कौन यहाँ आया था कौन दिया बाल गया सूनी घर-देहरी में ज्योति-सी उजाल गया पूजा की बेदी पर गंगाजल भरा कलश रक्खा था, पर झुक कर कोई कौतुहलवश बच्चों की तरह हाथ डाल कर खंगाल गया आँखों में तिरा आया सारा आकाश सहज नए रंग रँगा थका- हारा आकाश सहज पूरा अस्तित्व एक गेंद-सा उछाल गया अधरों में राग, आग अनमनी दिशाओं में पार्श्व में, प्रसंगों में व्यक्ति में, विधाओं में साँस में, शिराओं में पारा-सा ढाल गया।