अपरमत्स्य

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'सुकुमारं वशे चक्रे सुमित्रं च नराधिपम्, तथैवापरमत्स्यांश्च व्यजयत् स पटच्चरान्'।[1] इस उद्धरण से सूचित होता है कि सहदेव ने अपनी दिग्विजययात्रा में अपरमत्स्य देश को जीता था। इससे पूर्व उन्होंने शूरसेन और मत्स्य-नरेशों पर भी विजय प्राप्त की थी।[2] इससे जान पड़ता है कि अपरमत्स्य देश मत्स्य[3] के निकट ही, संभवत: उससे दक्षिण-पूर्व की ओर था जैसा कि सहदेव के यात्राक्रम से सूचित होता है उपर्युक्त उद्धरण से यह भी स्पष्ट है कि अपरमत्स्य देश में पटच्चर या पाटच्चर[4] नामक लोगों का निवास था। संभवत: ये लोग चोरी करने में अभ्यस्त थे जिससे 'पाटच्चर' का संस्कृत में अर्थ ही चोर हो गया है। रायचौधरी के मत में यह देश चंबल-तट के उत्तरी पहाड़ों में स्थित था।[5]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत वन पर्व 31,4
  2. महाभारत वन पर्व 31, 4
  3. जयपुर-अलवर क्षेत्र
  4. यह अपरमत्स्य के पार्श्ववर्ती प्रदेश का नाम हो सकता है
  5. दि पोलिटिकल हिस्ट्री आव एंशेंट इंडिया, चतुर्थ संस्करण, पृ. 116

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