शारंगदेव

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:35, 2 September 2013 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replace - "उन्होनें " to "उन्होंने ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

शारंगदेव आयुर्वेदाचार्य विशिष्ट दार्शनिक और संगीतशास्त्र के प्रवीण विद्वान थे। उनकी कृति 'संगीतरत्नाकर' सांगीतिक विषय वस्तुओं का अत्यन्त व्यवस्थित विषय विन्यास की दृष्टि से सप्त अध्याय की व्यवस्था के लिए विशेष रूप से महत्व रखती है। यह भारतीय संगीत के ऐतिहासिक ग्रन्थों में अनन्य है। 12वीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखे गये सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीतनृत्य का विस्तार से वर्णन है।

  • शारंगदेव स्वयं आयुर्वेदाचार्य विशिष्ट दार्शनिक और संगीतशास्त्र के एक निपुण विद्वान थे। वे मूलत: कश्मीर के रहने वाले थे।
  • दक्षिण भारत के देवगिरि (दौलताबाद) राजा सिंह के राजाश्रित शारंगदेव संगीत विद्वान थे, और यहीं पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कृति 'संगीतरत्नाकर' की रचना की थी।
  • 'संगीतरत्नाकर' ग्रन्थ का विषय विन्यास स्वर, राग, प्रकीर्णक, प्रबन्ध, ताल, वाद्य और नृत्य इन सात अध्यायों में किया गया है। यही कारण है कि यह ग्रन्थ विद्वतजनों में 'सप्ताध्यायी' नाम से प्रसिद्ध है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः