बुंदेलखंड कलचुरियों का शासन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:20, 11 June 2010 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) (Text replace - "ई0" to "ई॰")
Jump to navigation Jump to search

सन् 647 से1200 ई॰ के आसपास तक कन्नौज में अनेक शासक हुए थे, मुस्लिम आक्रमण भी इसी समय देश पर हुए थे। बुंदेलखंड के इतिहास में कलचुरियों और चन्देलों का प्रभाव दीर्घकाल तक रहा था। कलचुरियों की दो शाखायें हैं -

त्रिपुरी के कलचुरियों का बुंदेलखंड में विशेष महत्व है। हैध्यवंशी कार्तवीर्य अर्जुन की परंपरा में इस वंश को पुराणों में माना जाता है। महाराज कोक्कल ने (जबलपुर के पास) त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया था और यह वंश त्रिपुरी के कलचुरियों के नाम से विख्यात है। कोक्कल बड़ी सूझबूझ एवं दूरदृष्टि वाला उत्साही व्यक्ति था। उसने चन्देल की कुमारी नट्टा देवी से विवाह किया था। यह विवाह उसने उत्तर के चंदेलों की बढ़ती हुई शक्ति से लाभ उठाने के लिए किया था।

प्रतापी कोक्कल देव के दो पुत्र थे। मुग्धतुंग और केयूरवर्ष इन दोनों ने बहुत उन्नति की थी। केयूरवर्ष ने गौड़, कर्णाटलाट आदि देशों की स्रियों से राजमहल को सुशोभित किया था। विद्शाल मंजिका नाटक में राजशेखर ने केयूरवर्ष के प्रताप का वर्णन किया है।

कलचुरियों के शासन में लक्ष्मणदेव, गंगेयदेव, कर्ण, गयाकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि का शासन काल समृद्धिपूर्ण माना जाता है। इन्होंने 500 वर्ष तक शासन किया जिसे सन 1200 के आसपास देवगढ़ के राजा ने समाप्त कर दिया और फिर यह शासन चन्देलों के अधीन आया। हर्षवर्धन के समय चन्देल राज्य एक छोटी सी ईकाई थी परन्तु उसके बाद यह विस्तार पाकर दसवीं शताब्दी तक एक शक्तिशाली राज्य बन गया था।

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः