साकेत (महाकाव्य)

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 12:58, 20 August 2010 by आदित्य चौधरी (talk | contribs) ('साकेत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की वह अमर कृति ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

साकेत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की वह अमर कृति है। इस कृति में राम के भाई लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने किया है वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से ओत-प्रोत है।

पुस्तक अंश

प्रेम से उस प्रेयसी ने तब कहा-- "रे सुभाषी, बोल, चुप क्यों हो रहा?" पार्श्व से सौमित्रि आ पहुँचे तभी, और बोले-"लो, बता दूँ मैं अभी। नाक का मोती अधर की कांति से, बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से, देख कर सहसा हुआ शुक मौन है; सोचता है, अन्य शुक यह कौन है?" यों वचन कहकर सहास्य विनोद से, मुग्ध हो सौमित्रि मन के मोद से, पद्मिनी के पास मत्त-मराल-से, होगए आकर खड़े स्थिर चाल से। चारु-चित्रित भित्तियाँ भी वे बड़ी, देखती ही रह गईं मानों खड़ी। प्रीति से आवेग मानों आ मिला, और हार्दिक हास आँखों में खिला। मुस्करा कर अमृत बरसाती हुई, रसिकता में सुरस सरसाती हुई, उर्मिला बोली, "अजी, तुम जग गए? स्वप्न-निधि से नयन कब से लग गए?"


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः