अबूनुवास हसन बिन हामी

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अबूनुवास हसन बिन हामी अबूनुवास का जन्म खुज़िस्तान की राजधानी अहवाज़ में हुआ। वह साधारण परिवार का था। वह शुद्ध अरब नहीं था प्रत्युत ईरानी रक्त का मेल था। इसके बाल बहुत बड़े-बड़े थे, जो कंधों पर लटकते रहते थे। इसी कारण इसने अबूनुवास की पदवी ग्रहण की। इसने बसरा तथा कूफा में शिक्षा प्राप्त की और वहाँ से बगदाद पहुँचा। वहाँ यह पहले बरमकों के यहाँ रहा, जिन्होेंने इसे बहुत धन दिया। फिर यह हारू-अल्‌-रशीद के दरबार का आश्रित हुआ। स्वभाव से यह अय्याश था और मदिरापान की भी इसकी कमज़ोरी थी। इस कारण खलीफा ने इससे अप्रसन्न होकर इसे कैद कर लिया। इसे इस कारण बार--बार कैद भुगतनी पड़ी। हारूँ-अल्‌-रशीद की मृत्यु पर खलीफा अमीन ने इसे अपना विशिष्ट कवि नियत कर लिया। इसकी मृत्यु 54 वर्ष की अवस्था में हुई। मरने से पहले इसने कुकर्मों से तौबा कर लिया था और भक्तिपूर्ण कविता करने लगा था।

अबूनुवास के दीवान में हर प्रकार की कविता के नमूने मिलते हैं, पर इसकी वास्तविक रुचि मदिरा तथा प्रेमवर्णन में है और इस क्षेत्र में यह अपने अन्य समसामयिकों से बहुत आगे बढ़ गया है। उसने पूर्ववर्तियों का अनुगमन बहुत प्रयत्न तथा परिश्रम से किया है, पर उसका वास्तविक रुझान नवीनता की ही ओर है। उसका समय 145 हि. से 198 हि. (सन्‌ 762 ई. से सन्‌ 813 ई.) तक है।[1]



टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 168 |

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