जिन्हें हैदराबाद के निजामों ने बनवाया था। इनकी मनोहारी बाटिकाएँ तथा सुन्दर जलाशय इनके सौंदर्य को द्विगुणित कर देते हैं। क़िले से तीन फलांग पर इब्राहिम बाग में सात कुतुबशाही सुल्तानों के मक़्बरे हैं। जिनके नाम हैं-कुली कुतुब, सुभान कुतुब, जमशेदकुली, इब्राहिम, मु0 कुलीकुतुब, मु0 कुतुब और अब्दुल्ला कुतुबशाह। पेमावती व हयात बख्शी बेगमों के मक़्बरे भी इसी उद्यान के अन्दर हैं। इन मक़्बरों के आधार वर्गाकार हैं तथा इन पर गुंबदों की छतें हैं। चारों ओर वीथीकाएँ बनी हैं जिनके महाराब नुकीले हैं। ये वीथीकाएँ कई स्थानों पर दुमंजिली भी हैं। मक़्बरों के हिंदू वास्तुकला के विशिष्ट चिह्न कमल पुष्प तथा पत्र और कलियाँ, श्रंखलाएँ, प्रक्षिप्त छज्जे, स्वस्तिकाकार स्तंभशीर्ष आदि बने हुए हैं। गोलकुंडा दुर्ग के मुख्य प्रवेश द्वार में यदि जोर से करतल ध्वनि की जाए तो उसकी गूंज दुर्ग के सर्वोच्च भवन या कक्ष में पहुँचती है। एक प्रकार से यह ध्वनि आह्वान घंटी के समान थी। दुर्ग से डेढ़ मील पर तारामती की छतरी है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। देखने में यह वर्गाकार है और इसकी दो मंजिलें हैं। किंवदंती है कि तारामती, जो कुतुबशाही सुल्तानों की प्रेयसी तथा प्रसिद्ध नर्तकी थी, क़िले तथा छतरी के बीच बंधी हुई एक रस्सी पर चाँदनी में नृत्य करती थी। सड़क के दूसरी ओर प्रेमावती की छतरी है। यह भी कुतुबशाही नरेशों की प्रेमपात्री थी। हिमायत सागर सरोवर के पास ही प्रथम निज़ाम के पितामह चिनकिलिचखाँ का मक़्बरा है।

आक्रमण

28 जनवरी, 1627 ई0 को औरंगज़ेब ने गोलकुंडे के क़िले पर आक्रमण किया और तभी मुग़ल सेना के एक नायक के रूप में किलिच खाँ ने भी इस आक्रमण में भाग लिया था। युद्ध में इसका एक हाथ तोप के गोले से उड़ गया था जो मक़्बरे से आधा मील दूर किस्मतपुर में गड़ा हुआ है। इसी घाव से इसका कुछ दिन बाद निधन हो गया। कहा जाता है कि मरते वक्त भी किलिच खाँ जरा भी विचलित नहीं हुआ था और औरंगज़ेब के प्रधानमंत्री जमदातुल मुल्क असद ने, जो उससे मिलने आया था, उसे चुपचाप काफ़ी पीते देखा था। शिवाजी ने बीजापुर और गोलकुंडा के सुल्तानों को बहुत संत्रस्त किया था तथा उनके अनेक किलों को जीत लिया था। उनका आतंक बीजापुर और गोलकुंडा पर बहुत समय तक छाया रहा जिसका वर्णन हिंदी के प्रसिद्ध कवि भूषण ने किया है- 'बीजापुर गोलकुंडा आगरा दिल्ली कोट बाजे बाजे रोज दरवाजे उधरत हैं'। गोलकुंडा में पहले हीरा निकलता था।

प्रसिद्धि

गोलकुंडा पहले हीरों के लिए विख्यात था। जिनमें से कोहीनूर सबसे मशहूर है।

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