ऑलिवर गोल्डस्मिथ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 06:54, 20 July 2018 by यशी चौधरी (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

ऑलिवर गोल्डस्मिथ (1728-1774) का जन्म आयरलैंड के एक गाँव में सन्‌ 1728 ई. में हुआ था। उनके पिता स्वल्प वैतनिक पादरी तथा माता स्कूलमास्टर की पुत्री थीं। पिता का वेतन अतिथिसत्कार में ही समाप्त हो जाता था, फलस्वरूप सात व्यक्तियों का कुटुंब प्राय: भविष्य के सुखस्वप्न देखता हुआ वर्तमान के अभावों तथा संकटों से संघर्ष करता रहा। गोल्डस्मिथ इस उदारहृदय तथा दयालु व्यक्ति की पाँचवीं संतान थे और जन्म से ही कुरूप तथा भद्दे थे। उनकी शिक्षा गाँव के स्कूल से आरंभ होकर ट्रिनिटी कालेज, डब्लिन, में समाप्त हुई। 1749 में कालेज छोड़ने के साथ ही पिता की मृत्यु हो जाने से उन्हें आत्मनिर्भर होने के लिये विवश होना पड़ा। कई व्यवसायों में असफल होने के पश्चात्‌ उन्होंने चिकित्साशास्त्र का अध्ययन आरंभ किया और 1754 में देश के बाहर यूरोप जाकर ज्ञानविस्तार करने का निश्चय किया। यात्रा के समय उनके पास केवल 20 पौंड थे और हाथ में उनकी प्रिय बांसुरी। अपनी चंचल प्रकृति के वशीभूत होकर उन्होंने पैदल भ्रमण आरंभ किया और फ्रांस तथा स्विट्जरलैंड के विभिन्न क्षेत्रों में वे महीनों घूमते रहे। बाँसुरी का चमत्कार ही उनके भरण पोषण का साधन रहा।

1756 में गोल्डस्मिथ लंदन में भाग्यपरीक्षा के लिये लौटे और लेखनी को जीविकोपार्जन का माध्यम बनाने के लिये विवश हुए। 1760 में उन्होंने 'पब्लिक लेजर' नामक पत्रिका में कुछ लेख प्रकाशित करवाए जो बाद की 'दि' सिटिजेन ऑव दि वर्ल्ड' के नाम से प्रसिद्ध हुए। सन्‌ 1764 में 'दि ट्रैवेलर' नामक कविता के प्रकाशन के साथ उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी और दो वर्ष पश्चात्‌ उनके उपन्यास 'दि विकार ऑफ वेकफ़ील्ड' ने तो उनको लोकप्रिय लेखक बना दिया। इसके पश्चात्‌ उनके हास्यरसपूर्ण नाटकों 'दि गुड नेचर्ड मैन,' 'शी स्टूप्स टु कांकर' तथा प्रसिद्ध कविता 'दि डेजर्टेड विलेज' का सृजन हुआ। इस समय तक वह जान्सन के साहित्यिक क्लब' के सदस्य हो चुके थे। परंतु पैसा उन्हें सदैव काटता रहा और धन आते ही वे मुक्तहस्त होकर उसे बिखेरने लगते थे। इसी के फलस्वरूप निर्धनता तथा चिंता से पीड़ित रहते हुए सन्‌ 1774 में उन्होंने प्राणत्याग किया।

गोल्डस्मिथ के व्यक्तित्व के बाह्म दोषों के साथ साथ मानवोचित गुणों, जैसे सहृदयता, दयालुता, देशप्रेम तथा हास्यप्रियता का ऐसा विचित्र संमिश्रण था कि उनके संपर्क में आने वाले व्यक्तियों में विरोधी प्रक्रियाओं का होना स्वाभाविक था, परंतु कोई भी व्यक्ति अधिक देर तक उनके सद्गुणों के प्रति उदासीन नहीं रह सकता था। यही बात उनके लेखों के संबंध में भी कही गई है। बहर से देखने में उनमें कतिपय त्रुटियाँ तुरंत दृष्टिगोचर हो जाती हैं, परंतु मनोयोग से अध्ययन करने के बाद कोई भी पाठक उनके जादू से अप्रभावित नहीं रह सकता। इस संबंध में डॉ. जान्सन की यह युक्ति सारगर्भित है कि कोई भी साहित्य का अंग उनसे अछूता नहीं रहा और जिस वस्तु का उनकी लेखनी ने स्पर्श किया, उसे सुंदर तथा मनमोहक बनाने में कोई कसर नही रखी।

उनके निबंधों में हास्य तथा करुणारस का वैसा ही सुखद मेल है जैसा चार्ल्स लैंब के अमर लेखों में मिलता है और यही समिश्रण उनके पात्रों को आजतक जीवित रखने में सफल हुआ है। उनके काल्पनिक पात्र, जैसे 'दि मैन इन ब्लैक,' डॉ. प्रिमरोज़' तथा डेजर्टेज विलेज' में 'स्कूलमास्टर' तथा 'कंट्रीपार्सन' पाठकों के लिये परिचित व्यक्तियों से भी अधिक सजीव हैं। उनकी कृतियों में मानव के नैसर्गिक मर्यादा के प्रति हार्दिक निष्ठा तथा अत्याचार के प्रति घोर विरोध मुखरित हुआ है और सर्वत्र निर्बल तथा प्रताड़ित प्राणियों के प्रति उनकी विशुद्ध संवेदना प्रवाहित हुई है। उनकी शैली परिष्कृत तथा पारदर्शी दर्पण के समान है जिनमें उनके दैवी स्वभाव का माधुर्य तथा हृदय की विशालता पूर्णरूपेण प्रतिबिंबित हैं। उनका व्यंग भी कोमल है और हास्य तो शरचंद्र के प्रकाश के समान ही सुखद है।[1]



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 4 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 38 |

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः