पंचामृत

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पंचामृत का अर्थ है कि, पाँच तरह के अमृत का मिश्रण। यह मिश्रण दुग्ध, दही, घृत (घी), चीनी और मधु मिलाकर बनाया गया एक पेय पदार्थ होता है, जो हव्य-पूजा की सामग्री बनता है, और जिसका प्रसाद के रूप में विशिष्ट स्थान है। इसी से भगवान का अभिषेक भी किया जाता है। भारतीय सभ्यता में पंचामृत का जो महत्त्व बताया गया है, वह यह है कि, श्रृद्धापूर्वक पंचामृत का पान करने वाले व्यक्ति को जीवन में सभी प्रकार के सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके पान से मानव जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष की प्राप्ति करता है।

सामग्री का महत्त्व

पंचामृत निर्माण में प्रयोग की जाने वाली सामग्री किसी न किसी रूप में आत्मोन्नति का संदेश देती है-

  1. दूध - दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुद्धता का प्रतीक है, अर्थात् हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए।
  2. दही - यह दूध की तरह सफ़ेद होता है। लेकिन इसकी विशेषता यह है कि, यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि, पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएँ और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएँ।
  3. घी - स्निग्धता और स्नेह का प्रतिक घी है। स्नेह और प्रेम हमारे जीवन में स्नेह की तरह काम करता है। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हों, यही भावना है।
  4. शहद - शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है। शहद इसका ही प्रतीक है।
  5. शक्कर - मिठास शक्कर का प्रमुख गुण है। शक्कर चढ़ाने का अर्थ है कि, जीवन में मिठास व्याप्त हो। मिठास प्रिय शब्द बोलने से आती है। प्रिय बोलना सभी को अच्छा लगता है, और इससे मधुर व्यवहार बनता है। हमारे जीवन में शुभ रहे, स्वयं अच्छे बनें और दूसरों को भी अच्छा बनाएँ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 461 |


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