भास्कर वर्मा

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भास्कर वर्मा 'कामरूप' (आधुनिक आसाम) के प्रारम्भिक राजाओं में सर्वाधिक ख्यातिप्राप्त था। उसने लगभग 600 से 650 ई. तक शासन किया। ईसा की चौथी शताब्दी में यह पुष्यवर्मा द्वारा स्थापित राजवंश का अन्तिम, किन्तु सर्वाधिक महान् शासक था। इसका उल्लेख बाणभट्ट के 'हर्षचरित' और ह्वेनसांग की 'ट्रैवल्स एण्ड लाइफ़' में हुआ है।

ऐतिहासिक तथ्य

निधानपुर ताम्र दानपत्र में भी उसका कीर्तिगान है, जिसमें समय का कोई निर्देश नहीं किया गया है। 646 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु हो जाने के उपरान्त ही कदाचित उसे जारी किया गया। बाणभट्ट तथा ह्वेनसांग ने भास्कर वर्मा का उल्लेख 'कुमार' के नाम से किया है। उसकी हर्षवर्धन के साथ एक सन्धि हुई थी। यह सन्धि कदाचित बंगाल के राजा शशांक की शक्ति को रोकने के लिए की गई थी। लेकिन इस बात का कहीं पर भी कोई उल्लेख नहीं है कि उन्होंने कभी मिलकर शशांक पर आक्रमण किया था। यह तथ्य कि भास्कर वर्मा ने निधानपुर दानपत्र, कर्णसुवर्ण स्थित शिविर से जारी किया था, जिसकी पहचान मुर्शिदाबाद स्थित 'रंगमाटी' से की गई है, निश्चित रूप से सिद्ध करता है कि किसी समय उसने कामरूप राज्य की सीमा बंगाल में मुर्शिदाबाद ज़िले तक प्रसारित कर दी थी।

हिन्दू मतावलम्बी

वह विद्वानों का संरक्षक था। यद्यपि वह व्यक्तिगत रूप में सनातनी हिन्दू धर्म का मतावलम्बी था तथापि उसने अपने दरबार में बौद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग को आमंत्रित किया और उसका बड़े सम्मान के साथ स्वागत किया था। बाद में सम्राट हर्षवर्धन के शिविर में चीनी यात्री के साथ-साथ गया था और वहाँ से अपने मित्र सम्राट की सभाओं में कन्नौज और प्रयाग में सम्मिलित हुआ।

भास्कर वर्मा हर्ष की मृत्यु (648 ई.) के बाद कई वर्ष जीवित रहा, और चीनी वृत्तान्तों के अनुसार समस्त पूर्वी भारत का स्वामी बन गया। चीनी राजदूत वांग ह्यूएनत्से ने जब हर्ष के सिंहासन पर अधिकार कर लेने वाले उसके मंत्री अर्जुन को दण्ड देने के लिए कन्नौज पर आक्रमण किया, तब भास्कर वर्मा ने साज-सामान देकर उसकी पर्याप्त सहायता की थी।

मृत्यु

भास्कर वर्मा नि:सन्तान था। उसकी मृत्यु 650 ई. के उपरान्त कामरूप राज्य पर नये 'सालस्तम्भ राजवंश' का शासन स्थापित हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 337 |



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