दुर्मिल सवैया

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दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं, जो आठ सगणों (।।ऽ) से बनते हैं और 12, 12 वर्णों पर यति होती है, अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास होता है। यह छन्द तोटक वृत्त का दुगुना है। इसका प्रयोग केशव[1], तुलसी [2] से लेकर रीतिकाल तथा आधुनिक कवियों तक ने किया है।

  • "जल हू थल हू परिपूरण श्री निमि के कुल अद्भुत जाति जगे।"[3]
  • "अवधेस के द्वारे सकारे गयी सुत गोद मै भूपति लै निकसे।"[4]
  • "सखि, नील नभस्सर से उतरा, यह हँस अहा तिरता-तिरता।"[5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामचन्द्रिका
  2. कवितावली
  3. रामचन्द्रिका, 5 : 22
  4. कवितावली, 1
  5. साकेत, 9

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 740।

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